Ramayana means Rama's travel path
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Mrigan kanchanam tapovnadi gamnan RAM hatva adau. Miss. vaidhehi sugreevmarnan harnan jatayu sambhashnam. Vali dasham tarnan Lanka Puri sea nearing.Taddhi ramaynam kumbhakarn pashchad Ravana hannan.
The tragic reality of life in the abduction of SITA Rama Katha rupayit and their search isextremely exciting. Ramkatha hosted foreign-travel in the context of the particular importance of SITA's travel search.
Valmiki Ramayana, kishkindha episode forty from tetalis is the extended charactersbetween chapters which is reputed as ' digvarnan '. It apes the messengers in different directions by Raj bali to have separate guidelines that meets the contemporarygeography of Asia.
This is described by valmiki, several important research locations around the worldhave been trying to identify on the modern map. The messengers in the East bycreepage sugreev seven States to beautify yavadvip (Java), Golden Island (Sumatra) and yatnapurvak jankasuta to explore recopa island was ordered. That order also saidthat ahead of the yav is a mountain peak Shishir k. Dube Island heaven to touch andwhich gods and monsters reside.
Yanivanton yav dvipan saptarajyopshobhitam. Dvipan suvarnakar manditam Goldenrecopa. Javadvip atikramya shishiro name Mountain:. Divan sprishti shrringan served:devdanav.1
The beginning of the history of South-East Asia is proof of the same dastaveti.Indonesia's Borneo island from the late third century justifications to see strong evidence of Indian culture. In a Sanskrit inscription of mulvarma's bornean Islandscommendation is engraved as follows-
Shrimat: Mr. narendrasya cosigned mahatman:. Putroshvavarma noted:yathanshuman. vanshakarta. Tasya son mahatman: tapobladmanvit:.Teshantrayanampravar: tapobladmanvit:.. Mr. mulvamrma rajandroyashtvavahusuvarnakam. Tasya yagyasya yupoyan dvijendrassamprakalpit:..2
The father of ashvavarma and the original in the article rock Verma grandfather mentions kundag. Bornean Indian culture and Sanskrit language will also be installed in time. Means that a lot of the original Verma bhartavasi rajatvakal were the first in the region. Java island and nearby areas after the description of express shonnad and administered the same as black cloud visible is mentioned in which the sea is a huge roared. This is the sea coast is the island where fierce land of residence shalmalik, a Garuda mandeh called Monster Live that safety zone sea Keep hanging on the shell of the intermediate shikhron. Prepare ahead and Sura are sea ocean dadhi. Then, there are the philosophy of white abhavale kshir sea. The sea is black mountain which he called middle rishabh called is a lake. After the delicious sea jalvala a frightening kshir sea which is a huge horse passes the home is fire.3
' Mahabharata ' in a fiction that bhriguvanshi arv Rishi's anger from which fire flameoccurred, it was the possibility of the destruction of the world. In such a situation heput the fire at sea. There was fire in the ocean where she immersed, horse face (vadvamukh) became and flames were out. That is why his name had been vadvanal.
Modern reviewers recognized that this area of the Pacific Ocean indicate a volcano. From the site malaskka may be between the philippins waterways.4 reality is often between the island groups of Indonesia philippins volcanic explosion many of which are historical evidence. Dadhi, Dhrit and Sura regarding the Black Sea, like sea water kshir aura colors indicators appear. Badvamukh mountain of North jupiter, a thirteen planned gold where the remaining holding Earth snake appear sitting. The mountain keeps a golden flag fluttering Palm marks. This is a limitation of the East pool flag. Then suvarnamay is the name of the mountain which peaks rise someones. The Sun orbiting from North round jambu Island are located, when siemens Then there are their clarity in this area of philosophy. Similar to the Sun are visible someones Lucent. Ahead of the mountain area is unknown.5 is jupiter means gold. It is estimated that the jupiter mount samb
रामायण का अर्थ राम का यात्रा पथ
आदिकवि वाल्मीकि कृत रामायण न केवल इस अर्थ में अद्वितीय है कि यह देश-विदेश की अनेक भाषाओं के साहित्य की विभिन्न विधाओं में विरचित तीन सौ से भी अधिक मौलिक रचनाओं का उपजीव्य है, प्रत्युत इस संदर्भ में भी कि इसने भारत के अतिरिक्त अनेक देशों के नाट्य, संगीत, मूर्ति तथा चित्र कलाओं को प्रभावित किया है और कि भारतीय इतिहास के प्राचीन स्रोतों में इसके मूल को तलाशने के सारे प्रयासों की विफलता के बावजूद यह होमर कृत 'इलियाड' तथा 'ओडिसी', वर्जिल कृत 'आइनाइड' और दांते कृत 'डिवाइन कॉमेडी' की तरह संसार का एक श्रेष्ठ महाकाव्य है। 'रामायण' का विश्लेषित रुप 'राम का अयन' है जिसका अर्थ है 'राम का यात्रा पथ', क्योंकि अयन यात्रापथवाची है। इसकी अर्थवत्ता इस तथ्य में भी अंतर्निहित है कि यह मूलत: राम की दो विजय यात्राओं पर आधारित है जिसमें प्रथम यात्रा यदि प्रेम-संयोग, हास-परिहास तथा आनंद-उल्लास से परिपूर्ण है, तो दूसरी क्लेश, क्लांति, वियोग, व्याकुलता, विवशता और वेदना से आवृत्त। विश्व के अधिकतर विद्वान दूसरी यात्रा को ही रामकथा का मूल आधार मानते हैं। एक श्लोकी रामायण में राम वन गमन से रावण वध तक की कथा ही रुपायित हुई है।
अदौ राम तपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्। वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव संभाषणम्। वालि निग्रहणं समुद्र तरणं लंका पुरी दास्हम्। पाश्चाद् रावण कुंभकर्ण हननं तद्धि रामायणम्।
जीवन के त्रासद यथार्थ को रुपायित करने वाली राम कथा में सीता का अपहरण और उनकी खोज अत्यधिक रोमांचक है। रामकथा की विदेश-यात्रा के संदर्भ में सीता की खोज-यात्रा का विशेष महत्व है।
वाल्मीकि रामायण के किष्किंधा कांड के चालीस से तेतालीस अध्यायों के बीच इसका विस्तृत वर्ण हुआ है जो 'दिग्वर्णन' के नाम से विख्यात है। इसके अंतर्गत वानर राज बालि ने विभिन्न दिशाओं में जाने वाले दूतों को अलग-अलग दिशा निर्देश दिया जिससे एशिया के समकालीन भूगोल की जानकारी मिलती है।
इस दिशा में कई महत्वपूर्ण शोध हुए है जिससे वाल्मीकी द्वारा वर्णित स्थानों को विश्व के आधुनिक मानचित्र पर पहचानने का प्रयत्न किया गया है। कपिराज सुग्रीव ने पूर्व दिशा में जाने वाले दूतों के सात राज्यों से सुशोभित यवद्वीप (जावा), सुवर्ण द्वीप (सुमात्रा) तथा रुप्यक द्वीप में यत्नपूर्वक जनकसुता को तलाशने का आदेश दिया था। इसी क्रम में यह भी कहा गया था कि यव द्वीप के आगे शिशिर नामक पर्वत है जिसका शिखर स्वर्ग को स्पर्श करता है और जिसके ऊपर देवता तथा दानव निवास करते हैं।
यनिवन्तों यव द्वीपं सप्तराज्योपशोभितम्। सुवर्ण रुप्यक द्वीपं सुवर्णाकर मंडितम्। जवद्वीप अतिक्रम्य शिशिरो नाम पर्वत:। दिवं स्पृशति श्रृंगं देवदानव सेवित:।१
दक्षिण-पूर्व एशिया के इतिहास का आरंभ इसी दस्तावेती सबूत से होता है। इंडोनेशिया के बोर्नियो द्वीप में तीसरी शताब्दी को उत्तरार्ध से ही भारतीय संस्कृति की विद्यमानता के पुख्ता सबूत मिलते हैं। बोर्नियों द्वीप के एक संस्कृत शिलालेख में मूलवर्मा की प्रशस्ति उत्कीर्ण है जो इस प्रकार है-
श्रीमत: श्री नरेन्द्रस्य कुंडगस्य महात्मन:। पुत्रोश्ववर्मा विख्यात: वंशकर्ता यथांशुमान्।। तस्य पुत्रा महात्मान: तपोबलदमान्वित:। तेषांत्रयानाम्प्रवर: तपोबलदमान्वित:।। श्री मूलवम्र्मा राजन्द्रोयष्ट्वा वहुसुवर्णकम्। तस्य यज्ञस्य यूपोयं द्विजेन्द्रस्सम्प्रकल्पित:।।२
इस शिला लेख में मूल वर्मा के पिता अश्ववर्मा तथा पितामह कुंडग का उल्लेख है। बोर्नियों में भारतीय संस्कृति और संस्कृत भाषा के स्थापित होने में भी काफी समय लगा होगा। तात्पर्य यह कि भारतवासी मूल वर्मा के राजत्वकाल से बहुत पहले उस क्षेत्र में पहुँच गये थे। जावा द्वीप और उसके निकटवर्ती क्षेत्र के वर्णन के बाद द्रुतगामी शोणनद तथा काले मेघ के समान दिलाई दिखाई देने वाले समुद्र का उल्लेख हुआ है जिसमें भारी गर्जना होती रहती है। इसी समुद्र के तट पर गरुड़ की निवास भूमि शल्मलीक द्वीप है जहाँ भयंकर मानदेह नामक राक्षस रहते हैं जो सुरा समुद्र के मध्यवर्ती शैल शिखरों पर लटके रहते है। सुरा समुद्र के आगे घृत और दधि के समुद्र हैं। फिर, श्वेत आभावाले क्षीर समुद्र के दर्शन होते हैं। उस समुद्र के मध्य ॠषभ नामक श्वेत पर्वत है जिसके ऊपर सुदर्शन नामक सरोवर है। क्षीर समुद्र के बाद स्वादिष्ट जलवाला एक भयावह समुद्र है जिसके बीच एक विशाल घोड़े का मुख है जिससे आग निकलती रहती है।३
'महाभारत' में एक कथा है कि भृगुवंशी और्व ॠषि के क्रोध से जो अग्नि ज्वाला उत्पन्न हुई, उससे संसार के विनाश की संभावना थी। ऐसी स्थिति में उन्होंने उस अग्नि को समुद्र में डाल दिया। सागर में जहाँ वह अग्नि विसर्जित हुई, घोड़े की मुखाकृति (वड़वामुख) बन गयी और उससे लपटें निकलने लगीं। इसी कारण उसका नाम वड़वानल पड़ा।
आधुनिक समीक्षकों की मान्यता है कि इससे प्रशांत महासागर क्षेत्र की किसी ज्वालामुखी का संकेत मिलता है। वह स्थल मलस्क्का से फिलिप्पींस जाने वाले जलमार्ग के बीच हो सकता है।४ यथार्थ यह है कि इंडोनेशिया से फिलिप्पींस द्वीप समूहों के बीच अक्सर ज्वालामुखी के विस्फोट होते रहते हैं जिसके अनेक ऐतिहासिक प्रमाण हैं। दधि, धृत और सुरा समुद्र का संबंध श्वेत आभा वाले क्षीर सागर की तरह जल के रंगों के संकेतक प्रतीत होते हैं। बड़वामुख से तेरह योजना उत्तर जातरुप नामक सोने का पहाड़ है जहाँ पृथ्वी को धारण करने वाले शेष नाग बैठे दिखाई पड़ते हैं। उस पर्वत के ऊपर ताड़ के चिन्हों वाला सुवर्ण ध्वज फहराता रहता है। यही ताल ध्वज पूर्व दिशा की सीमा है। उसके बाद सुवर्णमय उदय पर्वत है जिसके शिखर का नाम सौमनस है। सूर्य उत्तर से घूमकर जम्बू द्वीप की परिक्रमा करते हुए जब सैमनस पर स्थित होते हैं, तब इस क्षेत्र में स्पष्टता से उनके दर्शन होते हैं। सौमनस सूर्य के समान प्रकाशमान दृष्टिगत होते हैं। उस पर्वत के आगे का क्षेत्र अज्ञात है।५ जातरुप का अर्थ सोना होता है। ऐसा अनुमान किया जाता है कि जातरुप पर्वत का संबंध प्रशांत महासागर के पार मैक्सिको के स्वर्ण-उत्पादक पर्वतों से हो सकता है। मक्षिका का अर्थ सोना होता है। मैक्सिको शब्द मक्षिका से ही विकसित माना गया है। यह भी संभव है कि मैक्सिको की उत्पत्ति सोने के खान में काम करने वाली आदिम जाति मैक्सिका से हुई है।६ मैक्सिको में एशियाई संस्कृति के प्राचीन अवशेष मिलने से इस अवधारणा से पुष्टि होती है। बालखिल्य ॠषियों का उल्लेख विष्णु-पुराण और रघुवंश में हुआ है जहाँ उनकी संख्या साठ हज़ार और आकृति अँगूठे से भी छोटी बतायी गयी है। कहा गया है कि वे सभी सूर्य के रथ के घोड़े हैं। इससे अनुमान किया जाता है कि यहाँ सूर्य की असंख्य किरणों का ही मानवीकरण हुआ है।७ उदय पर्वत का सौमनस नामक सुवर्णमय शिखर और प्रकाशपुंज के रुप में बालखिल्य ॠषियों के वर्णन से ऐसा प्रतीत होता है कि इस स्थल पर प्रशांत महासागर में सूर्योदय के भव्य दृश्य का ही भावमय एवं अतिरंजित चित्रण हुआ है। वाल्मीकि रामायण में पूर्व दिशा में जाने वाले दूतों के दिशा निर्देशन की तरह दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशा में जाने वाले दूतों को भी मार्ग का निर्देश दिया गया है। इसी क्रम में उत्तर में ध्रुव प्रदेश, दक्षिण में लंका के दक्षिण के हिंद महासागरीय क्षेत्र और पश्चिम में अटलांटिक तक की भू-आकृतियों का काव्यमय चित्रण हुआ है जिससे समकालीन एशिया महादेश के भूगोल की जानकारी मिलती है। इस संदर्भ में उत्तर-ध्रुव प्रदेश का एक मनोरंजक चित्र उल्लेखनीय है। बैखानस सरोवर के आगे न तो सूर्य तथा न चंद्रमा दिखाई पड़ते हैं और न नक्षत्र तथा मेघमाला ही। उस प्रदेश के बाद शैलोदा नामक नदी है जिसके तट पर वंशी की ध्वनि करने वाले कीचक नामक बाँस मिलते हैं। उन्हीं बाँसों का बेरा बनाकर लोग शैलोदा को पारकर उत्तर-कुरु जाते है जहाँ सिद्ध पुरुष निवास करते हैं। उत्तर-कुरु के बाद समुद्र है जिसके मध्य भाग में सोमगिरि का सुवर्गमय शिखर दिखाई पड़ता है। वह क्षेत्र सूर्य से रहित है, फिर भी वह सोमगिरि के प्रभा से सदा प्रभावित होता रहता है।८ ऐसा मालूम पड़ता है कि यहाँ उत्तरीध्रुव प्रदेश का वर्णन हुआ है जहाँ छह महीनों तक सूर्य दिखाई नहीं पड़ता और छह महीनों तक क्षितिज के छोड़पर उसके दर्शन भी होते हैं, तो वह अल्पकाल के बाद ही आँखों से ओझल हो जाता है। ऐसी स्थिति में सूर्य की प्रभा से उद्भासित सोमगिरि के हिमशिखर निश्चय ही सुवर्णमय दीखते होंगे। अंतत: यह भी यथार्थ है कि सूर्य से रहित होने पर भी उत्तर-ध्रुव पूरी तरह अंधकारमय नहीं है।
सतु देशो विसूर्योऽपि तस्य मासा प्रकाशते। सूर्य लक्ष्याभिविज्ञेयस्तपतेव विवास्वता।९
राम कथा की विदेश-यात्रा के संदर्भ में वाल्मीकि रामायण का दिग्वर्णन इस अर्थ में प्रासंगिक है कि कालांतर में यह कथा उन स्थलों पर पहुँच ही नहीं गयी, बल्कि फलती-फूलती भी रही। बर्मा, थाईलैंड, कंपूचिया, लाओस, वियतनाम, मलयेशिया, इंडोनेशिया, फिलिपींस, तिब्बत, चीन, जापान, मंगोलिया, तुर्किस्तान, श्रीलंका और नेपाल की प्राचीन भाषाओं में राम कथा पर आधारित बहुत सारी साहित्यिक कृतियाँ है। अनेक देशों में यह कथा शिलाचित्रों की विशाल श्रृखलाओं में मौजूद हैं। इनके शिलालेखी प्रमाण भी मिलते है। अनेक देशों में प्राचीन काल से ही रामलीला का प्रचलन है। कुछ देशों में रामायण के घटना स्थलों का स्थानीकरण भी हुआ है।
'महाभारत' में एक कथा है कि भृगुवंशी और्व ॠषि के क्रोध से जो अग्नि ज्वाला उत्पन्न हुई, उससे संसार के विनाश की संभावना थी। ऐसी स्थिति में उन्होंने उस अग्नि को समुद्र में डाल दिया। सागर में जहाँ वह अग्नि विसर्जित हुई, घोड़े की मुखाकृति (वड़वामुख) बन गयी और उससे लपटें निकलने लगीं। इसी कारण उसका नाम वड़वानल पड़ा।
आधुनिक समीक्षकों की मान्यता है कि इससे प्रशांत महासागर क्षेत्र की किसी ज्वालामुखी का संकेत मिलता है। वह स्थल मलस्क्का से फिलिप्पींस जाने वाले जलमार्ग के बीच हो सकता है।४ यथार्थ यह है कि इंडोनेशिया से फिलिप्पींस द्वीप समूहों के बीच अक्सर ज्वालामुखी के विस्फोट होते रहते हैं जिसके अनेक ऐतिहासिक प्रमाण हैं। दधि, धृत और सुरा समुद्र का संबंध श्वेत आभा वाले क्षीर सागर की तरह जल के रंगों के संकेतक प्रतीत होते हैं। बड़वामुख से तेरह योजना उत्तर जातरुप नामक सोने का पहाड़ है जहाँ पृथ्वी को धारण करने वाले शेष नाग बैठे दिखाई पड़ते हैं। उस पर्वत के ऊपर ताड़ के चिन्हों वाला सुवर्ण ध्वज फहराता रहता है। यही ताल ध्वज पूर्व दिशा की सीमा है। उसके बाद सुवर्णमय उदय पर्वत है जिसके शिखर का नाम सौमनस है। सूर्य उत्तर से घूमकर जम्बू द्वीप की परिक्रमा करते हुए जब सैमनस पर स्थित होते हैं, तब इस क्षेत्र में स्पष्टता से उनके दर्शन होते हैं। सौमनस सूर्य के समान प्रकाशमान दृष्टिगत होते हैं। उस पर्वत के आगे का क्षेत्र अज्ञात है।५ जातरुप का अर्थ सोना होता है। ऐसा अनुमान किया जाता है कि जातरुप पर्वत का संबंध प्रशांत महासागर के पार मैक्सिको के स्वर्ण-उत्पादक पर्वतों से हो सकता है। मक्षिका का अर्थ सोना होता है। मैक्सिको शब्द मक्षिका से ही विकसित माना गया है। यह भी संभव है कि मैक्सिको की उत्पत्ति सोने के खान में काम करने वाली आदिम जाति मैक्सिका से हुई है।६ मैक्सिको में एशियाई संस्कृति के प्राचीन अवशेष मिलने से इस अवधारणा से पुष्टि होती है। बालखिल्य ॠषियों का उल्लेख विष्णु-पुराण और रघुवंश में हुआ है जहाँ उनकी संख्या साठ हज़ार और आकृति अँगूठे से भी छोटी बतायी गयी है। कहा गया है कि वे सभी सूर्य के रथ के घोड़े हैं। इससे अनुमान किया जाता है कि यहाँ सूर्य की असंख्य किरणों का ही मानवीकरण हुआ है।७ उदय पर्वत का सौमनस नामक सुवर्णमय शिखर और प्रकाशपुंज के रुप में बालखिल्य ॠषियों के वर्णन से ऐसा प्रतीत होता है कि इस स्थल पर प्रशांत महासागर में सूर्योदय के भव्य दृश्य का ही भावमय एवं अतिरंजित चित्रण हुआ है। वाल्मीकि रामायण में पूर्व दिशा में जाने वाले दूतों के दिशा निर्देशन की तरह दक्षिण, पश्चिम और उत्तर दिशा में जाने वाले दूतों को भी मार्ग का निर्देश दिया गया है। इसी क्रम में उत्तर में ध्रुव प्रदेश, दक्षिण में लंका के दक्षिण के हिंद महासागरीय क्षेत्र और पश्चिम में अटलांटिक तक की भू-आकृतियों का काव्यमय चित्रण हुआ है जिससे समकालीन एशिया महादेश के भूगोल की जानकारी मिलती है। इस संदर्भ में उत्तर-ध्रुव प्रदेश का एक मनोरंजक चित्र उल्लेखनीय है। बैखानस सरोवर के आगे न तो सूर्य तथा न चंद्रमा दिखाई पड़ते हैं और न नक्षत्र तथा मेघमाला ही। उस प्रदेश के बाद शैलोदा नामक नदी है जिसके तट पर वंशी की ध्वनि करने वाले कीचक नामक बाँस मिलते हैं। उन्हीं बाँसों का बेरा बनाकर लोग शैलोदा को पारकर उत्तर-कुरु जाते है जहाँ सिद्ध पुरुष निवास करते हैं। उत्तर-कुरु के बाद समुद्र है जिसके मध्य भाग में सोमगिरि का सुवर्गमय शिखर दिखाई पड़ता है। वह क्षेत्र सूर्य से रहित है, फिर भी वह सोमगिरि के प्रभा से सदा प्रभावित होता रहता है।८ ऐसा मालूम पड़ता है कि यहाँ उत्तरीध्रुव प्रदेश का वर्णन हुआ है जहाँ छह महीनों तक सूर्य दिखाई नहीं पड़ता और छह महीनों तक क्षितिज के छोड़पर उसके दर्शन भी होते हैं, तो वह अल्पकाल के बाद ही आँखों से ओझल हो जाता है। ऐसी स्थिति में सूर्य की प्रभा से उद्भासित सोमगिरि के हिमशिखर निश्चय ही सुवर्णमय दीखते होंगे। अंतत: यह भी यथार्थ है कि सूर्य से रहित होने पर भी उत्तर-ध्रुव पूरी तरह अंधकारमय नहीं है।
सतु देशो विसूर्योऽपि तस्य मासा प्रकाशते। सूर्य लक्ष्याभिविज्ञेयस्तपतेव विवास्वता।९
राम कथा की विदेश-यात्रा के संदर्भ में वाल्मीकि रामायण का दिग्वर्णन इस अर्थ में प्रासंगिक है कि कालांतर में यह कथा उन स्थलों पर पहुँच ही नहीं गयी, बल्कि फलती-फूलती भी रही। बर्मा, थाईलैंड, कंपूचिया, लाओस, वियतनाम, मलयेशिया, इंडोनेशिया, फिलिपींस, तिब्बत, चीन, जापान, मंगोलिया, तुर्किस्तान, श्रीलंका और नेपाल की प्राचीन भाषाओं में राम कथा पर आधारित बहुत सारी साहित्यिक कृतियाँ है। अनेक देशों में यह कथा शिलाचित्रों की विशाल श्रृखलाओं में मौजूद हैं। इनके शिलालेखी प्रमाण भी मिलते है। अनेक देशों में प्राचीन काल से ही रामलीला का प्रचलन है। कुछ देशों में रामायण के घटना स्थलों का स्थानीकरण भी हुआ है।