इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते।
तदस्य हरति प्रज्ञां वायुर्नावमिवाम्भसि॥
जिस प्रकार पानी पर तैरने वाली नाव को वायु हर लेती है, उसी प्रकार विचरण करती हुई इन्द्रियों में से किसी एक इन्द्रिय पर मन निरन्तर लगा रहता है, वह एक इन्द्रिय ही उस मनुष्य की बुद्धि को हर लेती है।
मोक्ष...
आनीता नटवन्मया तब पुर; श्रीकृष्ण! या भूमिका ।
व्योमाकाशखखांबराब्धिवसवस्त्वत्प्रीतयेऽद्यावधि ।।
प्रीतस्त्वं यदि चेन्निरीक्ष्य भगवन् स्वप्रार्थित देहि मे ।
नोचेद् ब्रूहि कदापि मानय पुरस्त्वेतादृशीं भूमिकाम् ||...
हे श्रीकृष्ण! आपके प्रीत्यर्थ आज तक मैं नट की चाल पर आपके सामने लाया जाने से चौरासी लाख रूप धारण करता रहा । हे परमेश्वर! यदि आप इसे (दृश्य) देख कर प्रसन्न हुए हों तो जो मैं माँगता हूँ उसे दीजिए और नहीं प्रसन्न हों तो ऐसी आज्ञा दीजिए कि मैं फिर कभी ऐसे स्वाँग धारण कर इस पृथ्वी पर न लाया जाऊँ।
आनीता नटवन्मया तब पुर; श्रीकृष्ण! या भूमिका ।
व्योमाकाशखखांबराब्धिवसवस्त्वत्प्रीतयेऽद्यावधि ।।
प्रीतस्त्वं यदि चेन्निरीक्ष्य भगवन् स्वप्रार्थित देहि मे ।
नोचेद् ब्रूहि कदापि मानय पुरस्त्वेतादृशीं भूमिकाम् ||...
हे श्रीकृष्ण! आपके प्रीत्यर्थ आज तक मैं नट की चाल पर आपके सामने लाया जाने से चौरासी लाख रूप धारण करता रहा । हे परमेश्वर! यदि आप इसे (दृश्य) देख कर प्रसन्न हुए हों तो जो मैं माँगता हूँ उसे दीजिए और नहीं प्रसन्न हों तो ऐसी आज्ञा दीजिए कि मैं फिर कभी ऐसे स्वाँग धारण कर इस पृथ्वी पर न लाया जाऊँ।
ध्यायतो विषयान्पुंसः संगस्तेषूपजायते।
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
(इन्द्रियों के विषयों का चिन्तन करते हुए मनुष्य की उन विषयों में ...आसक्ति हो जाती है, ऐसी आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध से अत्यन्त मूढ़ भाव [मोह] उत्पन्न होता है, मोह से स्मरण-शक्ति [स्मृति] में भ्रम उत्पन्न होता है, स्मृति में भ्रम हो जाने से ज्ञानशक्ति अर्थात बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि के नष्ट होने से मनुष्य का अधो-पतन हो जाता है।
संगात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥
क्रोधाद्भवति सम्मोहः सम्मोहात्स्मृतिविभ्रमः।
स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥
(इन्द्रियों के विषयों का चिन्तन करते हुए मनुष्य की उन विषयों में ...आसक्ति हो जाती है, ऐसी आसक्ति से उन विषयों की कामना उत्पन्न होती है और कामना में विघ्न पड़ने से क्रोध उत्पन्न होता है। क्रोध से अत्यन्त मूढ़ भाव [मोह] उत्पन्न होता है, मोह से स्मरण-शक्ति [स्मृति] में भ्रम उत्पन्न होता है, स्मृति में भ्रम हो जाने से ज्ञानशक्ति अर्थात बुद्धि नष्ट हो जाती है और बुद्धि के नष्ट होने से मनुष्य का अधो-पतन हो जाता है।
योगस्थः कुरु कर्माणि संग त्यक्त्वा धनंजय।
सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥
(हे धनंजय! तू सफ़लता तथा विफ़लता में आसक्ति को त्याग कर सम-भाव में स्थित हुआ अपना कर्तव्य समझकर कर्म कर, ऐसी समता ही समत्व बुद्धि-योग कहलाती है।
सिद्धयसिद्धयोः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥
(हे धनंजय! तू सफ़लता तथा विफ़लता में आसक्ति को त्याग कर सम-भाव में स्थित हुआ अपना कर्तव्य समझकर कर्म कर, ऐसी समता ही समत्व बुद्धि-योग कहलाती है।
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