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majpahit lineage in 1347E rajatva jayvishnuvardhani humbucker. Was completed in But it had an earlier start was the emperor. Chandi RAM panatran rock legend 106 pictures.3 which of the following to display the main form of Hanuman is mighty. This is from the Sinhalese and Hanuman to get started kumbhakarn after the death of the narrative ends. Shilachitra of Hindu prambanan-javani is engraved, in style While panatran is a complete shilashilp of javani. These painted vasrabhushan and asra-shasra also shapes the characters with Japanese-style effect. Ankorvat Temple located at campo Emperor suryavarman II (1112-53E.) took place in the rajatvakal. The force of the Emperor in the temple corridor-women of Heaven-Hell, manthan dev-demon war, Mahabharata, There are many associated with the Ramayana harivansh Rai and shilachitra. Here is a very brief narrative in rupayit RAM shilachitron. These series of Ravana shilachitron slaughter of adoration by the gods for begins with. Then SITA swayamvar scene. The presentation of these two major events of balkand after Leipzig paper yesterday spoke and the keg has been depicting the slaughter. Next shilachitra Golden deer bow RAM-invectives appear, runners behind. Then there is the view of the friendship of the RAM from sugreev. Again, Vali and sugreev's dvendva war is portrayed. All shilachitron in the presence of Hanuman, Rama in Ashok parterre-Ravana war, SITA RAM Ayodhya ordeal and return of scene.4 ankorvat of shilachitron rupayit in RAM is extremely sparse and brief narrative though, however it is important, Because of its presentation has been a professional adikavya. Also important in Thailand shilachitron RAM narrative space. Thailand's capital of Bangkok court complex on the southern edge of Wat-Po or jetuvan is the kindergarten. 152 shilapton marble in its initiation on RAM Katha pictures are passed. J. m. "in his book" the romanic pictures of cadets and their study has been done. This treatise is divided into nine sections to the shilachitron have been doing their analysis-1. SITA-haran, (2) travel (3) Sri Lanka Hanuman Lanka Dahan, (iv) eviction, vibhishan (5) pseudo SITA case, bridge construction (6), (7) Lanka Serv
शिला चित्रों में रुपादित रामायण
जो कथा किसी भाषा के माध्यम से कही जाती है, उसे उस भाषा के जानने वाले ही समझ पाते हैं, किंतु जो कथा चित्रों में रुपायित होती है, उसे सब समझ सकते हैं। संभवत: इसी कारण दक्षिण-पूर्व एशिया के अनेक स्थलों पर शिलाचित्रों में रामकथा की अभिव्यक्ति हुई है। कई देशों में शिलाचित्र श्रृंखलाओं में रामचरित का वर्णन हुआ है। उनमें जवा के प्रम्बनान तथा पनातरान, कंपूचित्रा के अंकारेवाट और थाईलैंड के जेतुवन विहार के नाम उल्लेखनीय हैं। जावा के हरे-भरे मनमोहक मैदान में अवस्थित प्रम्वनान का पुरावशेष चंडी सेवू के नाम से विख्यात है। इसे चंड़ी लाराजोंगरांग भी कहा जाता है। इस परिसर में २३५ मंदिर के मग्नावशेष हैं। इसके वर्गाकार आंगन के मध्य भाग में उत्तर से दक्षिण पंक्तिवद्ध तीन मंदिर हैं। बीच में शिव मंदिर है। शिव मंदिर के उत्तर ब्रह्मा तथा दक्षिण में विष्णु मंदिर हैं। शिव और ब्रह्मा मंदिर में राम कथा और विष्णु मंदिर में कृष्ण लीला के शिलाचित्र हैं। चंडी लाराजोंगरंग के मंदिरों का निर्माण दक्ष नामक राजकुमार ने नौवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में करवाया था। प्रम्बनान के मंदिरों को १५४९ई. के आस-पास मेरापी ज्वालामुखी के विस्फोट में काफी क्षति पहुँची। वे सदियों तक ज्वालामुखी के लावा के नीचे दबे रहे। योग्यकार्टा के पुरातत्व विभाग द्वारा १८८५ई. में उसकी खुदाई शुरु हुई। फिर तो, उसके अवशेष को देख कर लोग अचंभित हो गये। तीन सौ वर्षों से मुसलमान बने लोग मंदिर में धूप-दीप लेकर पूजा अर्चना करने दौड़ पड़े। इस घटना का चश्मदीद गवाह फ्रांसीसी यात्री जूल ने हाजियों को भी हिंदू मंदिर में पूजा करते देखा था।१ इंडोनेशिया के पुरातत्व विभाग ने १९१९ई. में पूरे मनोयोग के साथ प्रम्बनान मंदिर परिसर स्थित विशाल शिवालय के पुनर्निमाण का कार्य पूर्ण वैज्ञानिक पद्धति से आरंभ किया। इस कार्य में अनेक यूरोपीय विद्वानों ने सक्रिय रुप से सहयोग किया। सन् १९५३ई. में यह दु:साध्य कार्य पूरा हुआ। इसे वास्तव में पुरातत्त्व अभियंत्रण का चमत्कार ही कहा जा सकता है। इसके अंदर रामायण शिलाचित्रों को यथास्थान स्थापित कर दिया गया है। जर्मन विद्वान विलेन स्टूरहाइम ने इन रामायण शिलाचित्रों का अध्ययन किया है। प्रम्बनान के शिव मंदिर में रामकथा के ४२ और ब्रह्मा मंदिर में ३० शिला चित्र हैं। इस प्रकार ७२ शिलाचित्रों में यहाँ संपूर्ण राम कथा रुपायित हुई है।२ प्रम्बनान के शिलाचित्रों में उत्कीर्ण राम कथा में आदि कवि की रचना से अनेक स्थलों पर भिन्नता है। इनमें सीता हरण के समय रावण द्वार दानव की पीठ पर स्थापित यान से यात्रा करना, सीता द्वारा जटायु को अंगूठी देना, सेतु निर्माण के समय मछलियों द्वारा पत्थरों को निगलना, रावण के दरबार में अंगद का कान काटा जाना आदि प्रसंग वाल्मीकि रामायण में नहीं हैं। इस विशाल श्रृंखला में कुछ चित्र ऐसे भी हैं जहाँ व्याख्याकारों को उसी प्रकार अंटक जाना पड़ता है, जिस प्रकार महाभारत के लिपीकार को व्यास के दृष्टिकूटों को समझने के लिए कलम रोकनी पड़ती थी। प्रम्बनान के शिलाचित्रों की स्थापना के चार सौ वर्ष बाद पूर्वी जावा में पनातरान के शिला शिल्प में पुन: राम कथा की अभिव्यक्ति हुई है। चंडी पनातरान ब्लीटार जिला में केतुल पर्वत के पास दक्षिण-पश्चिम की तलहटी में स्थित है। यहाँ चारों ओर से वृत्ताकार दीवार से घिरा एक शिव मंदिर है जिसका मुख्य द्वार पश्चिम की ओर है। इसका निर्माण कार्य मजपहित वंश के राजकुमार हयमबुरुक की माता जयविष्णुवर्धनी के राजत्व काल में १३४७ई. में पूरा हुआ था, किंतु इसका आरंभ किसी पूर्ववर्ती सम्राट ने ही किया था। चंडी पनातरान में राम कथा के १०६ शिला चित्र है।३ इनमें मुख्य रुप से हनुमान के पराक्रम को प्रदर्शित किया गया है। इसका आरंभ हनुमान के लंका प्रवेश से हुआ है और कुंभकर्ण की मृत्यु के बाद यहाँ की कथा समाप्त हो जाती है। प्रम्बनान के शिलाचित्र हिंदू-जावानी शैली में उत्कीर्ण है, जबकि पनातरान का शिलाशिल्प पूरी तरह जावानी है। इनमें चित्रित वस्राभूषण तथा अस्र-शस्र के साथ पात्रों की आकृतियों पर भी जापानी शैली का प्रभाव है। कंपूचिया स्थित अंकोरवाट मंदिर का निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय (१११२-५३ई.) के राजत्वकाल में हुआ था। इस मंदिर के गलियारे में तत्कालीन सम्राट के बल-वैमन का साथ स्वर्ग-नरक, समुद्र मंथन, देव-दानव युद्ध, महाभारत, हरिवंश तथा रामायण से संबद्ध अनेक शिलाचित्र हैं। यहाँ के शिलाचित्रों में रुपायित राम कथा बहुत संक्षिप्त है। इन शिलाचित्रों की श्रृंखला रावण वध हेतु देवताओं द्वारा की गयी आराधना से आरंभ होती है। उसके बाद सीता स्वयंवर का दृश्य है। बालकांड की इन दो प्रमुख घटनाओं की प्रस्तुति के बाद विराध एवं कबंध वध का चित्रण हुआ है। अगले शिलाचित्र में राम धनुष-बाण लिए स्वर्ण मृग के पीछे दौड़ते हुए दिखाई पड़ते हैं। इसके उपरांत सुग्रीव से राम की मैत्री का दृश्य है। फिर, वालि और सुग्रीव के द्वेंद्व युद्ध का चित्रण हुआ है। परवर्ती शिलाचित्रों में अशोक वाटिका में हनुमान की उपस्थिति, राम-रावण युद्ध, सीता की अग्नि परीक्षा और राम की अयोध्या वापसी के दृश्य हैं।४ अंकोरवाट के शिलाचित्रों में रुपायित राम कथा यद्यपि अत्यधिक विरल और संक्षिप्त है, तथापि यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसकी प्रस्तुति आदिकाव्य की कथा के अनुरुप हुई है। राम कथा के शिलाचित्रों में थाईलैंड का भी महत्वपूर्ण स्थान है। थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक के राजभवन परिसर के दक्षिणी किनारे पर वाट-पो या जेतुवन विहार है। इसके दीक्षा कक्ष में संगमरमर के १५२ शिलापटों पर राम कथा के चित्र उत्तीर्ण हैं। जे.एम. कैडेट की पुस्तक 'रामकियेन' में उनके चित्र हैं और उनका अध्ययन भी किया गया है। इस ग्रंथ में उन शिलाचित्रों को नौ खंडों में विभाजित कर उनका विश्लेषण किया गया है- (१) सीता-हरण, (२) हनुमान की लंका यात्रा, (३) लंका दहन, (४) विभीषण निष्कासन, (५) छद्म सीता प्रकरण, (६) सेतु निर्माण, (७) लंका सर्वेक्षण, (९) कुंभकर्ण तथा इंद्रजीत वध और (९) अंतिम युद्ध। दक्षिण-पूर्व एशिया के रामायण शिलाचित्रों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारत में वैष्णव और शैव विचारों का समन्वय की प्रवृत्ति मध्यकाल में विकसित होते है, जबकि इस क्षेत्र में इस परंपरा का आरंभ प्रम्बनान के शिवालय से ही हो जाता है जिसकी तिथि नौवीं शताब्दी है। इसके साथ ही यहाँ वैष्णव और शैव के साथ बौद्ध आस्था का भी समन्वय हुआ है।