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Monday, February 3, 2014
भारतीय गणितज्ञ “रामानुजम” (1887-1920)
गणित के क्षेत्र में अनेक विद्वान हुए हैं, जिनमे रामानुजम भी एक उच्चकोटि के गणितज्ञ रहे हैं, इनका जन्म ‘तमिलनाडु’ प्रांत के ‘इरोद’ नामक ग्राम मे एक निर्धन ब्राह्मण परिवार मे 22 दिसम्बर, 1887 मे हुआ इनके पिता ‘कुम्भ कोनम्’ ग्राम मे रहते थे और वही पर एक कपङे वाले के यहां मुनीमी करते थे ।
रामानुज के जन्म के बारे मे एक किंवदंती प्रचलित है, कहा जाता है कि विवाह होने के कई वर्ष बाद तक उनकी माता को कोई संतान नही हुई । इससे वह हमेशा चिंतित रहती थी । अपनी पुत्री को चिंतकुल देख कर रामानुजम् के नाना नामकल गाँव मे जाकर वहाँ नामगिरी देवी की आराधना की, इसी के फलस्वरूप ‘श्रीनिवास रामानुजम्’ का जन्म हुआ ।
5 वर्ष की अवस्था मे रामानुजम् को स्कूल भेजा गया । वहाँ 2 वर्ष के बाद इनको कुम्भ-कोनम् हाईस्कूल मे पढ़ने भेजा गया, इन्हे गणितशास्त्र मे विशेष रुचि थी । वे अपने सहपाठियो और गुरुओ से यह कभी नक्षत्रों के बारे मे तो कभी परिधि के बारे मे प्रश्न पूछते थे, वह जब कक्षा 3 मे पढ़ते थे, तो एक दिन जब अध्यापक समझा रहे थे कि किसी संख्या को उसी से भाग देने पर भागफल 1 होता है, तो रामानुजम् ने उसी समय पूछा, “क्या यह नियम शून्य के लिए भी लागू होता है ?” उन्होने इसी कक्षा मे बीजगणित की तीनों श्रेणियो – समान्तर श्रेणी, गुणोत्तर श्रेणी और हरात्मक श्रेणी को पढ़ लिया था, जो कि आजकल इंटर मीडिएट कक्षा मे पढ़ाई जाती है । कक्षा 4 मे त्रिकोणमिति तथा कक्षा 5 मे Sin (ज्या) और Cos (कोज्या) का विस्तार समाप्त कर लिया था ।
17 वर्ष की आयु मे इनहोने हाईस्कूल की परीक्षा योग्यता सहित उत्तीर्ण की, और इन्हे सरकारी छात्रवृत्ति प्रदान की गई । परंतु कालेज के प्रथम वर्ष तक पहुंचते- पहुंचते यह गणितशास्त्र मे इतने तल्लीन हो गए कि गणित के सिवाय और किसी के नही रहे और उसका परिणाम यह हुआ कि यह फेल हो गये, इससे इनकी छात्रवृत्ति रोक दी गई । अतः आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण इनको विश्बविधालय कि शिक्षा समाप्त करनी पङी ।
उन दिनो रामानुजम् को आर्थिक कठिनाइयो ने परेशान कर दिया इसी समय इनका विवाह भी कर दिया गया । विवाह हो जाने के कारण कठिनाइयां दुगनी हो गई, और वह शीघ्र नौकरी ढूँढने के लिए मजबूर हो गए । बङी कठिनाइयो के बाद इनको मद्रास ट्रस्ट मे 30 रुपये मासिक की नौकरी मिल गई, इसी बीच ड़ॉ॰ वाकर गणित मे उनकी दिलचस्पी से बहुत प्रभावित हुये उनके प्रयत्न से रामानुजम् को मद्रास विश्बविधालय से 2 वर्ष के 75 रूपये मासिक छात्रवृत्ति मिल गई तथा इनको क्लर्कीसे छुटकारा मिल गया । आर्थिक चिंताओ से मुक्त होकर इन्हे अपना सारा समय गणित के अध्ययन मे लगाने का सुअवसर प्राप्त हो गया ।
फिर इनहोने कुछ लेख लिखकर ट्रिनिटी कालेज के गणित के फैलो ड़ॉ॰ हार्ड़ी के पास भेजे, इन लेखो को देखकर ड़ॉ॰ हार्ड़ी तथा दूसरे अंग्रेज़ गणितज्ञ बहुत प्रभावित हुए । अतः वे लोग रामानुजम् को कैम्ब्रिज बुलाने का प्रयत्न करने लगे ।
सन् 1914 मे जब ट्रिनिटी कालेज के ड़ॉ॰नोविल भारत आये तो हार्डी ने उसे रामानुजम् से मिलने तथा उनको कैम्ब्रिज लाने का अनुरोध कर दिया था । भारत आने पर ड़ॉ नोविल ने रामानुजम् से भेट की । चरित नायक ने नोविल महोदय की प्रार्थना को स्वीकार कर लिया । इस पर नोविल महोदय (साहव) ने इनको 250 पौंड की छात्रवृत्ति देने के अतिरिक्त प्रारम्भिक व्यय तथा यात्रा व्यय देना भी स्वीकार कर लिया । इसमे से 60 रूपये प्रति मास अपनी मटा को देने का प्रबंध करके 17 मार्च 1917 ई० को मि० नोबिल के साथ आप विलायत के लिए रवाना हो गए ।
28 फरवरी 1918 को आप रायल सोसाइटी के फैलो वन गए, इस सम्मान को प्राप्त करने वाले आप प्रथम भारतीय थे । 27 फरवरी 1919 को आप लंदन से भारत के लिए रवाना हुए और 27 मार्च को आप मुंबई पहुंचे । विदेश मे जलवायु अनुकूल न होने से आपका स्वस्थ्य गिर गया था । स्वस्थ्य खराब होने से इनको कावेरी कोदू मंडी ले जाया गया । वहाँ से उनको कुम्भ कोणम ले जाया गया । इनका स्वस्थ्य दिन पर दिन गिरता गया । फिर भी मस्तिष्क का प्रकाश अंत तक मंद नहीं हुआ, अंतिम समय तक वह कार्य मे लगे रहे। ‘Mock Theta Function’ पर उनका सब कार्य रोग शैय्या पर ही हुआ । हालात ज्यादा खराब होती देखकर मद्रास ले जाए गये । 26 अप्रैल 1920 ई० को मद्रास के पास चेतपुर ग्राम मे इस विश्व विख्यात गणितज्ञ का शरीरांत हो गया
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