मध्यप्रदेश के आगर मालवा नगर में श्रीबैजनाथ महादेव का एक ऎसा ऎतिहासिक मंदिर हैं जिसका जीर्णोद्धार तत्कालीन अंग्रेज सेना के एक अधिकारी ने करवाया था। प्रदेश के नवगठित एवं 51 वे जिले के रूप में गत वर्ष अस्तित्व में आए आगर मालवा के इतिहास में उल्लेख है कि बैजनाथ महादेव के मंदिर का जीर्णोद्धार कर्नल मार्टिन ने वर्ष 1883 में 15 हजार रूपये का चंदा कर करवाया था। इस बात का शिलालेख भी मंदिर के अग्रभाग में लगा है। उत्तर एवं दक्षिण भारतीय कलात्मक शिल्प में निर्मित श्रीबैजनाथ महादेव को चमत्कारी देव माना जाता है। इसका ज्वलंत उदाहरण उस समय दिखाई दिया जब अफगानिस्तान में 130 वर्ष पहले पठानी सेना से घिरे कर्नल मार्टिन की प्राणरक्षा भगवान शिव ने की और वे सही सलामत घर लौटे। इतिहास में वर्णित है कि वर्ष 1879 में अंग्रेजों ने अफगानिस्तान पर आक्रमण कर दिया था। इस युद्ध का संचालन आगरमालवा की ब्रिट्रिश छावनी के लेफ्टिनेंट क र्नल मार्टिन को सौंपा गया था। मार्टिन युद्ध एवं स्वयं की कुशलता के समाचार आगर मालवा में छोड कर गए अपनी पत्नी को नियमित भेजते थे। इस दौरान एक वक्त ऎसा भी आया जब मार्टिन के संदेश आना बंद हो गए। उनकी पत्नी को अनेक शंकाएं सताने लगी। वह एक दिन घोडे पर बैठ कर आगरमालवा में घूमने गई तो श्री बैजनाथ महादेव मंदिर से आती शंखध्वनि और मंत्रों से आकर्षित हो मंदिर पहुंची। वहां मंदिर में पूजा पाठ कर रहे पंडितों से चर्चा की एवं शिव पूजन के महत्व के बारे में पूछताछ की। पुजारी ने कहा भगवान शिव औघरदानी और भोलेभंडारी हैं। अपने भक्तों के संकट वह तुरंत ही दूर करते हैं। पुजारी ने लेडी मार्टिन से पूछा बेटी तुम बडी चिंतातुर लग रही हो क्या कारण है। लेडी मार्टिन बोली मेरे पति युद्ध में गए हैं और कई दिनों से उनका कोई समाचार नहीं आया इसलिए चिंतित हूं, इतना कहते हुये लेडी मार्टिन रो पडी। फिर ब्राहमणों के कहने पर श्रीमती मार्टिन ने लघु रूद्रीअनुष्ठान आरंभ करवाया तथा भगवान शिव से अपने पति की रक्षा के लिये प्रार्थना करने लगी और संकल्प लिया कि उनके पति युद्ध जीतकर आ जाए तो वह मंदिर पर शिखर बनवायेगी। लघुरूद्री की पूर्णाहुति के दिन भागता हुआ एक संदेशवाहक शिवमंदिर पहुंचा। लेडी मार्टिन ने घबराते हुए लिफाफा खोला और पढने लगी। पत्र में उनके पति ने लिखा, हम युद्धरत थे तुम्हारे पास खबर भी भेजते रहते थे लेकिन अचानक हमें पठानी सेना ने घेर लिया। ब्रिटिश सेना के सैनिक मरने लगे ऎसी विषम परिस्थिति से हम घिर गए और जान बचाकर भागना मुश्किल हो गया। इतने में देखा कि युद्ध भूमि में कोई एक योगी जिनकी लम्बी जटाएं एवं हाथ में तीन नोंक वाला हथियार (त्रिशूल) लिए पहुंचे। उन्हें देखते ही पठान सैनिक भागने लगे और हमारी हार की घंडियां एकाएक जीत में बदल गई। पत्र में लिखा था यह सब उन त्रिशूलधारी योगी के कारण ही संभव हुआ। फिर उन्होने कहा घबराओं नहीं मैं भगवान शिव हूं तथा तुम्हारी पत्नी द्वारा शिवपूजन से प्रसन्न होकर तुम्हारी रक्षा करने आया हूं। पत्र पढते हुए लेडी मार्टिन ने भगवान शिव की प्रतिमा के सम्मुख सिर रखकर प्रार्थना करते हुए भगवान का शुक्रिया अदा किया और उनकी आंखों से खुशी के आंसू छलक पडे। कुछ दिनों बाद जब कर्नल मार्टिन आगर मालवा ब्रिटिश छावनी लौटकर आए और पत्नी को सारी बातें विस्तार से बताई और अपनी पत्नी के संकल्प पर कर्नल मार्टिन ने सन 1883 में पन्द्रह हजार रूपये का सार्वजनिक चंदा कर श्रीबैजनाथ महादेव के मंदिर का जीर्णोद्धार क रवाया। आगरमालवा की उत्तर दिशा में जयपुर मार्ग पर बाणगंगा नदी के किनारे स्थापित श्रीबैजनाथ महादेव का यह ऎतिहासिक मंदिर लिंग राजा नलकालीन माना जाता है। पहले यह मंदिर एक मठ के रूप में था तथा तांत्रिक अघौरी यहां पूजापाठ करते थे। मंदिर का गर्भगृह 11 गुणा 11 फीट का चौकोर है तथा मध्य में आ ग्नेय पाषाण का शिवलिंग स्थापित है। मंदिर का शिखर चूनेपत्थर का निर्मित है जिसके अंदर और बाहर ब्रहमा, विष्णु और महेश की दर्शनीय प्रतिमाऎं उत्कीर्ण हैं। करीब 50 फुट ऊंचे इस मंदिर के शिखर पर चार फुट उचां स्वर्णकलश है। मंदिर के सामने विशाल सभा मंडप और मंडप में दो फुट ऊंची एवं तीन फु ट लंबी नंदी की प्रतिमा है। मंदिर के पीछे लगभग 115 फुट लंबा और 48 फुट चौडा कमलकुंड है जहां खिलते हुए कमल के फूलों से यह स्थल और भी रमणीक दिखाई देता है। महाशिवरात्रि के अलावा यहां चैत्र एवं कार्तिक माह में भी भव्यशिव मेला आयोजित होता है और दूर दराज से श्रद्धालु चमत्कारिक श्रीबैजनाथ महादेव के दर्शन पूजन करने पहुंचते हैं।
क्षत्रियों की कुलदेवी के रूप में प्रसिद्ध हिंगलाज भवानी माता का बलोचिस्तान स्थित मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। कराची से 250 किलोमीटर दूर क्वेटा-कराची रोड़ पर राष्ट्रीय राजमार्ग से करीब घंटेभर की पैदल दूरी पर स्थित है यह मंदिर। मंदिर के सालाना मेले में यहां हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल होते हैं। यहां के स्थानीय लोग हिंगलाज माता मंदिर को श्रद्धा से नानी का हज, नानी का मंदिर कहते हैं। नानी का मतलब यहां ईरान की देवी अनाहिता से है। कहा जाता है कि माता के दर्शन के लिए गुरू नानक देव भी आए थे।
पाकिस्तान स्थित इस मंदिर के लिए कहा जाता है कि यहां मांगी गई हर इच्छा पूरी होती है। किसी समय पूरे विश्व के हिन्दुओं की श्रद्धा का केन्द्र रहा हिंगलाज माता का मंदिर में अब भी दूर-दूर से लोग आकर मन्नत मांगते हैं। यहां का सारा प्रबन्धन स्थानीय निवासियों की एक कमेटी करती है।
नगर की आराध्य देवी मां विंध्यवासिनी की ख्याति प्रदेश और देशभर में नहीं, अपितु विदेशों में भी है। यहां हर साल अमेरिका का एक श्रद्धालु दोनों नवरात्र में मनोकामना ज्योत प्रज्ज्वलित करता हैं। मांगे मुराद पूरी करने वाली मां विंध्यवासिनी देवी को यहां बिलाई दाई भी कहा जाता है, जिनकी लीला अपरंपार है। स्वयं-भू नगर आराध्य माता विंध्यवासिनी देवी मां बिलाई माता के इतिहास गाथा की जितना बखान किया जाए, उतना कम है। देवी-देवताओं का गढ़ छत्तीसगढ़ श्रद्धा भक्ति और विश्वास का केंद्र है। छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में नया बस स्टैंड से 2 किमी की दूरी में माता विंध्यवासिनी देवी का मंदिर है। माता धरती फोड़कर प्रकट हुई है, इस कारण इसे स्वयं-भू विंध्यवासिनी माता कहते हैं। अंचल में बिलाई माता के नाम से यह प्रसिद्ध है। शास्त्र वेद भागवत पुराण के मुताबिक विंध्यवासिनी माता श्रीकृष्ण की बहन है। योग माया कृष्ण बहन नंदजा यशोदा पुत्री विंध्यवासिनी मां शिवमहापुरायण में नंद गोप गृहे माता यशोदा गर्भ संभव तत्सवै नास्यामि विंध्याचल वासिनी मूर्ति का पाषण श्याम रंग का है। अंबे मैय्या गौरी माता विंध्यवासिनी देवी मां के 108 नाम है। धार्मिक इतिहास में मान्यता
धार्मिक इतिहास और राजलेखानुसार यह क्षेत्र पहले घनघोर बनबिवान जंगल था। एक समय राजा नरहर देव अपनी राजधानी कांकेर से सैनिकों के साथ इस स्थान में शिकार खेलने आए। राजा के सैनिक आगे की ओर बढ़ रहे थे, एकाएक अचानक उनका दल-बल सैनिक हाथी-घोडे रूक गए। काफी प्रयास के बाद भी आगे बढ़ने में विफल रहे। राजा-सैनिक वापस चले गए। दूसरे दिन भी यह घटना हुई। राजा ने सेनापति को आदेश दिया कि इस स्थान पर ऎसा क्या है, पता करें। सैनिकों ने आदेश का पालन किया। खोजबीन जांच में उन्होंने देखा, पाया कि एक असाधारण पत्थर तेजमयी आकर्षक, मनमोहन, मंत्रमुग्ध है। उसके आसपास जंगली बिल्लियां बैठी थी।
राजा को सूचना दी गई, राजा खुद आए। वे इस असाधारण पत्थर को देखकर मंत्रमुग्ध आकर्षित हो गए। वे अपने सेनापति को आदेश दिया कि शीघ्र ही इसे यहां से हटाकर राजधानी में स्थापित करें। सैनिक राजा का आदेश पाकर खुदाई कार्य में जुट गए। अचानक वहां से जल की अविरल जलधारा निकलना आरंभ हो गया तो खुदाई कार्य रोक दिया गया। रात्रि में राजा नरहर देव को देवी मां ने स्वप्न दिया कि राजन मुझे यहां से न ले जाए, मैं नहीं जाउंगी, तुम्हारे सारे प्रयास विफल होंगे। मेरी पूजा अर्चना आराधना इसी स्थान पर करें। यह जगत के लिए मंगलमय कल्याणकारी सुखमय, शांति और मनोकामना पूर्ण रहेगी। मेरा आशीर्वाद सभी को मिलेगी। बाबा भोलेनाथ, हनुमान जी का आशीर्वाद भक्तों पर कृपा बरसाते हैं। यहां सर्वप्रथम गोंड़ राजा के शासनकाल में मंदिर का निर्माण किया गया। - शैलेंद्र नाग vindhyavasini-vindhyachal
पाकिस्तान में है एक ऎसा मंदिर जहां भगवान राम पहुंचे। 1500 साल पहले बने इस पंचमुखी हनुमान मंदिर में हर मनोकामना पूर्ण होती है। पाकिस्तान के सिंध प्रांत के कराची में स्थित इस मंदिर का पुर्ननिर्माण 1882 में किया गया। मंदिर में पंचमुखी हनुमान की मनमोहक प्रतिमा स्थापित है। बताया जाता है कि हनुमानजी की यह मूर्ति डेढ़ हजार साल पहले प्रकट हुई थी। जहां से मूर्ति प्रकट हुई वहां से मात्र 11 मुट्ठी मिट्टी को हटाया गया और मूर्ति सामने आ गई। हालांकि इस रहस्मयी मूर्ति का संबंध त्रेता युग से है। मंदिर पुजारी का कहना है कि यहां सिर्फ 11-12 परिक्रमा लगाने से मनोकामना पूरी हो जाती है। हनुमानजी के अलावा यहां कई हिन्दु देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। गौरतलब है कि इस मंदिर के दर्शन भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी और जसवंत सिंह भी कर चुके हैं।
कटासराज मंदिर परिसर, पंजाब पाकिस्तान के पंजाब की राजधानी से लाहौर 270 किलोमीटर दूरी पर चकवाल जिले में स्थित है कटासराज मंदिर। कहा जाता है कि यहीं पर पांडवों ने आदिकाल से स्थित शिवलिंग की पूजा की थी। पांड़वों ने अपने अज्ञातवास के 4 साल कटासराज में ही बिताए थे। यह भी माना जाता है कि शिव और पार्वती का विवाह भी इसी जगह सम्पन्न हुआ था। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माता पार्वती के वियोग में जब शिवशंकर ने रूदन किया, तो पृथ्वी पर दो कुंड बन गए थे। इनमें से एक कुंड अजमेर के पुष्कर में ब्रह्म सरोवर के नाम से जाना जाता है और दूसरा पाकिस्तान के कटासराज में मंदिर परिसर में मौजूद है। दोनों कुंड़ों के पानी की विशेष्ाता इनका सदैव स्वच्छ रहना और रोग-दोष मिटाना है। From Patrika.com