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Friday, July 4, 2014

महाभारत सीरीज #MAHABHARAT #HINDUISM, #SANATANDHARM

महाभारत 15: भीष्म ने पांडवों को खुद बताया था अपनी मौत का उपाय
महाभारत युद्ध
कौरव व पांडवों की सेना युद्ध की इच्छा से कुरुक्षेत्र में एकत्रित हो गई। दोनों पक्ष के सेना प्रमुखों ने युद्ध के कुछ नियम निर्धारित किए। जब दोनों पक्ष के वीर आमने-सामने आए तो कौरवों के पक्ष में भीष्म, द्रोणाचार्य आदि को देखकर अर्जुन का मन व्यथित हो गया। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें गीता का उपदेश दिया। युद्ध शुरू होने से पहले युधिष्ठिर ने भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य व महाराज शल्य से युद्ध करने की आज्ञा ली। युद्ध की घोषणा होते ही कौरव व पांडवों की सेना में भयंकर मार-काट शुरू हो गई। दो दिनों तक इसी प्रकार युद्ध होता रहा।
 9 दिनों तक पांडव व कौरवों में भयंकर युद्ध होता रहा। इन 9 दिनों में भीष्म पितामह ने पांडवों की सेना के कई वीर योद्धाओं का वध कर दिया। यह देखकर पांडवों की सेना भयभीत हो गई। तब श्रीकृष्ण के कहने पर पांडव भीष्म पितामह के पास गए और उनसे उनकी मृत्यु का उपाय पूछा। भीष्म पितामह बताया कि तुम्हारी सेना में शिखंडी नाम का योद्धा है, वह पहले स्त्री था। इसलिए मैं उसके सामने शस्त्र नहीं उठाऊंगा। इस प्रकार भीष्म ने बड़ी ही सहजता ने पांडवों को अपनी मृत्यु का उपाय बता दिया।  
महाभारत 15: भीष्म ने पांडवों को खुद बताया था अपनी मौत का उपाययुद्ध के तीसरे दिन भीष्म ने गरुड़ व्यूह की रचना की। इस व्यूह को तोडऩे के लिए अर्जुन ने अर्धचंद्राकार व्यूह बनाया। शंख बजते ही कौरवों व पांडवों की सेना में भयंकर युद्ध शुरू हो गया। भीष्म पितामह ने अपना पराक्रम दिखाते हुए पांडवों की सेना में खलबली मचा दी। पांडव पक्ष के अनेक वीर भीष्म के इस रौद्र रूप को देखकर भागने लगे। श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन भीष्म पितामह से युद्ध करने आए, लेकिन मोहवश अर्जुन युद्ध में ढिलाई करते रहे। यह देखकर श्रीकृष्ण को क्रोध आ गया और वे स्वयं रथ से उतरकर सुदर्शन चक्र धारण कर भीष्म को मारने दौड़े।  
यह देख अर्जुन भी रथ से उतर कर उन्हें रोकने के लिए दौड़े। जैसे-तैसे अर्जुन ने क्रोधित श्रीकृष्ण को रोका और उन्हें शांत किया। अर्जुन ने प्रतिज्ञा की कि अब वे युद्ध में ढिलाई नहीं बरतेंगे। तब श्रीकृष्ण और अर्जुन रथ पर सवार होकर पुन: युद्ध करने लगे। जब अर्जुन क्रोधित होकर बाण वर्षा करने लगे तो कौरवों की सेना के बड़े-बड़े वीर भी भयभीत हो गए। इस प्रकार युद्ध का तीसरा दिन भी समाप्त हो गया।
- चौथे दिन भी भीष्म और अर्जुन में भयंकर युद्ध हुआ। इधर भीमसेन क्रोधित होकर कौरवों का सेना का नाश करने लगे। देखते ही देखते भीमसेन ने दुर्योधन के 14 भाइयों का वध कर दिया। यह देखकर भीष्म आदि वीर भीम पर टूट पड़े, लेकिन घटोत्कच ने भीम को बचा लिया। 

इस प्रकार चौथे दिन का युद्ध समाप्त हो गया। इसी प्रकार पांचवे व छठे दिन भी दोनों पक्षों में भयंकर युद्ध हुआ। युद्ध के सातवे दिन कौरव सेना ने महाव्यूह की रचना की तथा पांडव सेना ने शृंगाटक नाम के व्यूह की रचना की। इस दिन भीम ने दुर्योधन के आठ भाइयों का वध कर दिया। 
महाभारत 15: भीष्म ने पांडवों को खुद बताया था अपनी मौत का उपाय युद्ध के आठवे व नौवे दिन भी भीष्म पितामह ने पांडवों की सेना का संहार किया। उनके सामने कोई भी योद्धा नहीं टिक पाता था। नौवे दिन युद्ध समाप्त होने के बाद पांडव भीष्म पितामह से मिलने पहुंचे और उनसे उनकी मृत्यु का उपाय पूछा। भीष्म पितामह ने बताया कि तुम्हारी सेना में शिखंडी नामक जो योद्धा है, वह पहले स्त्री था। 

युद्ध करते समय यदि वह मेरे सामने आ जाए तो मैं अपने शस्त्र रख दूंगा, उस समय तुम मुझ पर वार कर सकते हो। अत्यधिक घायल होने के कारण मैं युद्ध करने में असमर्थ हो जाऊंगा। उस स्थिति में तुम ये युद्ध जीत सकते हो। इस प्रकार भीष्म पितामह से उनकी मृत्यु का उपाय जानकर पांडव पुन: अपने शिविर में आ गए।
- युद्ध के दसवें दिन भीष्म पितामह पुन: पांडवों की सेना का संहार करने लगे। यह देख अर्जुन आदि वीर शिखंडी को आगे कर भीष्म के सामने आ डटे। शिखंडी ने भीष्म को घायल कर दिया, लेकिन भीष्म ने उस पर प्रहार नहीं किया। भीष्म की रक्षा के लिए अनेक कौरव वीर आगे आए, लेकिन वे अर्जुन के आगे नहीं टिक सके। 

अर्जुन ने पराक्रम दिखाते हुए भीष्म के शरीर को बाणों से छलनी कर दिया। इस प्रकार अत्यधिक घायल होने के कारण भीष्म रथ से गिर पड़े। उनके शरीर के हर अंग पर बाण लगे हुए थे। इसलिए उनका शरीर उन बाणों पर ही टिक गया। भीष्म ने देखा कि इस समय सूर्य दक्षिणायन में है, इसलिए यह मृत्यु के लिए उचित समय नहीं है। यह सोचकर उन्होंने अपने प्राणों का त्याग नहीं किया। 
महाभारत 15: भीष्म ने पांडवों को खुद बताया था अपनी मौत का उपाय- दसवें दिन का युद्ध समाप्त होने पर पांडव व कौरव पक्ष के वीर भीष्म पितामह के पास एकत्रित हुए। भीष्म पितामह का शरीर बाणों की शय्या पर टिका हुआ था और उनका सिर नीचे लटक रहा था। भीष्म के कहने पर अर्जुन ने अपने बाणों से उनके सिर को सहारा दिया। भीष्म पितामह के उपचार के लिए दुर्योधन अनेक वैद्य ले आया, लेकिन भीष्म ने उपचार करवाने से इनकार कर दिया। भीष्म पितामह के कहने पर दोनों पक्षों के वीर अपने-अपने शिविरों में चले गए। 

​युद्ध के ग्यारहवे दिन सुबह पुन: कौरव व पांडव भीष्म पितामह को देखने पहुंचे। भीष्म के कहने पर अर्जुन ने अद्भुत पराक्रम दिखाते हुए धरती पर बाण मारकर एक जल की धारा प्रकट की, जिसे पीने से भीष्म पितामह को तृप्ति का अनुभव हुआ। जब कर्ण को पता चला कि भीष्म बाणों की शय्या पर हैं तो वह उनसे मिलने पहुंचा। कर्ण ने भीष्म से पांडवों के विरुद्ध युद्ध करने की आज्ञा मांगी। भीष्म ने उसे युद्ध करने की आज्ञा दे दी।
- भीष्म पितामह के घायल होने पर कौरवों की सेना बिल्कुल उत्साहहीन हो गई, लेकिन कर्ण के आते ही कौरवों में पुन: उत्साह का संचार हो गया और वे युद्ध के लिए तैयार हो गए। कर्ण के आते ही दुर्योधन भी प्रसन्न हो गया। कर्ण के कहने पर दुर्योधन ने गुरु द्रोणाचार्य को अपनी सेना का सेनापति नियुक्त किया। तब द्रोणाचार्य ने दुर्योधन से कहा कि मैं अपनी पूरी शक्ति से पांडवों के साथ युद्ध करूंगा, लेकिन राजा द्रुपद के पुत्र धृष्टद्युम्न का वध मैं नहीं कर सकूंगा क्योंकि उसकी उत्पत्ति मेरे ही वध के लिए हुई है।

सेनापति बनने के बाद द्रोणाचार्य ने दुर्योधन से पूछा कि मैं तुम्हारा कौन सा प्रिय काम करूं। तब दुर्योधन ने कहा कि आप युधिष्ठिर को बंदी बनाकर मेरे पास ले आइए। तब द्रोणाचार्य ने प्रतिज्ञा की कि यदि अर्जुन ने युधिष्ठिर की रक्षा न की तो मैं आसानी से युधिष्ठिर को बंदी बना लूंगा। जब पांडवों को द्रोणाचार्य की इस प्रतिज्ञा के बारे में पता चला तो उन्होंने मिलकर युधिष्ठिर की रक्षा करने का फैसला लिया। 
महाभारत 15: भीष्म ने पांडवों को खुद बताया था अपनी मौत का उपाय- गुरु द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर को बंदी बनाने का कई बार प्रयास किया, लेकिन अर्जुन के कारण वे सफल नहीं हो पाए। तब द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की और दुर्योधन से कहा कि तुम किसी बहाने से अर्जुन को युद्धभूमि से दूर ले जाओ ताकि मैं युधिष्ठिर को बंदी बना सकूं। दुर्योधन के कहने पर संशप्तक योद्धा अर्जुन को युद्ध के लिए दूर ले गए। 

जब युधिष्ठिर ने देखा कि चक्रव्यूह के कारण उनके सैनिक मारे जा रहे हैं तो उन्होंने अभिमन्यु से इस व्यूह को तोडऩे के लिए कहा। अभिमन्यु ने कहा कि मुझे इस व्यूह को तोडऩा तो आता है, लेकिन इससे बाहर निकलने का उपाय मुझे नहीं पता। तब युधिष्ठिर व भीम ने अभिमन्यु को विश्वास दिलाया कि तुम जिस स्थान से व्यूह भंग करोगे, हम भी उसी स्थान से व्यूह में प्रवेश कर जाएंगे और व्यूह का विध्वंस कर देंगे।
महाभारत 15: भीष्म ने पांडवों को खुद बताया था अपनी मौत का उपाय- युधिष्ठिर व भीम की बात मानकर अभिमन्यु चक्रव्यूह भेदकर उस में प्रवेश कर गया, लेकिन युधिष्ठिर, भीम आदि वीरों को जयद्रथ ने बाहर ही रोक दिया।  चक्रव्यूह में घुसकर अभिमन्यु ने कौरवों की सेना का संहार करना शुरू किया। अभिमन्यु ने अकेले ही अनेक कौरव वीरों का वध कर दिया और दु:शासन व कर्ण को पराजित कर दिया। 

अभिमन्यु के पराक्रम को देखकर कर्ण आचार्य द्रोण के पास गया और उसे मारने का उपाय पूछा। तब द्रोणाचार्य ने कहा कि यदि अभिमन्यु का धनुष व प्रत्यंचा काटी जा सके व उसके घोड़े व सारथि को मार दिया जाए तो इसका वध संभव है। कर्ण ने ऐसा ही किया। रथ से उतरते ही अभिमन्यु को कर्ण, अश्वत्थामा, दु:शासन, द्रोणाचार्य, दुर्योधन व शकुनि ने मार डाला। अभिमन्यु की मृत्यु से पांडवों को बहुत दु:ख हुआ। 
महाभारत 15: भीष्म ने पांडवों को खुद बताया था अपनी मौत का उपाय- उस दिन का युद्ध समाप्त होने तक अर्जुन संशप्तकों को पराजित कर चुके थे और जब वे अपने शिविर में लौट रहे थे, तभी उन्हें किसी अनहोनी की आशंका होने लगी। शिविर में पहुंचने पर उन्हें अभिमन्यु के पराक्रम व मृत्यु की सूचना मिली। अपने प्रिय पुत्र अभिमन्यु की मृत्यु के बारे में जानकर अर्जुन को बहुत दु:ख हुआ। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया कि अभिमन्यु वीरों की तरह लड़ता हुआ मृत्यु को प्राप्त हुआ है। इसलिए उसकी मृत्यु पर शोक नहीं करना चाहिए। 
अर्जुन ने युधिष्ठिर से अभिमन्यु की मृत्यु का प्रसंग विस्तार पूर्वक जाना। जब अर्जुन को पता चला कि जयद्रथ के कारण ही पांडव वीर चक्रव्यूह में प्रवेश नहीं कर पाए तो अर्जुन ने प्रतिज्ञा की कि कल मैं निश्चय ही जयद्रथ का वध कर डालूंगा अथवा स्वयं जलती चिता में प्रवेश कर जाऊंगा। 


Friday, February 21, 2014

HINDUISM DECODED---महाभारत में यज्ञ में पशु बलि का निषेध

Does Hinduism prohibit meat eating ?
There are actually very less things as prohibits, commands, mandates etc in Hinduism. So in this case too Hinduism does not prohibit, but it recommends that meat eating could be avoided for spiritual benefits and kindness towards fellow creatures.

Is there a rule about Hindus eating meat ?

Ahimsa means refraining from injuring-physically, mentally or emotionally-anyone or any living creature. The Hindu who wishes to strictly follow the path of non-injury to all creatures naturally adopts a vegetarian diet. As in other matters, Hinduism has very few rigid "do's and don'ts." Rather, its injunctions are called restraints and observances. The ultimate authority for answers to such questions is one's own conscience. Today in America and Europe there are literally millions of vegetarians. This is because they want to live a long time and be healthy. Many feel a certain moral obligation to their own conscience which they wish to fulfill. There are no commandments. Hindu religion gives us the wisdom to make up our own mind on what we put in our body, for it is the only one we have, in this life at least.
स्वामी दयानंद के अनुसार रामायण, महाभारत, मनु स्मृति पुराण आदि में जो कुछ वेदानुकूल हैं वह मान्य हैं एवं जो कुछ वेद विरुद्ध हैं वह त्यागने योग्य हैं। इस लेख में प्रसिद्द वैदिक विद्वान एवं अथर्ववेद भाष्यकार श्री विश्वनाथ जी विद्यालंकार जी द्वारा लिखित पुस्तक वैदिक पशु यज्ञ मीमांसा से महाभारत में यज्ञ में पशु बलि का निषेध करने वाले प्रमाणों का संग्रह किया गया हैं। पाठक लाभान्वित होगे यही आशय हैं।