Saturday, February 7, 2015

ramayan in world

Ramayana means Rama's travel path
Faculty jobs in adikavi Valmiki Ramayan processed not only in the sense is that this unique country-foreign languages in various disciplines of literature of more than three hundred original compositions of whittaker upjivya is, on the contrary in this context also that it in addition to the many countries India theatrical, music, sculpture and painting influenced the arts and ancient Indian history sources its origin in spite of the failure of all efforts to explore this Homer processed ' allied ' And ' Odyssey ', Virgil processed ' ainaid ' like ' comedy ' dante and processed one of the worlds best Devine is epic. ' Ramayana ' is ' as ' RAM analyze of precession which means "RAM travel path, because precession is yatrapthavachi. It is also implicit in the fact that it arthavatta originally based on two of RAM's victory in which the first visit if love-coincidentally, Haas-is replete with glee and joy-joke, the other tribulation, cliente, disconnection, distraction, vivshata and covered with anguish. Most of the world learned the basic premise of the second visit ramkatha hosted agrees. A shloki by Ravana in the Ramayana legend of RAM from one March has only rupayit slaughter.
Mrigan kanchanam tapovnadi gamnan RAM hatva adau. Miss. vaidhehi sugreevmarnan harnan jatayu sambhashnam. Vali dasham tarnan Lanka Puri sea nearing.Taddhi ramaynam kumbhakarn pashchad Ravana hannan.
The tragic reality of life in the abduction of SITA Rama Katha rupayit and their search isextremely exciting. Ramkatha hosted foreign-travel in the context of the particular importance of SITA's travel search.
Valmiki Ramayana, kishkindha episode forty from tetalis is the extended charactersbetween chapters which is reputed as ' digvarnan '. It apes the messengers in different directions by Raj bali to have separate guidelines that meets the contemporarygeography of Asia.
This is described by valmiki, several important research locations around the worldhave been trying to identify on the modern map. The messengers in the East bycreepage sugreev seven States to beautify yavadvip (Java), Golden Island (Sumatra) and yatnapurvak jankasuta to explore recopa island was ordered. That order also saidthat ahead of the yav is a mountain peak Shishir k. Dube Island heaven to touch andwhich gods and monsters reside.
Yanivanton yav dvipan saptarajyopshobhitam. Dvipan suvarnakar manditam Goldenrecopa. Javadvip atikramya shishiro name Mountain:. Divan sprishti shrringan served:devdanav.1
The beginning of the history of South-East Asia is proof of the same dastaveti.Indonesia's Borneo island from the late third century justifications to see strong evidence of Indian culture. In a Sanskrit inscription of mulvarma's bornean Islandscommendation is engraved as follows-
Shrimat: Mr. narendrasya cosigned mahatman:. Putroshvavarma noted:yathanshuman. vanshakarta. Tasya son mahatman: tapobladmanvit:.Teshantrayanampravar: tapobladmanvit:.. Mr. mulvamrma rajandroyashtvavahusuvarnakam. Tasya yagyasya yupoyan dvijendrassamprakalpit:..2
The father of ashvavarma and the original in the article rock Verma grandfather mentions kundag. Bornean Indian culture and Sanskrit language will also be installed in time. Means that a lot of the original Verma bhartavasi rajatvakal were the first in the region. Java island and nearby areas after the description of express shonnad and administered the same as black cloud visible is mentioned in which the sea is a huge roared. This is the sea coast is the island where fierce land of residence shalmalik, a Garuda mandeh called Monster Live that safety zone sea Keep hanging on the shell of the intermediate shikhron. Prepare ahead and Sura are sea ocean dadhi. Then, there are the philosophy of white abhavale kshir sea. The sea is black mountain which he called middle rishabh called is a lake. After the delicious sea jalvala a frightening kshir sea which is a huge horse passes the home is fire.3
' Mahabharata ' in a fiction that bhriguvanshi arv Rishi's anger from which fire flameoccurred, it was the possibility of the destruction of the world. In such a situation heput the fire at sea. There was fire in the ocean where she immersed, horse face (vadvamukh) became and flames were out. That is why his name had been vadvanal.
Modern reviewers recognized that this area of the Pacific Ocean indicate a volcano. From the site malaskka may be between the philippins waterways.4 reality is often between the island groups of Indonesia philippins volcanic explosion many of which are historical evidence. Dadhi, Dhrit and Sura regarding the Black Sea, like sea water kshir aura colors indicators appear. Badvamukh mountain of North jupiter, a thirteen planned gold where the remaining holding Earth snake appear sitting. The mountain keeps a golden flag fluttering Palm marks. This is a limitation of the East pool flag. Then suvarnamay is the name of the mountain which peaks rise someones. The Sun orbiting from North round jambu Island are located, when siemens Then there are their clarity in this area of philosophy. Similar to the Sun are visible someones Lucent. Ahead of the mountain area is unknown.5 is jupiter means gold. It is estimated that the jupiter mount samb
रामायण का अर्थ राम का यात्रा पथ
आदिकवि वाल्मीकि कृत रामायण न केवल इस अर्थ में अद्वितीय है कि यह देश-विदेश की अनेक भाषाओं के साहित्य की विभिन्न विधाओं में विरचित तीन सौ से भी अधिक मौलिक रचनाओं का उपजीव्य है, प्रत्युत इस संदर्भ में भी कि इसने भारत के अतिरिक्त अनेक देशों के नाट्य, संगीत, मूर्ति तथा चित्र कलाओं को प्रभावित किया है और कि भारतीय इतिहास के प्राचीन स्रोतों में इसके मूल को तलाशने के सारे प्रयासों की विफलता के बावजूद यह होमर कृत 'इलियाड' तथा 'ओडिसी', वर्जिल कृत 'आइनाइड' और दांते कृत 'डिवाइन कॉमेडी' की तरह संसार का एक श्रेष्ठ महाकाव्य है। 'रामायण' का विश्लेषित रुप 'राम का अयन' है जिसका अर्थ है 'राम का यात्रा पथ', क्योंकि अयन यात्रापथवाची है। इसकी अर्थवत्ता इस तथ्य में भी अंतर्निहित है कि यह मूलत: राम की दो विजय यात्राओं पर आधारित है जिसमें प्रथम यात्रा यदि प्रेम-संयोग, हास-परिहास तथा आनंद-उल्लास से परिपूर्ण है, तो दूसरी क्लेश, क्लांति, वियोग, व्याकुलता, विवशता और वेदना से आवृत्त। विश्व के अधिकतर विद्वान दूसरी यात्रा को ही रामकथा का मूल आधार मानते हैं। एक श्लोकी रामायण में राम वन गमन से रावण वध तक की कथा ही रुपायित हुई है।
अदौ राम तपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्। वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव संभाषणम्। वालि निग्रहणं समुद्र तरणं लंका पुरी दास्हम्। पाश्चाद् रावण कुंभकर्ण हननं तद्धि रामायणम्।
जीवन के त्रासद यथार्थ को रुपायित करने वाली राम कथा में सीता का अपहरण और उनकी खोज अत्यधिक रोमांचक है। रामकथा की विदेश-यात्रा के संदर्भ में सीता की खोज-यात्रा का विशेष महत्व है।
वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा कांड के चालीस से तेतालीस अध्यायों के बीच इसका विस्तृत वर्ण हुआ है जो 'दिग्वर्णन' के नाम से विख्यात है। इसके अंतर्गत वानर राज बालि ने विभिन्न दिशाओं में जाने वाले दूतों को अलग-अलग दिशा निर्देश दिया जिससे एशिया के समकालीन भूगोल की जानकारी मिलती है।
इस दिशा में कई महत्वपूर्ण शोध हुए है जिससे वाल्मीकी द्वारा वर्णित स्थानों को विश्व के आधुनिक मानचित्र पर पहचानने का प्रयत्न किया गया है। कपिराज सुग्रीव ने पूर्व दिशा में जाने वाले दूतों के सात राज्यों से सुशोभित यवद्वीप (जावा), सुवर्ण द्वीप (सुमात्रा) तथा रुप्यक द्वीप में यत्नपूर्वक जनकसुता को तलाशने का आदेश दिया था। इसी क्रम में यह भी कहा गया था कि यव द्वीप के आगे शिशिर नामक पर्वत है जिसका शिखर स्वर्ग को स्पर्श करता है और जिसके ऊपर देवता तथा दानव निवास करते हैं।
यनिवन्तों यव द्वीपं सप्तराज्योपशोभितम्। सुवर्ण रुप्यक द्वीपं सुवर्णाकर मंडितम्। जवद्वीप अतिक्रम्य शिशिरो नाम पर्वत:। दिवं स्पृशति श्रृंगं देवदानव सेवित:।१
दक्षिण-पूर्व एशिया के इतिहास का आरंभ इसी दस्तावेती सबूत से होता है। इंडोनेशिया के बोर्नियो द्वीप में तीसरी शताब्दी को उत्तरार्ध से ही भारतीय संस्कृति की विद्यमानता के पुख्ता सबूत मिलते हैं। बोर्नियों द्वीप के एक संस्कृत शिलालेख में मूलवर्मा की प्रशस्ति उत्कीर्ण है जो इस प्रकार है-
श्रीमत: श्री नरेन्द्रस्य कुंडगस्य महात्मन:। पुत्रोश्ववर्मा विख्यात: वंशकर्ता यथांशुमान्।। तस्य पुत्रा महात्मान: तपोबलदमान्वित:। तेषांत्रयानाम्प्रवर: तपोबलदमान्वित:।। श्री मूलवम्र्मा राजन्द्रोयष्ट्वा वहुसुवर्णकम्। तस्य यज्ञस्य यूपोयं द्विजेन्द्रस्सम्प्रकल्पित:।।२
इस शिला लेख में मूल वर्मा के पिता अश्ववर्मा तथा पितामह कुंडग का उल्लेख है। बोर्नियों में भारतीय संस्कृति और संस्कृत भाषा के स्थापित होने में भी काफी समय लगा होगा। तात्पर्य यह कि भारतवासी मूल वर्मा के राजत्वकाल से बहुत पहले उस क्षेत्र में पहुँच गये थे। जावा द्वीप और उसके निकटवर्ती क्षेत्र के वर्णन के बाद द्रुतगामी शोणनद तथा काले मेघ के समान दिलाई दिखाई देने वाले समुद्र का उल्लेख हुआ है जिसमें भारी गर्जना होती रहती है। इसी समुद्र के तट पर गरुड़ की निवास भूमि शल्मलीक द्वीप है जहाँ भयंकर मानदेह नामक राक्षस रहते हैं जो सुरा समुद्र के मध्यवर्ती शैल शिखरों पर लटके रहते है। सुरा समुद्र के आगे घृत और दधि के समुद्र हैं। फिर, श्वेत आभावाले क्षीर समुद्र के दर्शन होते हैं। उस समुद्र के मध्य ॠषभ नामक श्वेत पर्वत है जिसके ऊपर सुदर्शन नामक सरोवर है। क्षीर समुद्र के बाद स्वादिष्ट जलवाला एक भयावह समुद्र है जिसके बीच एक विशाल घोड़े का मुख है जिससे आग निकलती रहती है।३
'महाभारत' में एक कथा है कि भृगुवंशी और्व ॠषि के क्रोध से जो अग्नि ज्वाला उत्पन्न हुई, उससे संसार के विनाश की संभावना थी। ऐसी स्थिति में उन्होंने उस अग्नि को समुद्र में डाल दिया। सागर में जहाँ वह अग्नि विसर्जित हुई, घोड़े की मुखाकृति (वड़वामुख) बन गयी और उससे लपटें निकलने लगीं। इसी कारण उसका नाम वड़वानल पड़ा।
आधुनिक समीक्षकों की मान्यता है कि इससे प्रशांत महासागर क्षेत्र की किसी ज्वालामुखी का संकेत मिलता है। वह स्थल मलस्क्का से फिलिप्पींस जाने वाले जलमार्ग के बीच हो सकता है।४ यथार्थ यह है कि इंडोनेशिया से फिलिप्पींस द्वीप समूहों के बीच अक्सर ज्वालामुखी के विस्फोट होते रहते हैं जिसके अनेक ऐतिहासिक प्रमाण हैं। दधि, धृत और सुरा समुद्र का संबंध श्वेत आभा वाले क्षीर सागर की तरह जल के रंगों के संकेतक प्रतीत होते हैं। बड़वामुख से तेरह योजना उत्तर जातरुप नामक सोने का पहाड़ है जहाँ पृथ्वी को धारण करने वाले शेष नाग बैठे दिखाई पड़ते हैं। उस पर्वत के ऊपर ताड़ के चिन्हों वाला सुवर्ण ध्वज फहराता रहता है। यही ताल ध्वज पूर्व दिशा की सीमा है। उसके बाद सुवर्णमय उदय पर्वत है जिसके शिखर का नाम सौमनस है। सूर्य उत्तर से घूमकर जम्बू द्वीप की परिक्रमा करते हुए जब सैमनस पर स्थित होते हैं, तब इस क्षेत्र में स्पष्टता से उनके दर्शन होते हैं। सौमनस सूर्य के समान प्रकाशमान दृष्टिगत होते हैं। उस पर्वत के आगे का क्षेत्र अज्ञात है।५ जातरुप का अर्थ सोना होता है। ऐसा अनुमान किया जाता है कि जातरुप पर्वत का संबंध प्रशांत महासागर के पार मैक्सिको के स्वर्ण-उत्पादक पर्वतों से हो सकता है। मक्षिका का अर्थ सोना होता है। मैक्सिको शब्द मक्षिका से ही विकसित माना गया है। यह भी संभव है कि मैक्सिको की उत्पत्ति सोने के खान में काम करने वाली आदिम जाति मैक्सिका से हुई है।६ मैक्सिको में एशियाई संस्कृति के प्राचीन अवशेष मिलने से इस अवधारणा से पुष्टि होती है। बालखिल्य ॠषियों का उल्लेख विष्णु-पुराण और रघुवंश में हुआ है जहाँ उनकी संख्या साठ हज़ार और आकृति अँगूठे से भी छोटी बतायी गयी है। कहा गया है कि वे सभी सूर्य के रथ के घोड़े हैं। इससे अनुमान किया जाता है कि यहाँ सूर्य की असंख्य किरणों का ही मानवीकरण हुआ है।७ उदय पर्वत का सौमनस नामक सुवर्णमय शिखर और प्रकाशपुंज के रुप में बालखिल्य ॠषियों के वर्णन से ऐसा प्रतीत होता है कि इस स्थल पर प्रशांत महासागर में सूर्योदय के भव्य दृश्य का ही भावमय एवं अतिरंजित चित्रण हुआ है। वाल्मीकि रामायण में पूर्व दिशा में जाने वाले दूतों के दिशा निर्देशन की तरह दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशा में जाने वाले दूतों को भी मार्ग का निर्देश दिया गया है। इसी क्रम में उत्तर में ध्रुव प्रदेश, दक्षिण में लंका के दक्षिण के हिंद महासागरीय क्षेत्र और पश्चिम में अटलांटिक तक की भू-आकृतियों का काव्यमय चित्रण हुआ है जिससे समकालीन एशिया महादेश के भूगोल की जानकारी मिलती है। इस संदर्भ में उत्तर-ध्रुव प्रदेश का एक मनोरंजक चित्र उल्लेखनीय है। बैखानस सरोवर के आगे न तो सूर्य तथा न चंद्रमा दिखाई पड़ते हैं और न नक्षत्र तथा मेघमाला ही। उस प्रदेश के बाद शैलोदा नामक नदी है जिसके तट पर वंशी की ध्वनि करने वाले कीचक नामक बाँस मिलते हैं। उन्हीं बाँसों का बेरा बनाकर लोग शैलोदा को पारकर उत्तर-कुरु जाते है जहाँ सिद्ध पुरुष निवास करते हैं। उत्तर-कुरु के बाद समुद्र है जिसके मध्य भाग में सोमगिरि का सुवर्गमय शिखर दिखाई पड़ता है। वह क्षेत्र सूर्य से रहित है, फिर भी वह सोमगिरि के प्रभा से सदा प्रभावित होता रहता है।८ ऐसा मालूम पड़ता है कि यहाँ उत्तरीध्रुव प्रदेश का वर्णन हुआ है जहाँ छह महीनों तक सूर्य दिखाई नहीं पड़ता और छह महीनों तक क्षितिज के छोड़पर उसके दर्शन भी होते हैं, तो वह अल्पकाल के बाद ही आँखों से ओझल हो जाता है। ऐसी स्थिति में सूर्य की प्रभा से उद्भासित सोमगिरि के हिमशिखर निश्चय ही सुवर्णमय दीखते होंगे। अंतत: यह भी यथार्थ है कि सूर्य से रहित होने पर भी उत्तर-ध्रुव पूरी तरह अंधकारमय नहीं है।
सतु देशो विसूर्योऽपि तस्य मासा प्रकाशते। सूर्य लक्ष्याभिविज्ञेयस्तपतेव विवास्वता।९
राम कथा की विदेश-यात्रा के संदर्भ में वाल्मीकि रामायण का दिग्वर्णन इस अर्थ में प्रासंगिक है कि कालांतर में यह कथा उन स्थलों पर पहुँच ही नहीं गयी, बल्कि फलती-फूलती भी रही। बर्मा, थाईलैंड, कंपूचिया, लाओस, वियतनाम, मलयेशिया, इंडोनेशिया, फिलिपींस, तिब्बत, चीन, जापान, मंगोलिया, तुर्किस्तान, श्रीलंका और नेपाल की प्राचीन भाषाओं में राम कथा पर आधारित बहुत सारी साहित्यिक कृतियाँ है। अनेक देशों में यह कथा शिलाचित्रों की विशाल श्रृखलाओं में मौजूद हैं। इनके शिलालेखी प्रमाण भी मिलते है। अनेक देशों में प्राचीन काल से ही रामलीला का प्रचलन है। कुछ देशों में रामायण के घटना स्थलों का स्थानीकरण भी हुआ है।

Ramayan in malaysia

Hikayat Seri Rama Katha malyeshiya of RAM and
Malyeshiya of Islamization was around the thirteenth century. The oldest manuscript in the bodleian library 1633E Malay Ramayana. Was credited.1 it is known that malyavasiyon had so much influence on the Ramayana after the Islamization also could not abandon him. Malyeshiya is based on a detailed composition in ramkatha hosted hikayat seriram ". Its author is unknown. Its creation was among the group from the thirteenth century. In addition here are also available in published ramkathaen lokakhyanon. Edited by Maxwell in this context ' seriram ', Posted by ' ovravek ' and witnessed by hikayat patani ramkatha hosted chef Ravana names are remarkable. Hikayat seriram vichitrataon is the home of ajayab. It starts from birth of Ravana. Chandran (heaven) to adultery with the beauties of siranchak (hiranyaksh) the ten heads and twenty slide on Earth as Ravana had to take birth. He was son of chitravah and grandson of vormaraj (brahmaraj). In addition to the kumbakern the chitravah Ravana (kumbhakarn) and bibusnam (vibhishan) called surpandaki (shupannakha) two sons and had a daughter.2 State of Reason why Ravana to her father sent butik saren island by ship. There he put his legs tied to a tree by penance. Adam become pleased with his penance. He urged God and King of heaven and Earth, gave banva attitude. When the State of the three realms have three marriages by Ravana. His first wife heavenly nymph Neil-best, second earth goddess and Queen of Ganga was the third seas mahadeva. Slide the three-headed nilottama and six enderjat (indrajit), Earth goddess Ganga by maroon attitude (mahiravan) and mahadeva, gangamhasur gave birth to the sons. Chakraborty, son of dasharatha was the King of ispaboga. They wanted to populate a beautiful city. For this he was appointed to the order his Minister pipes. On top of a mountain he planned to rehabilitate the new city. The place to be clean, so did not crumble, a bamboo Bush Then the King took the axe were themselves descended from elephants. He saw beauty in the Bush. They were sitting on her elephant home. The wedding of King mandudevi was in auspicious muhurt. With the new King after Queen married seventeen manjili sedan riding on their State to seven were orbiting. Seventh Orbiter snapped, but King in sedan patrani bradley took hold her on his shoulder. The King pledged that after his bradley to progeny will be State owned. The new city was built. His name was kept, madaripur But the child had been concerned because of a King. At the behest of a Rishi he yajna. Yagyodan was divided into six parts. From mandudri and the goddess or three-part three-part mandu bradley have been. Bradley took a part of part of Kak ran. He was related to Ravana. Rishi cursed by that Kak mandudri, son of yagyodan and killed by which a the khayega, It will be a girl. The marriage will be the son of madudri. Kak yagyodan was where Ravana has her eating with Lanka Puri. Periodically give son named mandudri, and the Seri Rama. Bradley has burden (Bharat) and gave birth to crediton (shatrughan). Ravana revealed the mandudri of unique beauty. He disguised as a Brahmin madaripur accessed by opening the seven locks and Court spells went inside and began playing the harp. Hearing the sound of the harp dashrath end: quit, Pur The Brahmin veshdhari Ravana asked urged to give mandudri. He first turned down the request, but later gave their approval. Mandudri has also made her go with deny But later he gave it the creation of a beauty queen. Ravana went over the fake mandudri. In the way of an ascetic in his presence. She asked the man or his monkey. He was ascetic devotee of Vishnu. He cursed Ravana, his death will be by man or monkey. Ravana was married with pomp by fake mandudri. A few days later it was a girl who was pretty similar to gold.Ravana's brother seeing his horoscope by bivusnabh (vibhishan) said the Virgo's husband will slaughter her father. In her iron boxes to learn Ravana backround sea Thrown in.3 iron mailbox overflow went dvaravti. Maharishi kali were sea bath. At the same time he dashed from their foot box. They were near his wife box mannheimer goddess. Mailbox was full House opening Lucent. It was an extremely beautiful girl. Maharishi put his name to seeta Devi kali. They kept four rhythm tree at the same time. He at the same time showed that the tree forty Taan aimed at anyone who will make them the same invectives from fragmented, The wedding of SITA Devi from the same position.4 mandurapur Maharshi arrived in kali. They asked dasaratha to RAM and Laxman expressed his desire to move to seven. Shatrughan Bharat and return them to the King to carry with said. Examination of the Maharishi began to take them both. He said that dvaravti four exits. They would like to go there by the way. The first way seventeen days. He's way too awesome. In that way is a monstrous genji that Ravana could not even looser. The other way is twenty days. This is called the path to angai-gangai gainda You have to kill. Third way twenty-five days. The rast is a serpent in sarangani. The fourth way forty days
मलयेशिया की राम कथा और हिकायत सेरी राम
मलयेशिया का इस्लामीकरण तेरहवीं शताब्दी के आस-पास हुआ। मलय रामायण की प्राचीनतम पांडुलिपि बोडलियन पुस्तकालय में १६३३ई. में जमा की गयी थी।१ इससे ज्ञात होता है कि मलयवासियों पर रामायण का इतना प्रभाव था कि इस्लामीकरण के बाद भी लोग उसके परित्याग नहीं कर सके। मलयेशिया में रामकथा पर आधरित एक विस्तृत रचना है 'हिकायत सेरीराम'। इसका लेखक अज्ञात है। इसकी रचना तेरहवीं से सत्रहवीं शताब्दी के बीच हुई थी। इसके अतिरिक्त यहाँ के लोकाख्यानों में उपलब्ध रामकथाएँ भी प्रकाशित हुई हैं। इस संदर्भ में मैक्सवेल द्वारा संपादित 'सेरीराम', विंसटेड द्वारा प्रकाशित 'पातानी रामकथा' और ओवरवेक द्वारा प्रस्तुत हिकायत महाराज रावण के नाम उल्लेखनीय हैं। हिकायत सेरीराम विचित्रताओं का अजायब घर है। इसका आरंभ रावण की जन्म कथा से हुआ है। किंद्रान (स्वर्गलोक) की सुंदरियों के साथ व्यभिचार करने वाले सिरानचक (हिरण्याक्ष) को पृथ्वी पर दस सिर और बीस भुजाओं वाले रावण के रुप में जन्म लेना पड़ा। वह चित्रवह का पुत्र और वोर्मराज (ब्रह्मराज) का पौत्र था। चित्रवह को रावण के अतिरिक्त कुंबकेर्न (कुंभकर्ण) और बिबुसनम (विभीषण) नामक दो पुत्र और सुरपंडकी (शूपंणखा) नामक एक पुत्री थी।२ दुराचरण के कारण रावण को उसके पिता ने जहाज से बुटिक सरेन द्वीप भेज दिया। वहाँ उसने अपने पैरों को पेड़ की डाल में बाँध कर तपस्या करने लगा। आदम उसकी तपस्या से प्रसन्न हो गये। उन्होंने अल्लाह से आग्रह किया और उसे पृथ्वी, स्वर्ग और पाताल का राजा बनवा दिया। तीनों लोकों का राज्य मिलने पर रावण ने तीन विवाह किया। उसकी पहली पत्नी स्वर्ग की अप्सरा नील-उत्तम, दूसरी पृथ्वी देवी और तीसरी समुद्रों की रानी गंगा महादेवी थी। नीलोत्तमा ने तीन सिरों और छह भुजाओं वाले एंदेरजात (इंद्रजित), पृथ्वी देवी ने पाताल महारायन (महिरावण) और गंगा महादेवी ने गंगमहासुर नाम के पुत्रों को जन्म दिया। चक्रवर्ती के पुत्र दशरथ इस्पबोगा के राजा थे। वे एक सुंदर नगर बसाना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने अपने मंत्री पुष्पजय क्रम को नियुक्त किया। उसने एक पहाड़ की चोटी पर नया नगर बसाने की योजना बनाई। उस स्थान की सफाई होने लगी, तो बाँस की एक झाड़ी नहीं उखड़ सकी, तब राजा स्वयं कुल्हाड़ी लेकर हाथी से उतर गये। उन्होने झाड़ी में एक सुंदरी को देखा। वे उसे हाथी पर बैठा कर घर ले गये। शुभ मुहूर्त में राजा से मंडूदेवी का विवाह हुआ। विवाह के बाद राजा ने नई रानी के साथ सत्रह मंजिली पालकी पर सवार होकर अपने राज्य की सात परिक्रमा करने गये। सातवीं परिक्रमा में पालकी टूट गयी, किंतु राजा की पटरानी बलियादारी ने उसे अपने कंधे पर रोक लिया। राजा ने बलियादारी को वचन दिया कि उसके बाद उसकी संतान ही राज्य का स्वामी बनेगा। नये नगर का निर्माण हो गया। उसका नाम मदुरापुर रखा गया, किंतु संतान नहीं होने के कारण राजा चिंतित रहा करते थे। एक ॠषि के कहने पर उन्होंने यज्ञ किया। यज्ञोदन को छह भागों में विभाजित किया गया। उसमें से तीन भाग मंडू देवी या मंदुदरी और तीन भाग बलियादारी को दिया गया। बलियादारी के हिस्से का एक भाग एक काक लेकर भाग गया। वह रावण का संबंधी था। ॠषि ने शाप दिया कि काक मंदुदरी के पुत्र द्वारा मारा जायेगा और जो कोई उस यज्ञोदन को खायेगा, उसे एक पुत्री होगी। उसका विवाह मदुदरी के पुत्र से होगा। काक यज्ञोदन लेकर लंका पुरी गया जहाँ रावण उसे खा गया। कालांतर में मंदुदरी को सेरी राम और लक्ष्मण नामक दे पुत्र हुए। बलियादारी ने बेरदन (भरत) और चित्रदन (शत्रुघ्न) को जन्म दिया। रावण को मंदुदरी के अनुपम सौंदर्य का पता चला। वह ब्राह्मण वेश में मदुरापुर पहुँचा और राजभवन के सात तालों को मंत्र द्वारा खोलकर अंदर चला गया और वीणा बजाने लगा। वीणा की ध्वनि सुनकर दशरथ अंत:पुर से बाहर निकले, तो ब्राह्मण वेशधारी रावण ने उनसे मंदुदरी को देने का आग्रह किया। उन्होंने पहले तो उसके अनुरोध को ठुकरा दिया, किंतु बाद में अपनी स्वीकृति दे दी। मंदुदरी ने भी पहले उसके साथ जाने से इन्कार किया, किंतु बाद में उसने अपने समान एक सुंदरी का सृजन कर उसे दे दिया। रावण नकली मंदुदरी को लेकर चला गया। रास्ते में उसकी भेंट एक तपस्वी से हुई। उसने तपस्वी से पूछा कि वह आदमी है अथवा बंदर। वह तपस्वी विष्णु का भक्त था। उसने रावण को शाप दिया कि उसकी मृत्यु आदमी या बंदर के द्वारा होगी। रावण ने धूमधाम से नकली मंदुदरी के साथ विवाह किया। कुछ दिनों बाद उसे एक पुत्री हुई जो सोने के समान सुंदर थी।रावण के भाई बिवुसनभ (विभीषण) ने उसकी कुंडली देखकर कहा कि इस कन्या का पति उसके पिता का वध करेगा। यह जानकर रावण उसे लोहे के बक्से में बंदकर समुद्र में फेंक दिया।३ लोहे का बक्सा बहकर द्वारावती चला गया। महर्षि कलि समुद्र स्नान कर रहे थे। उसी समय वह बक्सा उनके पैर से टकराया। वे बक्सा लेकर अपनी पत्नी मनुरमा देवी के पास गये। बक्सा खोलने पर पूरा घर प्रकाशमान हो गया। उसमें एक अत्यंत सुंदर कन्या थी। महर्षि कलि ने उसका नाम सीता देवी रखा। उन्होनें उसी समय चालीस ताल वृक्ष रखा। उन्होंने उसी समय चालीस तान वृक्ष इस उद्देश्य से लाग दिया कि जो कोई उन्हें एक ही बाण से खंडित कर देगा, उसी से सीता देवी का विवाह होगा।४ महर्षि कलि मंदुरापुर पहुँचे। उन्होने दशरथ के समक्ष राम और लक्ष्मण को अपने सात ले जाने की इच्छा प्रकट की। राजा ने उनके बदले भरत और शत्रुघ्न को अपने साथ ले जाने के लिए कहा। महर्षि उन दोनों की परीक्षा लेने लगे। उन्होंने कहा कि द्वारावती जाने के चार रास्ते हैं। वे किस मार्ग से वहाँ जाना चाहेंगे। पहला रास्ता सत्रह दिनों का है। वह मार्ग अत्यधिक भयानक है। उस रास्ते में जगिनी नामक राक्षसी रहती है जिसे रावण भी पराजित नहीं कर सका। दूसरा रास्ता बीस दिनों का है। इस पथ से जाने वाले को अंगई-गंगई नामक गैंड़ा को मारना पड़ेगा। तीसरा रास्ता पच्चीस दिनों का है। उस रास्त में सुरंगिनी नामक नागिन रहती है। चौथा रास्ता चालीस दिनों का है। उसमें कोई खतरा नहीं है। दोनों भाईयों ने चौथ रास्ते का चुनाव किया। महर्षि समझ गये कि दोनों में शौर्य और पराक्रम का अभाव है। उन्होंने पुन: राजा से राम और लक्ष्मण को अपने साथ जाने देने का आग्रह किया। राजा ने अपनी स्वीकृति दे दी। ॠषि ने राम से भी वही सवाल पूछा। उन्होंने पहले रास्ते का चुनाव किया। आदि से अंत तक 'हिकायत सेरी राम' इसी प्रकार की विचित्रताओ से परिपूर्ण है। यद्यपि इसमें वाल्मीकीय परंपरा का बहुत हद तक निर्वाह हुआ है, तथापि इसमें सीता के निर्वासन और पुनर्मिलन की कथा में भी विचित्रता है। सेरी राम से विलग होने पर सीता देवी ने कहा कि यदि वह निर्दोष होंगी, तो सभी पशु-पक्षी मूक हो जायेंगे। उनके पुनर्मिलन के बाद पशु-पक्षी बोलने लगते हैं। इस रचना में अयोध्या नगर का निर्माण भी राम और सीता के पुनर्मिलन के बाद ही होता है।

Sri Ram, God Rama story in Phillipines

Philippines of RAM Katha: mahaladiya lavan
Indonesia and the Philippines after the Islamization of the malyeshiya like the RAM as the new narrative was submitted in color. There is also the possibility that it would like Buddhist and Jains were deliberately distorted. Dr. John r. Phruainsisko IK marnav language of the Philippines discovered warped ramkatha hosted compiled in whose name is libyan medals. Its on the SITA swayamvar kathavastu, marriages, abduction, Exploration and reclamation of is clearly visible. Morehead is the son of the Sultan of burundi lavan masir. The vicious cycle of people gone. So banish the Sultan sent pulungar by him on the island. There he set fire to the Earth that vrishra was bonded. Angel grabs at the behest of tuhen (God) prevented him from making his sacrifice and her bridesmaid that his death only in court will be from the incisive made katyusha asra. Sultan of the meandering and incoming niyog mangavarg had two sons named. Sultan of the two brothers pulunvandai The unique beauty of the daughter of malaila received information. They headed out to sea in search of her visit. The way his ship crashed. Incidentally, both brothers were pulunvandai edge. An old woman picked them take your House added. Senses had the sweetest sound of music when they arrive. The old woman's name was kabaiyan. That they were aware of the malaila swayamvar. According to the swayamvara of Princess who is in the room of the bond of the cane rajkumar succeeds in phekne, the same had to be his wedding. Both brothers attended the examination, But success was big brother. When the ball went into the room, the Princess he ball with your napkin, toppled down charity and betel nut ring. Prince has donated a napkin, betel nuts and betel nuts to retain the ring and there gave chitara. Both princes walked the other pratyakshi began to announce their victory, But the Sultan wanted to know who his daughter ring added. He was kabaiyan's house where he got three things to meandering. Some other shata ç on completing of the meandering and became malaila. Malaila vivahoprant walked home with two brothers, But on the way home and began living an idyllic Bliss site. Princess in the bucolic surroundings, one day saw the Golden shrringon deer. She asked her husband to catch him. Princess meandering to their loads of security, saying it had to get mentally Anuj that if he came to assist him, even if he did not move from there. After she heard her husband's voice by the Princess. He mangavarn go early to assist their agraj said. Then he went berserk on the refusal. Forcing mangavarn had to go to, But when she asked to keep the window closed malaila and forbids her to knock on the opening. Access to two of the same color mainwaring deer appear began falling. Both deer ran away in two directions. Both brothers began to chase them in different directions. Sterilized after younger brother trying to reach their first residence. He saw the broken wall of the House and the Princess is missing. Neighbors showed that hijacked the malaila madeira lavan. Lavan's Raj Bhavan on both brothers saw that access only near lavan malaila around fire flames Protected-take as holds of the annulus.1 here it is noteworthy that in his presence discovered malaila lax resulted from a monkey who was Hanuman roles. War begins on lavan alternates both brothers to war. He was wounded in battle is not a type Because the slaughter in his court were the sharp pieces of wood had to be from asra. The Court of mandangiri of lax asra entering lavan and she turned her sharp RASP on wood there. Mandangiri hit on the same asra lavan causing his death. At the end of the war of lax has climbed back to two brothers with malaila tax proceeds niyog sparked. Lax was with them. Was a Grand function on incoming niyog. On this occasion as a beautiful Prince lax has changed.Anti-nuke glee around 2.
फिलिपींस की राम कथा: महालादिया लावन
इंडोनेशिया और मलयेशिया की तरह फिलिपींस के इस्लामीकरण के बाद वहाँ की राम कथा को नये रुप रंग में प्रस्तुत किया गया। ऐसी भी संभावना है कि इसे बौद्ध और जैनियों की तरह जानबूझ कर विकृत किया गया। डॉ. जॉन आर. फ्रुैंसिस्को ने फिलिपींस की मारनव भाषा में संकलित इक विकृत रामकथा की खोज की है जिसका नाम मसलादिया लाबन है। इसकी कथावस्तु पर सीता के स्वयंवर, विवाह, अपहरण, अन्वेषण और उद्धार की छाप स्पष्ट रुप से दृष्टिगत होता है। महरादिया लावन बंदियार मसिर के सुल्तान का पुत्र है। उसके कुचक्र से बहुत लोगों की जान चली गयी। इसलिए सुल्तान उसे निर्वासित कर पुलूनगर द्वीप पर भेज दिया। वहाँ उसने उस वृश्र में आग लगा दी जिससे पृथ्वी बंधी हुई थी। देवदूत गैब्रियस के कहने पर तुहेन (ईश्वर) ने उसे अपना बलिदान करने से रोका और उसे वर दिया कि उसकी मृत्यु केवल उसके राजभवन में रखे काष्ट पर तीक्ष्ण किये अस्र से होगी। आगम नियोग के सुल्तान को मंगंदिरी और मंगवर्ग नामक दो पुत्र थे। दोनों भाईयों को पुलूनवंदै के सुल्तान की पुत्री मलैला के अनुपम सौंदर्य की जानकारी मिली। वे लोग उसकी तलाश में समुद्र यात्रा पर निकल पड़े। रास्ते में उनका जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो गया। संयोगवश दोनों भाई पुलूनवंदै के किनारे लग गये। एक बूढ़ी औरत उन्हें उठाकर अपने घर ले गयी। होश में आने पर उन्हें संगीत की मधुर ध्वनि सुनाई पड़ी। बूढ़ी औरत का नाम कबैयन था। उससे उन्हें मलैला के स्वयंवर की जानकारी मिली। राजकुमारी के स्वयंवर की शर्त के अनुसार जो कोई बेंत की बोंद को राजकुमीरी के कक्ष में फेकने में सफल होता, उसी से उसका विवाह होना था। दोनों भाईयों ने उस परीक्षा में भाग लिया, किंतु सफलता बड़े भाई को मिली। जब गेंद राजकुमारी के कक्ष में पहुँच गयी, तब उसने गेंद के साथ अपना रुमाल, सुपारी दान और अंगूठी नीचे गिरा दी। राजकुमार ने रुमाल, सुपारी दान और अंगूठी को अपने पास रख लिया और सुपारी को वहीं छितारा दिया। दोनों राजकुमारों के चले जाने पर अन्य प्रत्याक्षी अपनी-अपनी जीत की घोषणा करने लगे, किंतु सुल्तान यह जानना चाहता था कि उसकी पुत्री की अंगूठी किसके पास गयी। वह कबैयन के घर गया जहाँ उसे मंगंदिरी के पास तीनों चीजे मिली। कुछ अन्य शताç को पूरा करने पर मंगंदिरी और मलैला का विवाह हो गया। विवाहोपरांत दोनों भाई मलैला के साथ घर चल पड़े, किंतु रास्ते में ही एक रमणीक स्थल पर घर बनाकर रहने लगे। उसी ग्राम्य परिवेश में राजकुमारी ने एक दिन स्वर्ण श्रृंगों वाले हिरण को देखा। उसने अपने पति से उसे पकड़ने के लिए कहा। राजकुमारी की सुरक्षा का भार अपने अनुज को सौंपकर मंगंदिरी यह कहकर निकल पड़ा कि यदि वह स्वयं भी उसे सहायता के लिए पुकारे, तो भी वह वहाँ से नहीं हटे। उसके जाने के बाद राजकुमारी ने अपने पति की आवाज़ सुनी। उसने मंगवर्ण को अपने अग्रज की सहायता हेतु शीघ्र जाने को कहा। उसके मना करने पर वह बहुत उग्र हो गयी। मजबूर होकर मंगवर्ण को जाना पड़ा, किंतु जाते समय उसने मलैला को खिड़की बंद रखने के लिए कहा और खटखटाने पर भी उसे खोलने की मनाही की। मंगवर्न के पहुँचते ही एक ही रंग के दो हिरण दिखाई पड़ने लगे। दोनों हिरण दो दिशाओं में भाग चले। दोनों भाई अलग-अलग दिशा में उनका पीछा करने लगे। निष्फल प्रयत्न के बाद छोटा भाई पहले अपने निवास पर पहुँचा। उसने देखा कि घर की दीवार टूटी हुई है और राजकुमारी गायब है। पड़ोसियों से पता चला कि महारादिया लावन ने मलैला का अपहरण कर लिया। लावन के राजभवन पहुँचने पर दोनों भाईयों ने देखा कि लावन के निकट पहुँचते ही मलैला के चारों तरफ आग की लपटें सुरक्ष-वलय का रुप धारण कर लेती हैं।१ यहाँ यह उल्लेखनीय है कि मलैला की खोज-यात्रा में उनकी भेंट लक्ष्मण नामक बंदर से हुई जो हनुमान की भूमिका निभाने लगा। युद्ध आरंभ होने पर लावन बारी-बारी से दोनों भाईयों से युद्ध करने लगा। वह युद्ध में किसी प्रकार घायल नहीं होता था, क्योंकि उसका वध उसके राजभवन में रखे लकड़ी के टुकड़े पर तीक्ष्ण किये गये अस्र से ही होना था। लक्ष्मण मंदंगिरी के अस्र को लेकर लावन के राजभवन में प्रवेश कर गया और उसने वहाँ लकड़ी पर रगड़कर उसे तीक्ष्ण कर दिया। मंदंगिरी ने उसी अस्र से लावन पर प्रहार किया जिससे उसकी मृत्यु हो गई। युद्ध समाप्त होने पर लक्ष्मण के आदेश से एक घड़ियाल मलैला के साथ दोनों भाईयों को पीठ पर चढ़ा कर आगम नियोग चल पड़ा। लक्ष्मण उनके साथ गया। आगम नियोग पहुँचने पर एक भव्य समारोह हुआ। इस अवसर पर लक्ष्मण सुंदर राजकुमार के रुप में परिवर्तित हो गया।२ चारों ओर उल्लास छा गया।

God Ram in Turkistan

Khotani RAM Katha
Located on the Northwest border of Asia to the eastern part of turkistan called khotan whose language is khotani. H. dablu. Bailey and then khotani from the Paris manuscript museum Ramayana brought to light. According to his calculation is the ninth century its date.1 khotani is similar to several destinations on the Ramayana tibbiti Ramayana, But there are many such events that are not in Tibetan Ramayana. According to the Ramayana, King dasharatha of majestic khotani son sahastravahu were playing hunting in the forest where their presence was a dharmanishth Brahmin. He had received from his austere kamdhenu chintamniaur. By the grace of the Brahmin King plush kamdhenu welcomed. Departure from King's commandment when their range of Brahmin cow retainer Chale Gaye. Aware of the Brahmin son Parashurama. He made sahastravahu slaughter. Parshuram, the wife of his son sahastravahu of RAM and raishma (LAX) hid inside the Earth. After twelve years he brought out. RAM were unique archery. He said the State handle Anuj raishma and tracked down his father's killer made by Parshuram slaughter. Danvaraj dashagriv has a daughter. Seeing his horoscope said future speakers with my father shall cause all the monster total of nserc. Therefore it was shedding in the backround in boxes. He found a box Rishi. He did his upbringing. He was in a parterre of annulus protection. Were fascinated to see him RAM and raishma. Khotani Ramayana it is not quite clear how the relationship with him that was the RAM and raishma. According to the Ramayana miraculous khotani had the shape of a hundred eyes. RAM and raishma followed her. At the same period reached dashagriv in there But the Defense could not overcome the annulus. Then he went to bhikshuk disguised as SITA and picked them up on the annulus protection ran out. Sitanveshan in order to both brothers was from an old monkey offering. The same site two sibling monkeys were warring native numbering State. One of them was the other name sugreev and NAND. Rama NAND Maitri delusional. He made slaughter sugreev. NAND has discovered the monkeys by saying SITA was sent to search for SITA in seven days if they cannot Their eyes will be gouged. Six days were passed. Seventh day laphus called bandari, spoke of her children female Kak and listened. Telling your children that female Kak dashagriv, SITA is kidnapped. The monkey will not find them. So is eating them monkeys eyes kalh suyog. Found this news through bandari monkeys. However, this message was given to the RAM and raishma. RAM and raishma vanri were on the beach with the army. There are remnants of Brahma NAND on said cause upon stone by touch float in the water. Again, NAND in collaboration with the bridge construction and army including RAM and raishma arrived in Sri Lanka. Dashagriv got excited from the tumult of the monkeys. He went into the sky and the sea who'd flown in from a vishdhar Viper grabbed the same hit on banri army. Nagasra RAM become offended. NAND in order for nectar-sanjivani mortgage himvant mountain itself is brought up. Drugs have become healthier by using RAM. Raavan view the horoscope found out that his biography in his thumb. RAM told him to show his thumb. He soon showed his thumb RAM has made it to the invectives poke murchit. After it has been freed to atmasmapann. Due to his Buddhist influence was not slaughter. RAM and SITA spent a hundred years with raishma,. Meanwhile, the chart entering the soil lokapvad of SITA. Finally called Shakya Muni says that the protagonist of the story he was Maitreya and raishma RAM itself.
खोतानी राम कथा
एशिया के पश्चिमोत्तर सीमा पर स्थित तुर्किस्तान के पूर्वी भाग को खोतान कहा जाता है जिसकी भाषा खोतानी है। एच.डब्लू. बेली ने पेरिस पांडुलिपि संग्रहालय से खोतानी रामायण को खोजकर प्रकाश में लाया। उनकी गणना के अनुसार इसकी तिथि नौवीं शताब्दी है।१ खोतानी रामायण अनेक स्थलों पर तिब्बीती रामायण के समान है, किंतु इसमें अनेक ऐसे वृत्तांत हैं जो तिब्बती रामायण में नहीं हैं। खोतानी रामायण के अनुसार राजा दशरथ के प्रतापी पुत्र सहस्त्रवाहु वन में शिकार खेलने गये जहाँ उनकी भेंट एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण से हुई। उन्होंने अपनी तपस्या से चिंतामणिऔर कामधेनु प्राप्त किया था। कामधेनु की कृपा से ब्राह्मण ने राजा का भव्य स्वागत किया। प्रस्थान करते समय राजा की आज्ञा से उनके अनुचर ब्राह्मण की गाय लेकर चले गये। इसकी जानकारी ब्राह्मण पुत्र परशुराम को हुई। उसने सहस्त्रवाहु का वध कर दिया। परशुराम के भय से सहस्त्रवाहु की पत्नी ने अपने पुत्र राम और रैषमा (लक्ष्मण) को पृथ्वी के अंदर छिपा दिया। बारह वर्षों के बाद दोनों बाहर आये। राम अद्वितीय धनुर्धर थे। उन्होंने अपने अनुज रैषमा को राज्य संभालने के लिए कहा और स्वयं अपने पिता के हत्यारे परशुराम को ढूंढ़ कर वध कर दिया। दानवराज दशग्रीव को एक पुत्री हुई। भविष्य वक्ताओं ने उसकी कुंडली देखकर कहा कि वह अपने पिता के साथ समस्त दानव कुल के नाशकर कारण बनेगी। इसलिए उसे बक्से में बंदकर नदी में बहा दिया गया। वह बक्सा एक ॠषि को मिला। उन्होंने उसका पालन पोषण किया। वह रक्षा वलय के बीच एक वाटिका में रहती थी। राम और रैषमा उसे देखकर मोहित हो गये। खोतानी रामायण में यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि राम और रैषमा का उसके साथ कैसा संबंध था। खोतानी रामायण के अनुसार चमत्कारी मृग की सौ आंखे थी। राम और रैषमा ने उसकी पीछा किया। इसी अंतराल में दशग्रीव वहाँ पहुँचा, किंतु वह रक्षा वलय को पार नहीं कर सका। इसके बाद वह भिक्षुक वेश में सीता के पास गया और रक्षा वलय के बाहर आने पर उन्हें उठाकर भाग गया। सीतन्वेषण क्रम में दोनों भाईयों की भेंट एक बूढ़े बंदर से हुई। उसी स्थल पर दो सहोदर बंदर पैत्रिक राज्य के लिए युद्धरत थे। उनमें से एक का नाम सुग्रीव और दूसरे का नंद था। राम की नंद से मैत्री हो गयी। उन्होंने सुग्रीव का वध कर दिया। नंद ने यह कह कर बंदरों को सीता की खोज करने के लिए भेजा कि यदि वे सात दिनों में सीता की खोज नहीं कर पाते, तो उनकी आँखें निकाल ली जायेगी। छह दिन बीत गये। सातवें दिन लफुस नामक एक बंदरी ने मादा काक और उसके बच्चों की बात को सुन लिया। मादा काक अपने बच्चों से कह रही थी कि दशग्रीव ने सीता का अपहरण कर लिया है। बंदर उन्हें खोज नहीं पायेंगे। इसलिए कल्ह उन्हें बंदरों की आँखे खाने का सुयोग है। बंदरी के माध्यम से यह समाचार बंदरों को मिला। फिर, यह संदेश राम और रैषमा को दिया गया। राम और रैषमा वानरी सेना के साथ समुद्र तट पर गये। वहाँ पहुँचने पर नंद ने कहा ब्रह्मा के वरदान के कारण उसके द्वारा स्पर्श करने पर पत्थर जल में तैरने लगते हैं। फिर, नंद के सहयोग से सेतु का निर्माण हुआ और सेना सहित राम और रैषमा लंका पहुँचे। बंदरों के कोलाहल से दशग्रीव उत्तेजित हो गया। वह उड़कर आकाश में चला गया और समुद्र से एक विषधर सांप को पकड़कर उसी से बानरी सेना पर प्रहार किया। नागास्र से राम आहत हो गये। नंद अमृत-संजीवनी लाने के क्रम में हिमवंत पर्वत को ही उखाड़कर ले आया। औषधि के प्रयोग से राम स्वस्थ हो गये। रावण की जन्म कुंडली देखने पर पता चला कि उसकी जीवनी उसके अंगूठे में है। राम ने उसे अंगूठा दिखाने के लिए कहा। उसने जैसे ही अंगूठा दिखाया, राम ने उस पर बाण प्रहार कर उसे मुर्छित कर दिया। आत्मसमपंण करने के बाद उसे मुक्त कर दिया गया। बौद्ध प्रभाव के कारण उसका वध नहीं किया गया। राम और रैषमा ने सीता के साथ सौ वर्ष बिताया। इसी बीच लोकापवाद के कारण सीता धरती में प्रवेश कर गयी। अंत में शाक्य मुनि कहते हैं कि इस कथा का नायक राम स्वयं वे ही थे और मैत्रेय रैषमा था।

Story of God Sri Ram in Mangoliya

Mongolia's RAM Katha
China is located in the North-West of Mongolia's people's details of RAM Katha. There is venerated lamas residence site of apes-several books and statues are found. With regard to worship RAM apes dear has been established eligible Hanuman.1 kashthachitra and manuscripts associated with RAM Katha in Mongolia also are available. It is estimated that the Buddhist literature of Sanskrit literature with a lot of compositions there is reached. The chart also with these compositions ramkatha hosted there. Written in the Mongolian language damdin suren has discovered four RAM tales.2 which of the following The legend of King jivak is particularly notable in the manuscript lelingard is safe. Jivak Jataka tale of the atharhavin century was translated into Tibetan in the Mongolian language which has no idea of the original Tibetan Scripture. Influence on Buddhist Jataka jivak divided into eight chapters clearly appears. This first master and the bodhisattva manjushri prayer is. Jivak former Buddhist Emperor. His wife and son have abandon. That is why both of them gave curse that will be santanhin in the next life. Jivak offering of Lord Buddha. He heard his sermon with reverence and they invited their residence place. After the incident of fishermen jivak of ten thousand. He preached nonviolence among them. Jivak were three King named ronin. The trio had no children. King vanshavriddhi were very worried. Once he saw the vision of the son. At the behest of bhavishyavastaon they undubra were on the beach in search of a flower. From there, he made the Queen by bringing the flower. Flower has a son named Queen of devouring RAM was placed. Later became King in RAM. Were people happy in their State. He preached Buddhism his State invited to kukuchand. Sri Lanka holds as a monster who had the shape of. Next was the last gold and silver fuselage. The RAM in the State of rishiyon was in penance leads. Rishiyon RAM to bulvaya. RAM has an eye of bursting stone shape. Rishiyon has provided them unstoppable force as a blessing. Demons in the land of an old woman gave birth to a baby girl. Astrology shasra raptors of said if the girl is alive, The country will be eradicated. Demons have a backround in boxes thrown into the sea. He went to the island where the farmer mailbox jambu 13. The farmer has the following child-nutrition. When he grew up, then she turned her marriage with RAM. Danvaraj dashagriv wife of his sister revealed the beauty of the RAM. He holds the shape of a Minister Manohar ends to go RAM said. The deer took off them lubhakar. The rapid speed at which the RAM were chasing the deer run, Danvaraj his wife took their country hijacked. RAM talashte my wife, arrived in the Kingdom of monkeys. There are two monkeys were fighting among themselves. Their names were vali and sugreev. He has, at the request of vali sugreev slaughter. Abharvash sugreev them monkeys were prime which provided labor-intensive Hanuman. RAM vanri with the army arrived in Sri Lanka. They are the secret to defeating the demon with his wife were returning to the country, where they began to lead a life of pleasure.
मंगोलिया की राम कथा
चीन के उत्तर-पश्चिम में स्थित मंगोलिया के लोगों को राम कथा की विस्तृत जानकारी है। वहाँ के लामाओं के निवास स्थल से वानर-पूजा की अनेक पुस्तकें और प्रतिमाएँ मिली हैं। वानर पूजा का संबंध राम के प्रिय पात्र हनुमान से स्थापित किया गया है।१ मंगोलिया में राम कथा से संबद्ध काष्ठचित्र और पांडुलिपियाँ भी उपलबध हुई हैं। ऐसा अनुमान किया जाता है कि बौद्ध साहित्य के साथ संस्कृत साहित्य की भी बहुत सारी रचनाएँ वहाँ पहुँची। इन्हीं रचनाओं के साथ रामकथा भी वहाँ पहुँच गयी। दम्दिन सुरेन ने मंगोलियाई भाषा में लिखित चार राम कथाओं की खोज की है।२ इनमें राजा जीवक की कथा विशेष रुप से उल्लेखनीय है जिसकी पांडुलिपि लेलिनगार्द में सुरक्षित है। जीवक जातक की कथा का अठारहवीं शताब्दी में तिब्बती से मंगोलियाई भाषा में अनुवाद हुआ था जिसके मूल तिब्बती ग्रंथ की कोई जानकारी नहीं है। आठ अध्यायों में विभक्त जीवक जातक पर बौद्ध प्रभाव स्पष्ट रुप से दिखाई पड़ता है। इसमें सर्वप्रथम गुरु तथा बोधिसत्व मंजुश्री की प्रार्थना की गयी है। जीवक पूर्व जन्म में बौद्ध सम्राट थे। उन्होंने अपनी पत्नी तथा पुत्र का परित्याग कर दिया। इसी कारण उन्हें दोनों ने शाप दे दिया कि अगले जन्म में वे संतानहीन हो जायेंगे। जीवक की भेंट भगवान बुद्ध से हुई। उन्होंने श्रद्धा के साथ उनका प्रवचन सुना और उन्हें अपने निवास स्थान पर आमंत्रित किया। इस घटना के बाद जीवक की भेंट दस हज़ार मछुआरों से हुई। उन्होंने उन्हें अहिंसा का उपदेश दिया। जीवक नामक राजा को तीन रानियाँ थीं। तीनों को कोई संतान नहीं थी। राजा वंशवृद्धि के लिए बहुत चिंतित थे। एक बार उन्होंने पुत्र का स्वप्न देखा। भविष्यवस्ताओं के कहने पर वे उंदुबरा नामक पुष्प की तलाश में समुद्र तट पर गये। वहाँ से पुष्प लाकर उन्होंने रानी को दिया। पुष्प भक्षण से रानी को एक पुत्र हुआ जिसका नाम राम रखा गया। कालांतर में राम राजा बने। उनके राज्य में प्रजा सुखी थी। उन्होंने अपने राज्य में बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु कुकुचंद को आमंत्रित किया। लंका के एक दानव ने मृग का रुप धारण कर लिया था। उसका अगला धड़ सोना और पिछला चांदी का था। वह राम के राज्य में निवास करने वाले ॠषियों की तपस्या में बाधा पहुँचाता था। ॠषियों ने राम को बुलवाया। राम ने पत्थर से मृग की एक आँख फोड़ दी। ॠषियों ने आशीर्वाद स्वरुप उन्हें अजेय शक्ति प्रदान की। दानवों के देश में एक बूढ़ी औरत ने एक बच्ची को जन्म दिया। ज्योतिष शास्र के ज्ञाताओं ने कहा कि यदि वह लड़की जीवित रहती है, तो देश का नाश हो जायेगा। दानवों ने उसे एक बक्से में बंदकर समुद्र में फेंक दिया। वह बक्सा जंबू द्वीप चला गया जहाँ वह एक किसान को मिला। किसान ने उस बच्ची का पालन-पोषण किया। जब वह बड़ी हुई, तब उसने राम से उसका विवाह कर दिया। दानवराज दशग्रीव को अपनी बहन द्वारा राम की पत्नी के सौंदर्य का पता चला। उसने अपने एक मंत्री को मनोहर मृग का रुप धारण कर राम के पास जाने के लिए कहा। वह मृग उन्हें लुभाकर दूर ले गया। राम जिस समय द्रुत गति से भागते हुए मृग का पीछा कर रहे थे, दानवराज उनकी पत्नी का अपहरण कर अपने देश ले गया। राम अपनी पत्नी को तलाशते हुए बंदरों के राज्य में पहुँचे। वहाँ दो बंदर आपस में लड़ रहे थे। उनके नाम वालि और सुग्रीव थे। उन्होंने सुग्रीव के अनुरोध पर वालि का वध कर दिया। आभारवश सुग्रीव ने उन्हें बंदरों की विशाल सेना प्रदान की जिसके प्रधान हनुमान थे। राम वानरी सेना के साथ लंका पहुँचे। वे दानव राज को पराजित कर अपनी पत्नी के साथ देश लौट गये, जहाँ वे सुख से जीवन व्यतीत करने लगे।

Ramayan in Rock Paintings

Rock paintings repeated Ramayana
The story is told through a language that only understand who know the language, but the story in pictures is rupayit can understand it all. Possibly that is why several of the sites on South-East Asia shilachitron is an expression of the ramkatha hosted. In many countries there is a description of the shilachitra series ramcharit. Prambanan and java's panatran them, Jetuvan of ankarevat of kampuchitra and Thailand sanctuary names are remarkable. Located in the lush green of the adorable Java field known as the Antiquities of Chandi pramvanan sevu noted. It is also called chandi larajongarang. This campus consists of 235 Temple magnavshesh. Its square courtyard panktivaddh from North to South in the central part of three temples. Is the Shiva temple in the middle. Siva Temple of Brahma and Vishnu temples in the South. Shiva and Brahma Temple RAM Katha and shilachitra Vishnu Temple are Krishna Leela. 


Chandi larajongarang build temples of skilled In the second half of the ninth century by Prince called was developed. Prambanan temples at 1549E. Eruption of the Merapi volcano around considerably damaged. They are buried under the lava of the volcano by centuries. 1885E by the Archaeology Department of yogyakarta. The excavation was started. Then again, His remains were to be surprised at seeing people. Three hundred years became a Muslim people to worship at the Temple had to race with the Sun lighting crafted. This event, stealing from the French passenger eyewitness Joule also worship Hindu temple was seen.1 Department of Archeology of Indonesia 1919E. In prambanan temple complex with undivided reduce huge pagoda located completed scientific method introduced. This task has many European scholars have collaborated as active. In 1953E. It sadDoable tasks completed. It really can be said 

puratattva marvel of engineering. Yathasthan the shilachitron Ramayana inside it has been installed. German scholar-turned-villain has studied these Ramayana sturhaim shilachitron. In the Shiva temple of prambanan ramkatha hosted 42 and Brahma Temple in the 30 Rock pictures. Thus 72 has the entire RAM Katha rupayit shilachitron here.2 shilachitron of prambanan engraved in many of the RAM Katha etc poet at sites vary. These SITA haran on the back door of the demon Ravana while vehicles from Lay the ring by SITA travel, jatayu, levee construction time fish ingest the stones, cut the ear of Ravana at the Durbar angad go etc are not in the Valmiki Ramayana context. Are some of the pictures in this huge series where interpreters has to go the same way antak, the Mahabharata's understanding of drishtikuton diameter lipikar pen rokni had. Shilachitron set of four hundred prambanan years later rock of craft in East Java in panatran RAM is an expression of the narrative. Chandi panatran blatter district near mount ketul Chambers is located in the foothills of the South-West. Here surrounded by a circular wall around the Shiva temple which is on the West side of the main gate. The construction of the mother of Prince 

majpahit lineage in 1347E rajatva jayvishnuvardhani humbucker. Was completed in But it had an earlier start was the emperor. Chandi RAM panatran rock legend 106 pictures.3 which of the following to display the main form of Hanuman is mighty. This is from the Sinhalese and Hanuman to get started kumbhakarn after the death of the narrative ends. Shilachitra of Hindu prambanan-javani is engraved, in style While panatran is a complete shilashilp of javani. These painted vasrabhushan and asra-shasra also shapes the characters with Japanese-style effect. Ankorvat Temple located at campo Emperor suryavarman II (1112-53E.) took place in the rajatvakal. The force of the Emperor in the temple corridor-women of Heaven-Hell, manthan dev-demon war, Mahabharata, There are many associated with the Ramayana harivansh Rai and shilachitra. Here is a very brief narrative in rupayit RAM shilachitron. These series of Ravana shilachitron slaughter of adoration by the gods for begins with. Then SITA swayamvar scene. The presentation of these two major events of balkand after Leipzig paper yesterday spoke and the keg has been depicting the slaughter. Next shilachitra Golden deer bow RAM-invectives appear, runners behind. Then there is the view of the friendship of the RAM from sugreev. Again, Vali and sugreev's dvendva war is portrayed. All shilachitron in the presence of Hanuman, Rama in Ashok parterre-Ravana war, SITA RAM Ayodhya ordeal and return of scene.4 ankorvat of shilachitron rupayit in RAM is extremely sparse and brief narrative though, however it is important, Because of its presentation has been a professional adikavya. Also important in Thailand shilachitron RAM narrative space. Thailand's capital of Bangkok court complex on the southern edge of Wat-Po or jetuvan is the kindergarten. 152 shilapton marble in its initiation on RAM Katha pictures are passed. J. m. "in his book" the romanic pictures of cadets and their study has been done. This treatise is divided into nine sections to the shilachitron have been doing their analysis-1. SITA-haran, (2) travel (3) Sri Lanka Hanuman Lanka Dahan, (iv) eviction, vibhishan (5) pseudo SITA case, bridge construction (6), (7) Lanka Serv
शिला चित्रों में रुपादित रामायण
जो कथा किसी भाषा के माध्यम से कही जाती है, उसे उस भाषा के जानने वाले ही समझ पाते हैं, किंतु जो कथा चित्रों में रुपायित होती है, उसे सब समझ सकते हैं। संभवत: इसी कारण दक्षिण-पूर्व एशिया के अनेक स्थलों पर शिलाचित्रों में रामकथा की अभिव्यक्ति हुई है। कई देशों में शिलाचित्र श्रृंखलाओं में रामचरित का वर्णन हुआ है। उनमें जवा के प्रम्बनान तथा पनातरान, कंपूचित्रा के अंकारेवाट और थाईलैंड के जेतुवन विहार के नाम उल्लेखनीय हैं। जावा के हरे-भरे मनमोहक मैदान में अवस्थित प्रम्वनान का पुरावशेष चंडी सेवू के नाम से विख्यात है। इसे चंड़ी लाराजोंगरांग भी कहा जाता है। इस परिसर में २३५ मंदिर के मग्नावशेष हैं। इसके वर्गाकार आंगन के मध्य भाग में उत्तर से दक्षिण पंक्तिवद्ध तीन मंदिर हैं। बीच में शिव मंदिर है। शिव मंदिर के उत्तर ब्रह्मा तथा दक्षिण में विष्णु मंदिर हैं। शिव और ब्रह्मा मंदिर में राम कथा और विष्णु मंदिर में कृष्ण लीला के शिलाचित्र हैं। चंडी लाराजोंगरंग के मंदिरों का निर्माण दक्ष नामक राजकुमार ने नौवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में करवाया था। प्रम्बनान के मंदिरों को १५४९ई. के आस-पास मेरापी ज्वालामुखी के विस्फोट में काफी क्षति पहुँची। वे सदियों तक ज्वालामुखी के लावा के नीचे दबे रहे। योग्यकार्टा के पुरातत्व विभाग द्वारा १८८५ई. में उसकी खुदाई शुरु हुई। फिर तो, उसके अवशेष को देख कर लोग अचंभित हो गये। तीन सौ वर्षों से मुसलमान बने लोग मंदिर में धूप-दीप लेकर पूजा अर्चना करने दौड़ पड़े। इस घटना का चश्मदीद गवाह फ्रांसीसी यात्री जूल ने हाजियों को भी हिंदू मंदिर में पूजा करते देखा था।१ इंडोनेशिया के पुरातत्व विभाग ने १९१९ई. में पूरे मनोयोग के साथ प्रम्बनान मंदिर परिसर स्थित विशाल शिवालय के पुनर्निमाण का कार्य पूर्ण वैज्ञानिक पद्धति से आरंभ किया। इस कार्य में अनेक यूरोपीय विद्वानों ने सक्रिय रुप से सहयोग किया। सन् १९५३ई. में यह दु:साध्य कार्य पूरा हुआ। इसे वास्तव में पुरातत्त्व अभियंत्रण का चमत्कार ही कहा जा सकता है। इसके अंदर रामायण शिलाचित्रों को यथास्थान स्थापित कर दिया गया है। जर्मन विद्वान विलेन स्टूरहाइम ने इन रामायण शिलाचित्रों का अध्ययन किया है। प्रम्बनान के शिव मंदिर में रामकथा के ४२ और ब्रह्मा मंदिर में ३० शिला चित्र हैं। इस प्रकार ७२ शिलाचित्रों में यहाँ संपूर्ण राम कथा रुपायित हुई है।२ प्रम्बनान के शिलाचित्रों में उत्कीर्ण राम कथा में आदि कवि की रचना से अनेक स्थलों पर भिन्नता है। इनमें सीता हरण के समय रावण द्वार दानव की पीठ पर स्थापित यान से यात्रा करना, सीता द्वारा जटायु को अंगूठी देना, सेतु निर्माण के समय मछलियों द्वारा पत्थरों को निगलना, रावण के दरबार में अंगद का कान काटा जाना आदि प्रसंग वाल्मीकि रामायण में नहीं हैं। इस विशाल श्रृंखला में कुछ चित्र ऐसे भी हैं जहाँ व्याख्याकारों को उसी प्रकार अंटक जाना पड़ता है, जिस प्रकार महाभारत के लिपीकार को व्यास के दृष्टिकूटों को समझने के लिए कलम रोकनी पड़ती थी। प्रम्बनान के शिलाचित्रों की स्थापना के चार सौ वर्ष बाद पूर्वी जावा में पनातरान के शिला शिल्प में पुन: राम कथा की अभिव्यक्ति हुई है। चंडी पनातरान ब्लीटार जिला में केतुल पर्वत के पास दक्षिण-पश्चिम की तलहटी में स्थित है। यहाँ चारों ओर से वृत्ताकार दीवार से घिरा एक शिव मंदिर है जिसका मुख्य द्वार पश्चिम की ओर है। इसका निर्माण कार्य मजपहित वंश के राजकुमार हयमबुरुक की माता जयविष्णुवर्धनी के राजत्व काल में १३४७ई. में पूरा हुआ था, किंतु इसका आरंभ किसी पूर्ववर्ती सम्राट ने ही किया था। चंडी पनातरान में राम कथा के १०६ शिला चित्र है।३ इनमें मुख्य रुप से हनुमान के पराक्रम को प्रदर्शित किया गया है। इसका आरंभ हनुमान के लंका प्रवेश से हुआ है और कुंभकर्ण की मृत्यु के बाद यहाँ की कथा समाप्त हो जाती है। प्रम्बनान के शिलाचित्र हिंदू-जावानी शैली में उत्कीर्ण है, जबकि पनातरान का शिलाशिल्प पूरी तरह जावानी है। इनमें चित्रित वस्राभूषण तथा अस्र-शस्र के साथ पात्रों की आकृतियों पर भी जापानी शैली का प्रभाव है। कंपूचिया स्थित अंकोरवाट मंदिर का निर्माण सम्राट सूर्यवर्मन द्वितीय (१११२-५३ई.) के राजत्वकाल में हुआ था। इस मंदिर के गलियारे में तत्कालीन सम्राट के बल-वैमन का साथ स्वर्ग-नरक, समुद्र मंथन, देव-दानव युद्ध, महाभारत, हरिवंश तथा रामायण से संबद्ध अनेक शिलाचित्र हैं। यहाँ के शिलाचित्रों में रुपायित राम कथा बहुत संक्षिप्त है। इन शिलाचित्रों की श्रृंखला रावण वध हेतु देवताओं द्वारा की गयी आराधना से आरंभ होती है। उसके बाद सीता स्वयंवर का दृश्य है। बालकांड की इन दो प्रमुख घटनाओं की प्रस्तुति के बाद विराध एवं कबंध वध का चित्रण हुआ है। अगले शिलाचित्र में राम धनुष-बाण लिए स्वर्ण मृग के पीछे दौड़ते हुए दिखाई पड़ते हैं। इसके उपरांत सुग्रीव से राम की मैत्री का दृश्य है। फिर, वालि और सुग्रीव के द्वेंद्व युद्ध का चित्रण हुआ है। परवर्ती शिलाचित्रों में अशोक वाटिका में हनुमान की उपस्थिति, राम-रावण युद्ध, सीता की अग्नि परीक्षा और राम की अयोध्या वापसी के दृश्य हैं।४ अंकोरवाट के शिलाचित्रों में रुपायित राम कथा यद्यपि अत्यधिक विरल और संक्षिप्त है, तथापि यह महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसकी प्रस्तुति आदिकाव्य की कथा के अनुरुप हुई है। राम कथा के शिलाचित्रों में थाईलैंड का भी महत्वपूर्ण स्थान है। थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक के राजभवन परिसर के दक्षिणी किनारे पर वाट-पो या जेतुवन विहार है। इसके दीक्षा कक्ष में संगमरमर के १५२ शिलापटों पर राम कथा के चित्र उत्तीर्ण हैं। जे.एम. कैडेट की पुस्तक 'रामकियेन' में उनके चित्र हैं और उनका अध्ययन भी किया गया है। इस ग्रंथ में उन शिलाचित्रों को नौ खंडों में विभाजित कर उनका विश्लेषण किया गया है- (१) सीता-हरण, (२) हनुमान की लंका यात्रा, (३) लंका दहन, (४) विभीषण निष्कासन, (५) छद्म सीता प्रकरण, (६) सेतु निर्माण, (७) लंका सर्वेक्षण, (९) कुंभकर्ण तथा इंद्रजीत वध और (९) अंतिम युद्ध। दक्षिण-पूर्व एशिया के रामायण शिलाचित्रों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारत में वैष्णव और शैव विचारों का समन्वय की प्रवृत्ति मध्यकाल में विकसित होते है, जबकि इस क्षेत्र में इस परंपरा का आरंभ प्रम्बनान के शिवालय से ही हो जाता है जिसकी तिथि नौवीं शताब्दी है। इसके साथ ही यहाँ वैष्णव और शैव के साथ बौद्ध आस्था का भी समन्वय हुआ है।