ॐ के उच्चारण को अनाहत नाद कहते हैं, ये ब्रह्म नाद के रूप मेँ प्रत्येक व्यक्ति के भीतर और इस ब्रह्मांड में सतत् गूँजता रहता है।
इसके गूँजते रहने का कोई कारण नहीं। सामान्यत: नियम है कि ध्वनि उत्पन्न होती है किसी की टकराहट से, लेकिन अनाहत को उत्पन्न नहीं किया जा सकता।
ओ, उ और म उक्त तीन अक्षरों वाले शब्द की महिमा अव्यक्त है। यह नाभि, हृदय और आज्ञा चक्र को जगाता है। इसे प्रणव साधना भी कहा जाता है।
इसके अनेक चमत्कार हैँ। प्रत्येक मंत्र के पूर्व इसका उच्चारण किया जाता है। योग साधना में इसका अधिक महत्व है। इसके निरंतर उच्चारण करते रहने से अनाहत को जगाया जा सकता है।
विधि नंबर 01 :-
प्राणायाम या कोई विशेष आसन करते वक्त इसका उच्चारण किया जाता है। केवल प्रणव साधना के लिए ॐ का उच्चारण पद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं। इसका उच्चारण 5, 7, 11, 21 बार अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं। ॐ जोर से बोल सकते हैं, धीरे-धीरे बोल सकते हैं। बोलने की जरूरत जब समाप्त हो जाए तो इसे अपने अंतरमन में सुनने का अभ्यास बढ़ाएँ।
सावधानी :- उच्चारण करते वक्त लय का विशेष ध्यान रखें। इसका उच्चारण प्रभात या संध्या में ही करें। उच्चारण करने के लिए कोई एक स्थान नियुक्त हो। हर कहीं इसका उच्चारण न करें। उच्चारण करते वक्त पवित्रता और सफाई का विशेष ध्यान रखें।
लाभ : संसार की समस्त ध्वनियों से अधिक शक्तिशाली, मोहक, दिव्य और सर्वश्रेष्ठ आनंद से युक्तनाद ब्रम्ह के स्वर से सभी प्रकार के रोग और शोक मिट जाते हैं। इससे मानसिक बीमारियाँ दूर होती हैं। इससे हमारे शरीर की ऊर्जा संतुलन में आ जाती है। इसके संतुलन में आने पर चित्त शांत हो जाता है।
व्यर्थ के मानसिक द्वंद्व, तनाव, संताप और नकारात्मक विचार मिटकर मन की शक्ति बढ़ती है। मन की शक्ति बढ़ने से संकल्प शक्ति और आत्मविश्वास बढ़ता है। सम्मोहन साधकों के लिए इसका निरंतर जाप करना अनिवार्य है।
विधि नंबर 02 :-
किसी शांत जगह पर अपने दोनोँ हाथोँ से अपने कानोँ को ढंके, कानोँ को पूरी तरह हाथोँ से सील करले आपको एक आवाज सुनाई देगी, यही अनाहत नाद या ब्रह्म नाद है, ये ध्वनि या नाद आपके शरीर के अंदर 24 घंटे होते रहता है, ये हमेशा आपके शरीर को ॐ के रूप मेँ अंदर से वाद्यित् करता रहता है। इसे ध्यान के रूप मेँ परिणित कर आप अतुल्य लाभ उठा सकते हैँ।
सर्वप्रथम एक स्वच्छ, व शांत कमरे मेँ आसन लगाकर बैठ जाइए, अपने सामने एक घी का दीपक जला लीजिए, अपने कानोँ को दोनोँ हाथोँ से कसकर बंद कर लीजिए ताकि आपको नाद सुनाई देने लगे, मन मेँ उस नाद के समान्तर ॐ का उच्चारण कीजिए। ये क्रिया 5 मिनिट तक कीजिए, रोजाना सुबह व शाम ये क्रिया कीजिए, कुछ समय बाद अभ्यास से आप ध्यान की अवस्था मेँ बिना कानोँ को ढंके, नाद को सुन पाएंगेँ, रोजमर्रा के काम करते वक्त भी अगर आप कुछ सेकंड के लिए भी ध्यान लगाएं तो भी आप शोरगुल मेँ भी अनाहत नाद को सुन सकते हैँ।
अगर आप ऐसा कर पाने मेँ सफल हो गए तो आप अपने आपको इस क्रिया मेँ सिद्ध कर लेँगे। "करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान" ये बात याद रखिए।
सावधानी :- पवित्रता व स्वच्छता पर विशेष ध्यान देँ। ब्रह्मचर्य का पालन करेँ।
लाभ :- विधि नंबर 01 के समान
नोट :- दोनोँ विधियोँ मेँ ॐ का उच्चारण विषम संख्या मेँ ही करेँ। अर्थात् 5, 7, 11, 21, या 51, उच्चारण करते समय पहले ॐ मेँ "ओ" शब्द छोटा व "म" शब्द लम्बा खीँचे, द्वितीय ॐ मेँ "ओ" तथा "म" दोनोँ बराबर रखेँ, तृतीय उच्चारण मेँ पुनः "ओ" छोटा व "म" लम्बा रखेँ। यही क्रम चलने देँ। आपको शीघ्र ही लाभ होगा, ऐसा मेरा विश्वास है।
विधि- 02
आराम से सुखआसन में बैठ जाएँ |
रीढ़ की हड्डी सीधी हो | ठुढि थोड़ी सी गर्दन के तरफ झुकी हो |
सारे शरीर को ढीला छोड़ दें |
आँखे बंद हो |...
एकदम आनन्द अनुभव करें |
अब एक लम्बी गहरी सांस खींचे धीरे धीरे बिलकुल आराम से |
फिर सांस को धीरे धीरे बाहर छोड़ दें से |
तीन बार या पांच बार ऐसा हीं सांस खींचे और छोड़ें धीरे धीरे से बिलकुल |
दो मिनट बाद |
कल्पना करें आपके सिर के ठीक ऊपर अनंत आकाश में एक तारा निकला हुआ है |
तारे का प्रकाश ठीक आपके सिर के ऊपरी भाग पर गिर रहा है |
तारे के प्रकाश के साथ यह भी कल्पना करें सुख, शान्ति, आनंद भी आपके सिर के उपरी भाग पर गिर रहा है और आपके शरीर में प्रवेश कर रहा है |
सारे शरीर ऊपर से नीचे की ओर शान्ति और शीतलता रूपी तारा का प्रकाश बह रहा है ऐसी कल्पना करें |
ध्यान को सिर के चोटी पर रखें अधिकांश समय के लिए |
पन्द्रह मिनट इसी कल्पना में डूबे रहें !
आराम से सुखआसन में बैठ जाएँ |
रीढ़ की हड्डी सीधी हो | ठुढि थोड़ी सी गर्दन के तरफ झुकी हो |
सारे शरीर को ढीला छोड़ दें |
आँखे बंद हो |...
एकदम आनन्द अनुभव करें |
अब एक लम्बी गहरी सांस खींचे धीरे धीरे बिलकुल आराम से |
फिर सांस को धीरे धीरे बाहर छोड़ दें से |
तीन बार या पांच बार ऐसा हीं सांस खींचे और छोड़ें धीरे धीरे से बिलकुल |
दो मिनट बाद |
कल्पना करें आपके सिर के ठीक ऊपर अनंत आकाश में एक तारा निकला हुआ है |
तारे का प्रकाश ठीक आपके सिर के ऊपरी भाग पर गिर रहा है |
तारे के प्रकाश के साथ यह भी कल्पना करें सुख, शान्ति, आनंद भी आपके सिर के उपरी भाग पर गिर रहा है और आपके शरीर में प्रवेश कर रहा है |
सारे शरीर ऊपर से नीचे की ओर शान्ति और शीतलता रूपी तारा का प्रकाश बह रहा है ऐसी कल्पना करें |
ध्यान को सिर के चोटी पर रखें अधिकांश समय के लिए |
पन्द्रह मिनट इसी कल्पना में डूबे रहें !
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