ब्रह्मभूतस्तु संसृत्यै विद्वान्नावर्तते पुनः |
विज्ञातव्यमत: सम्यग्ब्रह्माभिन्नत्वमात्मन: ||
आदि शंकराचार्य कृत विवेक चूडामणि
अर्थ : ब्रह्मभूत हो जानेपर विद्वान पुनः जन्म-मरण रूपी संसारचक्रमें नहीं पडता; इसलिए आत्माका ब्रह्मसे अभिन्नत्व भ...ली प्रकार जान लेना चाहिए |
भावार्थ : जिस ब्रह्मसे हमारी निर्मिति हुई, उसी ब्रह्मसे जब तक हमारा साक्षात्कार नहीं हो जाता तब जन्म-मरणका क्रम चलता रहता है | हम ब्रह्मसे भिन्न है यह हमारी अज्ञानता है
विज्ञातव्यमत: सम्यग्ब्रह्माभिन्नत्वमात्मन: ||
आदि शंकराचार्य कृत विवेक चूडामणि
अर्थ : ब्रह्मभूत हो जानेपर विद्वान पुनः जन्म-मरण रूपी संसारचक्रमें नहीं पडता; इसलिए आत्माका ब्रह्मसे अभिन्नत्व भ...ली प्रकार जान लेना चाहिए |
भावार्थ : जिस ब्रह्मसे हमारी निर्मिति हुई, उसी ब्रह्मसे जब तक हमारा साक्षात्कार नहीं हो जाता तब जन्म-मरणका क्रम चलता रहता है | हम ब्रह्मसे भिन्न है यह हमारी अज्ञानता है