यह स्थान 51 शक्तिपीठों में से एक है। आप में से कुछ लोगों ने अनुमान लगाना शुरू कर दिया होगा। भगवान शिव यहां उन्मत्त भैरव के रूप में स्थित हैं। यहां देवी के दर्शन ज्योति रूप में किए जाते हैं।देवी का स्थान है। पर्वत की चट्टान से नौ विभिन्न स्थानों पर बिना किसी ईंधन के ज्योति स्वतः ही जलती रहती है।ती सती की जीभ गिरी थी
यहां देवी को ज्वाला देवी के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि सभी शक्तिपीठों में देवी मां हमेशा निवास करती हैं।
बादशाह अकबर ने ज्वाला देवी की शक्ति का अनादर किया और मां की तेजोमय ज्वाला को बुझाने का हर संभव प्रयास किया।प्रयास में असफल रहा। अकबर को जब ज्वाला देवी की शक्ति का आभास हुआ तो अपनी भूल की क्षमा मांगने के लिए अकबर ने ज्वाला देवी को सवा मन सोने का छत्र चढ़ाया।
संबंधित योगी गोरक्षनाथ की कथा इस क्षेत्र में काफी प्रसिद्ध है। कथा है कि गोरक्षनाथ जी यहां माता की आराधना किया करते थे।गोरक्षनाथ को भूख लगी तब उन्होंने माता से कहा कि आप आग जलाकर पानी गर्म करें, मैं भिक्षा मांगकर लाता हूं। माता आग जलाकर बैठ गईं और गोरक्षनाथ भिक्षा मांगने चले गए।परिवर्तन हुआ और कलियुग आ गया। भिक्षा मांगने गए गोरक्षनाथ लौटकर नहीं आए। गोरक्षनाथ जी का इंतजार कर रही हैं। मान्यता है कि सतयुग आने पर बाबा गोरक्षनाथ लौटकर आएंगे, तब तक यह ज्वाला यूं ही जलती रहेगी।
गोरख डिब्बी' है। यहां एक कुण्ड में पानी खौलता हुआ प्रतीत होता है जबकि छूने पर कुंड का पानी ठंडा लगता है।