कृताकृत कर्मों का द्रष्टा
"अतो विश्वान्यद्भुता चिकित्वाँ अभि पश्यति ।
कृतानि या च कर्त्वा ।।" (ऋग्वेदः---1.25.11)
अर्थ :-----(अतः) इसलिए (क्योंकि वह सब प्रजाओं में रम कर बैठा हुआ है), (चिकित्वान्) ज्ञानशक्ति वाला वह वरुण (विश्वानि) सभी (अद्भुता) आश्चर्य कर्मों को (अभिपश्यति) देख लेता है (कृतानि) जो किए जा चुके हैं (च) और (या) जो (कर्त्वा) किये जाने हैं।
भावार्थः---सूर्य, चन्द्र, तारे आदि सब अद्भुत पदार्थ उस वरुण की ही विभूतियाँ हैं।
भगवान् सर्वत्र सर्वदा रमे हुए हैं। वे ---चिकित्वान्--- ज्ञानशक्ति-सम्पन्न, सब कुछ जानने वाले हैं। इसलिए हम जो अद्भुत-से-अद्भुत, विचित्र-से-विचित्र आश्चर्यजनक कर्म करते हैं, उन सबको प्रभु जान लेते हैं। कोई समझे कि वह ऐसे कौशल से कर्म करेगा कि प्रभु के लिए उनका जानना असम्भव हो जाएगा, तो यह उसका भ्रम है। हमारे कौशल से किए हुए कर्म हमारे जैसे मनुष्यों को तो धोखा दे सकते हैं, परन्तु प्रभु की आँखों में वे धूल नहीं झोंक सकते। हमारे महान् आश्चर्यमय कौशल से किये हये कर्मों को भी भगवान् बडी सरलता से जान लेते हैं। जो कर्म हम कर बैठे हैं, उन्हें वे जान लेते हैं, जो कर्म हमें अभी करने हैं, उन्हें भी वे जान लेते हैं।
इसलिए हमें बुरे कर्म कभी नहीं करने चाहिएँ।
जो भगवान् हमारे भूत और भविष्यत् का ज्ञान रखने वाला है, उस प्रभु की आँख से हे मेरे आत्मन्, तू बच नहीं सकता, इसलिए उस व्रतधर के व्रतों के अनुसार ही चलना तेरे लिए श्रेयस्कर (उत्तम, अच्छा) है।
"अतो विश्वान्यद्भुता चिकित्वाँ अभि पश्यति ।
कृतानि या च कर्त्वा ।।" (ऋग्वेदः---1.25.11)
अर्थ :-----(अतः) इसलिए (क्योंकि वह सब प्रजाओं में रम कर बैठा हुआ है), (चिकित्वान्) ज्ञानशक्ति वाला वह वरुण (विश्वानि) सभी (अद्भुता) आश्चर्य कर्मों को (अभिपश्यति) देख लेता है (कृतानि) जो किए जा चुके हैं (च) और (या) जो (कर्त्वा) किये जाने हैं।
भावार्थः---सूर्य, चन्द्र, तारे आदि सब अद्भुत पदार्थ उस वरुण की ही विभूतियाँ हैं।
भगवान् सर्वत्र सर्वदा रमे हुए हैं। वे ---चिकित्वान्--- ज्ञानशक्ति-सम्पन्न, सब कुछ जानने वाले हैं। इसलिए हम जो अद्भुत-से-अद्भुत, विचित्र-से-विचित्र आश्चर्यजनक कर्म करते हैं, उन सबको प्रभु जान लेते हैं। कोई समझे कि वह ऐसे कौशल से कर्म करेगा कि प्रभु के लिए उनका जानना असम्भव हो जाएगा, तो यह उसका भ्रम है। हमारे कौशल से किए हुए कर्म हमारे जैसे मनुष्यों को तो धोखा दे सकते हैं, परन्तु प्रभु की आँखों में वे धूल नहीं झोंक सकते। हमारे महान् आश्चर्यमय कौशल से किये हये कर्मों को भी भगवान् बडी सरलता से जान लेते हैं। जो कर्म हम कर बैठे हैं, उन्हें वे जान लेते हैं, जो कर्म हमें अभी करने हैं, उन्हें भी वे जान लेते हैं।
इसलिए हमें बुरे कर्म कभी नहीं करने चाहिएँ।
जो भगवान् हमारे भूत और भविष्यत् का ज्ञान रखने वाला है, उस प्रभु की आँख से हे मेरे आत्मन्, तू बच नहीं सकता, इसलिए उस व्रतधर के व्रतों के अनुसार ही चलना तेरे लिए श्रेयस्कर (उत्तम, अच्छा) है।