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Sunday, October 24, 2021

Vishpala- Ancient medical procedure in India

 


The Rig Veda is regarded as one of the most ancient written texts. It is a mark of pride and honour for every Sanatani.


The Rig Veda has a reference to a warrior queen called Vishpala.


(The ancient Vedic period treated men and women as equals. We had Rishis. We had Rishikas. 

We had warriors of both genders. Fierce. Steadfast.)


What so special about Vishpala? She lost her leg in one of the wars.

But they did not raise women who quit! So she went on to fight with with a metal prosthetic limb!


Here is the reference:

“Sodao janghamaysing vishapalaoi dhana hite sterba pratyadhattyam” Rig-Veda- 1:116:15


This verse is addressed to the Ashwini Kumars, the physicians. It translates:


The foot of Vispala, (the wife of Khela), was cut off, like the wing of a bird, in an engagement by night.

Immediately you gave her a metallic leg, so that she might walk..


Of course, she did not just walk, though, she fought! Like a tigress! And slayed!


#RigVeda #WarriorQueenVishpala #ProstheicLimbs

#NationFirst #AkhandBharat

Sunday, January 3, 2021

Lost Horizon, about the Lost Kingdom of Shangri-La’ पृथ्वी का अद्भूत और दिव्य स्थान-#शंगरीला_घाटी

 पृथ्वी का अद्भूत और दिव्य स्थान-#शंगरीला_घाटी

चीन का सन् 1962 में भारत पर आक्रमण करने का वास्तविक कारण ….
कुछ आध्यात्मिक कठोर तथ्य हैं।
इस संसार में ऐसा बहुत कुछ है जो कि हम नहीं जानते, यदा कदा कुछ तथ्य सामने आते रहते हैं जो कभी-कभी सत्य को प्रकट कर ही देते हैं।
–सन् 1962 के भारत और चीन के बीच युद्ध का एक ऐसा कारण है, जिसे तत्कालीन भारत सरकार नहीं जानती थी। हो सकता है कि परिवर्तित सरकारें भी न जानती हों। आज की NDA सरकार भी जानती हो, यह भी आवश्यक नहीं।
–सन् 1962 के चीन के भारत पर आक्रमण का वास्तविक कारण था–‘शंगरी ला घाटी’। शंगरी ला घाटी तवांग मठ के निकट वह घाटी है जहां तृतीय और चतुर्थ आयामों की संधि स्थली है। यह वह दिव्य घाटी है जहाँ कोई साधारण व्यक्ति भी अचानक पहुंच जाए तो वह अमर हो जाता है। उस शंगरी ला घाटी की दिव्यता का रहस्य चीन के शासकों को ‘हिब्रू ग्रंथों’ और ‘भारतीय ग्रंथों’ से पता चल गया था। तिब्बत पर अधिकार करना चीन की उसी मंशा का परिणाम था। जब तिब्बत पर अधिकार करने के बाद वहाँ वह घाटी नहीं मिली तो सन् 1962 में अरुणाचल प्रदेश स्थित तवांग मठ के नजदीक हमला करना, वहाँ के भूभाग पर कब्जा करना उन की उसी योजना का हिस्सा था। लेकिन उन्हें तब भी ‘शंगरी ला घाटी’ नहीं मिलनी थी, न ही मिली। आज जो चीन भारत को आंखें दिखा रहा है, उस के पीछे भी एकमात्र कारण वही ‘शंगरी ला घाटी’ है। भूटान के पास का वह क्षेत्र तो मात्र बहाना है। उसे तो वही दिव्य ‘शंगरी ला घाटी’ चाहिए।
‘शंगरी ला घाटी’ वह घाटी है जहाँ भारत के 64 तंत्र, योग और भारत की प्राच्य विद्याओं को सिखाने के लिए संसार के कोने कोने से पात्र व्यक्तियों को खोज खोज कर बुलाया जाता है और शिक्षा-दीक्षा देने के बाद उस के विस्तार के लिए आचार्यों को घाटी के बाहर भेज दिया जाता है। उस घाटी की सब से बड़ी विशेषता है कि वह चतुर्थ आयाम में स्थित होने के कारण इन चर्म चक्षुओं से दृष्टिगोचर नहीं होती।
वहाँ उस घाटी में सैकड़ों हज़ारों की संख्या में उच्चकोटि के योगी, साधक, सिद्ध तपस्यारत हैं। वहाँ हमारे इस तीन आयामों वाले संसार की तरह समय की गति तेज नहीं है, बल्कि वह समय मन्द है। वहाँ पहुंच जाने वाला व्यक्ति हज़ारों साल तक वैसा का वैसा ही बना रहता है युवा, स्वस्थ और अक्षुण्ण। यही कारण है कि उस विशेषता के कारण चीनियों की नीयत उस क्षेत्र के लिये हमेशा से कब्जा करने की रही है।
और आज भी वह भूटान के बहाने से वही निशाना साधने पर आमादा है।
वैसे एक मिथक ये भी है कि भगवान परशुराम, कृपाचार्य और रुद्रांश बजरंग बली यहीं निवास करते हैं विष्णु के कल्कि अवतार को यहाँ ‘शांग्रीला घाटी’ में लाने वाला व्यक्ति अश्वथामा होगा इसी घाटी में कल्कि अवतार की शिक्षा दीक्षा होगी।
हम जिक्र कर रहे हैं शंगरी ला घाटी का। ये तिब्बत और अरुणाचल की सीमा पर है। तंत्र मंत्र के कई जाने माने साधकों ने अपनी किताबों में इस का जिक्र किया है। लोगों का ऐसा मानना है कि ये जगह किसी खास धर्म या संस्कृति की नहीं है, जो भी इसके लायक होता है, वह इसे ढूंढ सकता है। 1942 में एक अंग्रेज अफसर LP फरैल को इस जगह पर कुछ खास अनुभव हुए थे, जिसके बारे में उन्होंने 1959 में साप्ताहिक हिंदुस्तान में लेख प्रकाशित करवाए थे। तिब्बती बुद्धिस्ट्स का मानना है कि जब दुनिया में युद्ध होगा, शंभाला का 25वां शासक इस धरती को बचाने आएगा। प्रसिद्ध योगी परमहंस विशुद्धानंद जी ने भी इस आश्रम की शक्तियों को महसूस किया था, जिस का उन के शिष्य पद्म विभूषण और साहित्य अकादमी से नवाजे गए और गर्वनमेंट संस्कृत कॉलेज के प्राचार्य रहे डॉ. गोपीनाथ कविराज जी ने बड़े विस्तार से अपनी पुस्तक में वर्णन किया है। तिब्बती साधक भी इसके बारे में कहते रहे हैं। इस घाटी को उस बरमूडा ट्राएंगल की तरह ही दुनिया की सबसे रहस्यपूर्ण जगह माना जाता है। कहा जाता है कि भू-हीनता का प्रभाव रहता है। ये भी कहा जाता है कि इस घाटी का सीधा संबंध दूसरे लोक से है।
जाने माने तंत्र साहित्य लेखक और विद्वान अरुण कुमार शर्मा ने भी अपनी किताब तिब्बत की वह रहस्यमय घाटी में इस जगह का विस्तार से जिक्र किया है। बकौल उन के दुनिया में कुछ ऐसी जगहें हैं जो भू-हीनता और वायु-शून्यता वाली हैं, ये जगहें वायुमंडल के चौथे आयाम से प्रभावित होती हैं। माना जाता है इन जगहों पर जा कर वस्तु या व्यक्ति का अस्तित्व दुनिया से गायब हो जाता है। माना जाता है ये जगहें देश और काल से परे होती हैं।


शंगरी ला घाटी को बरमूडा ट्राएंगल की तरह बताया जाता है। बरमूडा ट्राएंगल ऐसी जगह है, जहां से गुजरने वाले पानी के जहाज और हवाई जहाज़ गायब हो जाते हैं। वह स्थान भी भू हीनता के क्षेत्र में आता है। कहा जाता है कि चीन की सेना ने कई बार इस जगह को तलाशने की भी कोशिश की लेकिन उस को कुछ नहीं मिला। तिब्बती विद्वान युत्सुंग के अनुसार इस घाटी का संबंध अंतरिक्ष के किसी लोक से भी है।
तिब्बती भाषा की किताब काल विज्ञान में इस घाटी का जिक्र मिलता है। तिब्बती भाषा में लिखी यह किताब तवांग मठ के पुस्तकालय में आज भी मौजूद है। जिस में लिखा है कि दुनिया की हर चीज़ देश, काल और निमित्त से बंधी है, लेकिन इस घाटी में काल यानी समय का असर नहीं है। वहां प्राण, मन के विचार की शक्ति, शारीरिक क्षमता और मानसिक चेतना बहुत ज्यादा बढ़ जाती है।
इस जगह को पृथ्वी का आध्यात्मिक नियंत्रण केंद्र भी कहा जाता है। अध्यात्म क्षेत्र,
तंत्र साधना या तंत्र ज्ञान से जुड़े लोगों के लिए यह घाटी भारत के साथ-साथ विश्व में मशहूर है। युत्सुंग खुद के वहां जाने का दावा करते हैं। बकौल उन के वहां ना सूर्य का प्रकाश था और ना ही चांद की चांदनी। वातावरण में चारों ओर एक दुधिया प्रकाश फैला हुआ था और साथ ही विचित्र सी खामोशी।
युत्सुंग ने वाराणसी के तंत्र विद्वान अरुण शर्मा को बताया वहां एक ओर मठों, आश्रमों और विभिन्न आकृतियों के मंदिर थे और दूसरी ओर दूर तक फैली हुई शंगरी ला की सुनसान घाटी। यहां के तीन साधना केंद्र प्रसिद्ध हैं। पहला- ज्ञानगंज मठ, दूसरा- सिद्ध विज्ञान आश्रम और तीसरा- योग सिद्धाश्रम।
शंगरी ला घाटी को सिद्धाश्रम भी कहते हैं। सिद्धाश्रम का वर्णन महाभारत, वाल्मिकी रामायण और वेदों में भी है। सिद्धाश्रम का जिक्र अंग्रेज़ लेखक James Hilton ने अपनी किताब ‘Lost Horizon, about the Lost Kingdom of Shangri-La’ में भी किया है।