महाभारत युद्ध
कौरव व पांडवों की सेना युद्ध की इच्छा से कुरुक्षेत्र में एकत्रित हो गई। दोनों पक्ष के सेना प्रमुखों ने युद्ध के कुछ नियम निर्धारित किए। जब दोनों पक्ष के वीर आमने-सामने आए तो कौरवों के पक्ष में भीष्म, द्रोणाचार्य आदि को देखकर अर्जुन का मन व्यथित हो गया। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता का उपदेश दिया। युद्ध शुरू होने से पहले युधिष्ठिर ने भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य व महाराज शल्य से युद्ध करने की आज्ञा ली। युद्ध की घोषणा होते ही कौरव व पांडवों की सेना में भयंकर मार-काट शुरू हो गई। दो दिनों तक इसी प्रकार युद्ध होता रहा।
9 दिनों तक पांडव व कौरवों में भयंकर युद्ध होता रहा। इन 9 दिनों में भीष्म पितामह ने पांडवों की सेना के कई वीर योद्धाओं का वध कर दिया। यह देखकर पांडवों की सेना भयभीत हो गई। तब श्रीकृष्ण के कहने पर पांडव भीष्म पितामह के पास गए और उनसे उनकी मृत्यु का उपाय पूछा। भीष्म पितामह बताया कि तुम्हारी सेना में शिखंडी नाम का योद्धा है, वह पहले स्त्री था। इसलिए मैं उसके सामने शस्त्र नहीं उठाऊंगा। इस प्रकार भीष्म ने बड़ी ही सहजता ने पांडवों को अपनी मृत्यु का उपाय बता दिया।
यह देख अर्जुन भी रथ से उतर कर उन्हें रोकने के लिए दौड़े। जैसे-तैसे अर्जुन ने क्रोधित श्रीकृष्ण को रोका और उन्हें शांत किया। अर्जुन ने प्रतिज्ञा की कि अब वे युद्ध में ढिलाई नहीं बरतेंगे। तब श्रीकृष्ण और अर्जुन रथ पर सवार होकर पुन: युद्ध करने लगे। जब अर्जुन क्रोधित होकर बाण वर्षा करने लगे तो कौरवों की सेना के बड़े-बड़े वीर भी भयभीत हो गए। इस प्रकार युद्ध का तीसरा दिन भी समाप्त हो गया।
- चौथे दिन भी भीष्म और अर्जुन में भयंकर युद्ध हुआ। इधर भीमसेन क्रोधित होकर कौरवों का सेना का नाश करने लगे। देखते ही देखते भीमसेन ने दुर्योधन के 14 भाइयों का वध कर दिया। यह देखकर भीष्म आदि वीर भीम पर टूट पड़े, लेकिन घटोत्कच ने भीम को बचा लिया।
इस प्रकार चौथे दिन का युद्ध समाप्त हो गया। इसी प्रकार पांचवे व छठे दिन भी दोनों पक्षों में भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध के सातवे दिन कौरव सेना ने महाव्यूह की रचना की तथा पांडव सेना ने शृंगाटक नाम के व्यूह की रचना की। इस दिन भीम ने दुर्योधन के आठ भाइयों का वध कर दिया।
इस प्रकार चौथे दिन का युद्ध समाप्त हो गया। इसी प्रकार पांचवे व छठे दिन भी दोनों पक्षों में भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध के सातवे दिन कौरव सेना ने महाव्यूह की रचना की तथा पांडव सेना ने शृंगाटक नाम के व्यूह की रचना की। इस दिन भीम ने दुर्योधन के आठ भाइयों का वध कर दिया।
युद्ध करते समय यदि वह मेरे सामने आ जाए तो मैं अपने शस्त्र रख दूंगा, उस समय तुम मुझ पर वार कर सकते हो। अत्यधिक घायल होने के कारण मैं युद्ध करने में असमर्थ हो जाऊंगा। उस स्थिति में तुम ये युद्ध जीत सकते हो। इस प्रकार भीष्म पितामह से उनकी मृत्यु का उपाय जानकर पांडव पुन: अपने शिविर में आ गए।
- युद्ध के दसवें दिन भीष्म पितामह पुन: पांडवों की सेना का संहार करने लगे। यह देख अर्जुन आदि वीर शिखंडी को आगे कर भीष्म के सामने आ डटे। शिखंडी ने भीष्म को घायल कर दिया, लेकिन भीष्म ने उस पर प्रहार नहीं किया। भीष्म की रक्षा के लिए अनेक कौरव वीर आगे आए, लेकिन वे अर्जुन के आगे नहीं टिक सके।
अर्जुन ने पराक्रम दिखाते हुए भीष्म के शरीर को बाणों से छलनी कर दिया। इस प्रकार अत्यधिक घायल होने के कारण भीष्म रथ से गिर पड़े। उनके शरीर के हर अंग पर बाण लगे हुए थे। इसलिए उनका शरीर उन बाणों पर ही टिक गया। भीष्म ने देखा कि इस समय सूर्य दक्षिणायन में है, इसलिए यह मृत्यु के लिए उचित समय नहीं है। यह सोचकर उन्होंने अपने प्राणों का त्याग नहीं किया।
अर्जुन ने पराक्रम दिखाते हुए भीष्म के शरीर को बाणों से छलनी कर दिया। इस प्रकार अत्यधिक घायल होने के कारण भीष्म रथ से गिर पड़े। उनके शरीर के हर अंग पर बाण लगे हुए थे। इसलिए उनका शरीर उन बाणों पर ही टिक गया। भीष्म ने देखा कि इस समय सूर्य दक्षिणायन में है, इसलिए यह मृत्यु के लिए उचित समय नहीं है। यह सोचकर उन्होंने अपने प्राणों का त्याग नहीं किया।
युद्ध के ग्यारहवे दिन सुबह पुन: कौरव व पांडव भीष्म पितामह को देखने पहुंचे। भीष्म के कहने पर अर्जुन ने अद्भुत पराक्रम दिखाते हुए धरती पर बाण मारकर एक जल की धारा प्रकट की, जिसे पीने से भीष्म पितामह को तृप्ति का अनुभव हुआ। जब कर्ण को पता चला कि भीष्म बाणों की शय्या पर हैं तो वह उनसे मिलने पहुंचा। कर्ण ने भीष्म से पांडवों के विरुद्ध युद्ध करने की आज्ञा मांगी। भीष्म ने उसे युद्ध करने की आज्ञा दे दी।
- भीष्म पितामह के घायल होने पर कौरवों की सेना बिल्कुल उत्साहहीन हो गई, लेकिन कर्ण के आते ही कौरवों में पुन: उत्साह का संचार हो गया और वे युद्ध के लिए तैयार हो गए। कर्ण के आते ही दुर्योधन भी प्रसन्न हो गया। कर्ण के कहने पर दुर्योधन ने गुरु द्रोणाचार्य को अपनी सेना का सेनापति नियुक्त किया। तब द्रोणाचार्य ने दुर्योधन से कहा कि मैं अपनी पूरी शक्ति से पांडवों के साथ युद्ध करूंगा, लेकिन राजा द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न का वध मैं नहीं कर सकूंगा क्योंकि उसकी उत्पत्ति मेरे ही वध के लिए हुई है।
सेनापति बनने के बाद द्रोणाचार्य ने दुर्योधन से पूछा कि मैं तुम्हारा कौन सा प्रिय काम करूं। तब दुर्योधन ने कहा कि आप युधिष्ठिर को बंदी बनाकर मेरे पास ले आइए। तब द्रोणाचार्य ने प्रतिज्ञा की कि यदि अर्जुन ने युधिष्ठिर की रक्षा न की तो मैं आसानी से युधिष्ठिर को बंदी बना लूंगा। जब पांडवों को द्रोणाचार्य की इस प्रतिज्ञा के बारे में पता चला तो उन्होंने मिलकर युधिष्ठिर की रक्षा करने का फैसला लिया।
सेनापति बनने के बाद द्रोणाचार्य ने दुर्योधन से पूछा कि मैं तुम्हारा कौन सा प्रिय काम करूं। तब दुर्योधन ने कहा कि आप युधिष्ठिर को बंदी बनाकर मेरे पास ले आइए। तब द्रोणाचार्य ने प्रतिज्ञा की कि यदि अर्जुन ने युधिष्ठिर की रक्षा न की तो मैं आसानी से युधिष्ठिर को बंदी बना लूंगा। जब पांडवों को द्रोणाचार्य की इस प्रतिज्ञा के बारे में पता चला तो उन्होंने मिलकर युधिष्ठिर की रक्षा करने का फैसला लिया।
जब युधिष्ठिर ने देखा कि चक्रव्यूह के कारण उनके सैनिक मारे जा रहे हैं तो उन्होंने अभिमन्यु से इस व्यूह को तोडऩे के लिए कहा। अभिमन्यु ने कहा कि मुझे इस व्यूह को तोडऩा तो आता है, लेकिन इससे बाहर निकलने का उपाय मुझे नहीं पता। तब युधिष्ठिर व भीम ने अभिमन्यु को विश्वास दिलाया कि तुम जिस स्थान से व्यूह भंग करोगे, हम भी उसी स्थान से व्यूह में प्रवेश कर जाएंगे और व्यूह का विध्वंस कर देंगे।
अभिमन्यु के पराक्रम को देखकर कर्ण आचार्य द्रोण के पास गया और उसे मारने का उपाय पूछा। तब द्रोणाचार्य ने कहा कि यदि अभिमन्यु का धनुष व प्रत्यंचा काटी जा सके व उसके घोड़े व सारथि को मार दिया जाए तो इसका वध संभव है। कर्ण ने ऐसा ही किया। रथ से उतरते ही अभिमन्यु को कर्ण, अश्वत्थामा, दु:शासन, द्रोणाचार्य, दुर्योधन व शकुनि ने मार डाला। अभिमन्यु की मृत्यु से पांडवों को बहुत दु:ख हुआ।
अर्जुन ने युधिष्ठिर से अभिमन्यु की मृत्यु का प्रसंग विस्तार पूर्वक जाना। जब अर्जुन को पता चला कि जयद्रथ के कारण ही पांडव वीर चक्रव्यूह में प्रवेश नहीं कर पाए तो अर्जुन ने प्रतिज्ञा की कि कल मैं निश्चय ही जयद्रथ का वध कर डालूंगा अथवा स्वयं जलती चिता में प्रवेश कर जाऊंगा।