Sunday, June 18, 2017

A British officer renovate Baijnath Mahadev Temple in 1883 पत्नी की पूजा से प्रसन्न होकर शिव ने दिया अंग्रेज को जीवनदान







मध्यप्रदेश के आगर मालवा नगर में श्रीबैजनाथ महादेव का एक ऎसा ऎतिहासिक मंदिर हैं जिसका जीर्णोद्धार तत्कालीन अंग्रेज सेना के एक अधिकारी ने करवाया था। प्रदेश के नवगठित एवं 51 वे जिले के रूप में गत वर्ष अस्तित्व में आए आगर मालवा के इतिहास में उल्लेख है कि बैजनाथ महादेव के मंदिर का जीर्णोद्धार कर्नल मार्टिन ने वर्ष 1883 में 15 हजार रूपये का चंदा कर करवाया था। इस बात का शिलालेख भी मंदिर के अग्रभाग में लगा है। उत्तर एवं दक्षिण भारतीय कलात्मक शिल्प में निर्मित श्रीबैजनाथ महादेव को चमत्कारी देव माना जाता है। इसका ज्वलंत उदाहरण उस समय दिखाई दिया जब अफगानिस्तान में 130 वर्ष पहले पठानी सेना से घिरे कर्नल मार्टिन की प्राणरक्षा भगवान शिव ने की और वे सही सलामत घर लौटे।
इतिहास में वर्णित है कि वर्ष 1879 में अंग्रेजों ने अफगानिस्तान पर आक्रमण कर दिया था। इस युद्ध का संचालन आगरमालवा की ब्रिट्रिश छावनी के लेफ्टिनेंट क र्नल मार्टिन को सौंपा गया था। मार्टिन युद्ध एवं स्वयं की कुशलता के समाचार आगर मालवा में छोड कर गए अपनी पत्नी को नियमित भेजते थे। इस दौरान एक वक्त ऎसा भी आया जब मार्टिन के संदेश आना बंद हो गए। उनकी पत्नी को अनेक शंकाएं सताने लगी। वह एक दिन घोडे पर बैठ कर आगरमालवा में घूमने गई तो श्री बैजनाथ महादेव मंदिर से आती शंखध्वनि और मंत्रों से आकर्षित हो मंदिर पहुंची। वहां मंदिर में पूजा पाठ कर रहे पंडितों से चर्चा की एवं शिव पूजन के महत्व के बारे में पूछताछ की। पुजारी ने कहा भगवान शिव औघरदानी और भोलेभंडारी हैं। अपने भक्तों के संकट वह तुरंत ही दूर करते हैं। पुजारी ने लेडी मार्टिन से पूछा बेटी तुम बडी चिंतातुर लग रही हो क्या कारण है। लेडी मार्टिन बोली मेरे पति युद्ध में गए हैं और कई दिनों से उनका कोई समाचार नहीं आया इसलिए चिंतित हूं, इतना कहते हुये लेडी मार्टिन रो पडी। फिर ब्राहमणों के कहने पर श्रीमती मार्टिन ने लघु रूद्रीअनुष्ठान आरंभ करवाया तथा भगवान शिव से अपने पति की रक्षा के लिये प्रार्थना करने लगी और संकल्प लिया कि उनके पति युद्ध जीतकर आ जाए तो वह मंदिर पर शिखर बनवायेगी। लघुरूद्री की पूर्णाहुति के दिन भागता हुआ एक संदेशवाहक शिवमंदिर पहुंचा। लेडी मार्टिन ने घबराते हुए लिफाफा खोला और पढने लगी। पत्र में उनके पति ने लिखा, हम युद्धरत थे तुम्हारे पास खबर भी भेजते रहते थे लेकिन अचानक हमें पठानी सेना ने घेर लिया। ब्रिटिश सेना के सैनिक मरने लगे ऎसी विषम परिस्थिति से हम घिर गए और जान बचाकर भागना मुश्किल हो गया। इतने में देखा कि युद्ध भूमि में कोई एक योगी जिनकी लम्बी जटाएं एवं हाथ में तीन नोंक वाला हथियार (त्रिशूल) लिए पहुंचे। उन्हें देखते ही पठान सैनिक भागने लगे और हमारी हार की घंडियां एकाएक जीत में बदल गई।
पत्र में लिखा था यह सब उन त्रिशूलधारी योगी के कारण ही संभव हुआ। फिर उन्होने कहा घबराओं नहीं मैं भगवान शिव हूं तथा तुम्हारी पत्नी द्वारा शिवपूजन से प्रसन्न होकर तुम्हारी रक्षा करने आया हूं। पत्र पढते हुए लेडी मार्टिन ने भगवान शिव की प्रतिमा के सम्मुख सिर रखकर प्रार्थना करते हुए भगवान का शुक्रिया अदा किया और उनकी आंखों से खुशी के आंसू छलक पडे। कुछ दिनों बाद जब कर्नल मार्टिन आगर मालवा ब्रिटिश छावनी लौटकर आए और पत्नी को सारी बातें विस्तार से बताई और अपनी पत्नी के संकल्प पर कर्नल मार्टिन ने सन 1883 में पन्द्रह हजार रूपये का सार्वजनिक चंदा कर श्रीबैजनाथ महादेव के मंदिर का जीर्णोद्धार क रवाया। आगरमालवा की उत्तर दिशा में जयपुर मार्ग पर बाणगंगा नदी के किनारे स्थापित श्रीबैजनाथ महादेव का यह ऎतिहासिक मंदिर लिंग राजा नलकालीन माना जाता है। पहले यह मंदिर एक मठ के रूप में था तथा तांत्रिक अघौरी यहां पूजापाठ करते थे। मंदिर का गर्भगृह 11 गुणा 11 फीट का चौकोर है तथा मध्य में आ ग्नेय पाषाण का शिवलिंग स्थापित है। मंदिर का शिखर चूनेपत्थर का निर्मित है जिसके अंदर और बाहर ब्रहमा, विष्णु और महेश की दर्शनीय प्रतिमाऎं उत्कीर्ण हैं। करीब 50 फुट ऊंचे इस मंदिर के शिखर पर चार फुट उचां स्वर्णकलश है। मंदिर के सामने विशाल सभा मंडप और मंडप में दो फुट ऊंची एवं तीन फु ट लंबी नंदी की प्रतिमा है। मंदिर के पीछे लगभग 115 फुट लंबा और 48 फुट चौडा कमलकुंड है जहां खिलते हुए कमल के फूलों से यह स्थल और भी रमणीक दिखाई देता है। महाशिवरात्रि के अलावा यहां चैत्र एवं कार्तिक माह में भी भव्यशिव मेला आयोजित होता है और दूर दराज से श्रद्धालु चमत्कारिक श्रीबैजनाथ महादेव के दर्शन पूजन करने पहुंचते हैं।

Tuesday, June 13, 2017

हिंगलाज माता का मंदिरः हिंदुओं के साथ मुस्लिम भी करते हैं पूजा





क्षत्रियों की कुलदेवी के रूप में प्रसिद्ध हिंगलाज भवानी माता का बलोचिस्तान स्थित मंदिर 52 शक्तिपीठों में से एक है। कराची से 250 किलोमीटर दूर क्वेटा-कराची रोड़ पर राष्ट्रीय राजमार्ग से करीब घंटेभर की पैदल दूरी पर स्थित है यह मंदिर। मंदिर के सालाना मेले में यहां हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल होते हैं। यहां के स्थानीय लोग हिंगलाज माता मंदिर को श्रद्धा से नानी का हज, नानी का मंदिर कहते हैं। नानी का मतलब यहां ईरान की देवी अनाहिता से है। कहा जाता है कि माता के दर्शन के लिए गुरू नानक देव भी आए थे। 

पाकिस्तान स्थित इस मंदिर के लिए कहा जाता है कि यहां मांगी गई हर इच्छा पूरी होती है। किसी समय पूरे विश्व के हिन्दुओं की श्रद्धा का केन्द्र रहा हिंगलाज माता का मंदिर में अब भी दूर-दूर से लोग आकर मन्नत मांगते हैं। यहां का सारा प्रबन्धन स्थानीय निवासियों की एक कमेटी करती है।

Vindhyvasini Goddess- मां शक्ति ने दिए राजा को दर्शन, कहा यहीं मुझे करो स्थापित






नगर की आराध्य देवी मां विंध्यवासिनी की ख्याति प्रदेश और देशभर में नहीं, अपितु विदेशों में भी है। यहां हर साल अमेरिका का एक श्रद्धालु दोनों नवरात्र में मनोकामना ज्योत प्रज्ज्वलित करता हैं। मांगे मुराद पूरी करने वाली मां विंध्यवासिनी देवी को यहां बिलाई दाई भी कहा जाता है, जिनकी लीला अपरंपार है। स्वयं-भू नगर आराध्य माता विंध्यवासिनी देवी मां बिलाई माता के इतिहास गाथा की जितना बखान किया जाए, उतना कम है। देवी-देवताओं का गढ़ छत्तीसगढ़ श्रद्धा भक्ति और विश्वास का केंद्र है। 
छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में नया बस स्टैंड से 2 किमी की दूरी में माता विंध्यवासिनी देवी का मंदिर है। माता धरती फोड़कर प्रकट हुई है, इस कारण इसे स्वयं-भू विंध्यवासिनी माता कहते हैं। अंचल में बिलाई माता के नाम से यह प्रसिद्ध है। शास्त्र वेद भागवत पुराण के मुताबिक विंध्यवासिनी माता श्रीकृष्ण की बहन है। योग माया कृष्ण बहन नंदजा यशोदा पुत्री विंध्यवासिनी मां शिवमहापुरायण में नंद गोप गृहे माता यशोदा गर्भ संभव तत्सवै नास्यामि विंध्याचल वासिनी मूर्ति का पाषण श्याम रंग का है। अंबे मैय्या गौरी माता विंध्यवासिनी देवी मां के 108 नाम है।
धार्मिक इतिहास में मान्यता

धार्मिक इतिहास और राजलेखानुसार यह क्षेत्र पहले घनघोर बनबिवान जंगल था। एक समय राजा नरहर देव अपनी राजधानी कांकेर से सैनिकों के साथ इस स्थान में शिकार खेलने आए। राजा के सैनिक आगे की ओर बढ़ रहे थे, एकाएक अचानक उनका दल-बल सैनिक हाथी-घोडे रूक गए। काफी प्रयास के बाद भी आगे बढ़ने में विफल रहे। राजा-सैनिक वापस चले गए। दूसरे दिन भी यह घटना हुई। राजा ने सेनापति को आदेश दिया कि इस स्थान पर ऎसा क्या है, पता करें। सैनिकों ने आदेश का पालन किया। खोजबीन जांच में उन्होंने देखा, पाया कि एक असाधारण पत्थर तेजमयी आकर्षक, मनमोहन, मंत्रमुग्ध है। उसके आसपास जंगली बिल्लियां बैठी थी। 

राजा को सूचना दी गई, राजा खुद आए। वे इस असाधारण पत्थर को देखकर मंत्रमुग्ध आकर्षित हो गए। वे अपने सेनापति को आदेश दिया कि शीघ्र ही इसे यहां से हटाकर राजधानी में स्थापित करें। सैनिक राजा का आदेश पाकर खुदाई कार्य में जुट गए। अचानक वहां से जल की अविरल जलधारा निकलना आरंभ हो गया तो खुदाई कार्य रोक दिया गया। रात्रि में राजा नरहर देव को देवी मां ने स्वप्न दिया कि राजन मुझे यहां से न ले जाए, मैं नहीं जाउंगी, तुम्हारे सारे प्रयास विफल होंगे। मेरी पूजा अर्चना आराधना इसी स्थान पर करें। यह जगत के लिए मंगलमय कल्याणकारी सुखमय, शांति और मनोकामना पूर्ण रहेगी। मेरा आशीर्वाद सभी को मिलेगी। बाबा भोलेनाथ, हनुमान जी का आशीर्वाद भक्तों पर कृपा बरसाते हैं। यहां सर्वप्रथम गोंड़ राजा के शासनकाल में मंदिर का निर्माण किया गया।
- शैलेंद्र नाग
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1500 years old Hanuman temple In Pakistan



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पाकिस्तान में है एक ऎसा मंदिर जहां भगवान राम पहुंचे। 1500 साल पहले बने इस पंचमुखी हनुमान मंदिर में हर मनोकामना पूर्ण होती है। पाकिस्तान के सिंध प्रांत के कराची में स्थित इस मंदिर का पुर्ननिर्माण 1882 में किया गया। मंदिर में पंचमुखी हनुमान की मनमोहक प्रतिमा स्थापित है। बताया जाता है कि हनुमानजी की यह मूर्ति डेढ़ हजार साल पहले प्रकट हुई थी। जहां से मूर्ति प्रकट हुई वहां से मात्र 11 मुट्ठी मिट्टी को हटाया गया और मूर्ति सामने आ गई। हालांकि इस रहस्मयी मूर्ति का संबंध त्रेता युग से है। मंदिर पुजारी का कहना है कि यहां सिर्फ 11-12 परिक्रमा लगाने से मनोकामना पूरी हो जाती है। हनुमानजी के अलावा यहां कई हिन्दु देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। गौरतलब है कि इस मंदिर के दर्शन भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी और जसवंत सिंह भी कर चुके हैं।

कटासराज मंदिर परिसर, पंजाब
पाकिस्तान के पंजाब की राजधानी से लाहौर 270 किलोमीटर दूरी पर चकवाल जिले में स्थित है कटासराज मंदिर। कहा जाता है कि यहीं पर पांडवों ने आदिकाल से स्थित शिवलिंग की पूजा की थी। पांड़वों ने अपने अज्ञातवास के 4 साल कटासराज में ही बिताए थे। यह भी माना जाता है कि शिव और पार्वती का विवाह भी इसी जगह सम्पन्न हुआ था। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार माता पार्वती के वियोग में जब शिवशंकर ने रूदन किया, तो पृथ्वी पर दो कुंड बन गए थे। इनमें से एक कुंड अजमेर के पुष्कर में ब्रह्म सरोवर के नाम से जाना जाता है और दूसरा पाकिस्तान के कटासराज में मंदिर परिसर में मौजूद है। दोनों कुंड़ों के पानी की विशेष्ाता इनका सदैव स्वच्छ रहना और रोग-दोष मिटाना है।
From Patrika.com

Wednesday, May 3, 2017

Baba, Vanga and her prediction of end of world by 3797


She is called the Nostradamus of the Balkans, and with good reason. Baba, Vanga, the blind Bulgarian clairvoyant, who died 20 years ago, is believed to have predicted the rise of the ISIS, the fall of the twin towers, the 2004 Tsunami, and the global warming, among a host of other events. “Horror, horror! The American brethren will fall after being attacked by the steel birds.“ “The wolves will be howling in a bush and innocent blood will gush,” is, according to her followers, what she said about the fall of the twin towers. 
Born as Vangelia Pandeva Dimitrova, in Strumica, Macedonia, Baba Vanga, mysteriously lost her eyesight when she was 12, during a massive storm. She went missing for a few days, and it is during one of these days, that she had her first vision.  Baba Vanga rose to popularity as she started to make predictions, and developed a healing touch, during the World War II. Several dignitaries visited the mystic during the years that she was active, including the Bulgarian tsar, Boris III. Before she died in 1996 from breast cancer, she had said that her gift would be passed on to a 10 year old girl, living in France, who will then take on from her. Her house has since been converted into a museum. 
Here are 13 predictions that the Blind Baba made for 2016 and beyond:
Barack Obama will be the last president of the US: Baba Vanga had predicted that the 44th US president would be an African American, but she had also added that he would be the last one. According to her, he would leave office at a time when the country would be in economic ruins, and there would be a huge divide between the northern and southern states – as was the case during the American Civil War.
Europe will cease to exist: According to Baba Vanga, the continent will cease to exist by 2016, and all that would remain will be empty spaces and wasteland, nearly devoid of any form of life. She is reported to have said that chemical weapons would be used by extremists against Europe.
Muslims will invade Europe: The blind mystic had also predicted that Muslims will invade Europe, and there will be widespread destruction by extremists, which will go on for many years, until the continent ceases to exist. She had also predicted that a Great Muslim War will begin in Syria. 
China will become the new super power: As per her predictions, China is set to become the new superpower in 2018, bringing an end to the United States and its economy. According to her, the exploiters (the developed nations) will become the exploited (the third world). In 2011, the International Monetary Fund had also predicted that China’s economy will overtake that of the US in 2016, emerging as the new superpower.    
Hunger eradication: Baba Vanga has predicted that hunger will get eradicated sometime between 2025 and 2028.
On to Venus: Humans will travel to Venus, according to the Baba, in search of new energy sources. They might even set up a colony there.
Rome as the capital of the Islamic caliphate: Islam will finish invading the whole of Europe by 2043, and Rome will be the capital of the new caliphate.
Ice caps melting: According to the Baba, ice caps will melt by 2045. The rate at which the ice caps are melting already due to global warming, does seem to suggest the same.  
Cloning of organs: As per Baba Vanga’s predictions, body organs will be cloned in 2046, and that would be the easiest method of treatment.
US attacking Muslim dominated Europe: By 2066, the US will attack Muslim dominated Europe using climate change weapon, and will try to retake Rome and bring back Christianity.
The return of Communism: By 2076, communism will return to Europe and the rest of the world. 
Underwater civilisations: By 2130, civilisations will learn how to live under water, with the help of aliens. 
The death of the Earth: By 3797, everything on Earth will cease to exist. However, humans will be advanced enough to move to a new star system

Predictions -Nostradamus


 NOSTRADAMUS, the French-Jewish seer who died more than 400 years ago, and the reason for his extraordinary popularity is quite simple. Many predictions published by Nostradamus in 1555 have been completely vindicated by the passage of time. Writing more than 400 years ago, he not only foresaw the two World Wars of the 20th century, but also came close to mentioning Hitler by name! Earlier on, the French Revolution reached elimination in 1792, as predicted by him.

Incredible? Well, it is almost unbelievable. But even the most strident critics have been silenced by the phenomenal accuracy of the French seer. Of the approximately 2,500 forecasts that he published in his poetic "Centuries", no less than 800 have been precisely fulfilled so far. The remainder covers the period up to the year 3797. The track record of Nostradamus is so perfect that there can be no doubt that the others too will be realized. His "Centuries" are absolutely amazing.

For Hindus especially, Nostradamus ought to be a hero of immense cheer. The Frenchman never visited India. In point of time, his forecasts were published well before Akbar became the Moghul ruler in Delhi. But, despite the great distance of time and space, Nostradamus clearly foresaw the rise of a mighty all-conquering Hindu nation. Its birth is close at hand. The seer predicts that a resurgent India will burst forth upon its former oppressors and destroy them completely. The beginning of this terrible revenge will be in the seventh month of 1999.
and it is bound to happen.

Meanwhile, he predicts, after seven years of furious warfare, the Moslems will be totally wiped out. There will be no trace left of either Mecca or Medina. Somanath will be avenged a billion times over. The creed of Muhammad will vanish forever.

The European countries who despoiled India will not be let off either. Flames will engulf Rome as Hindu soldiers advance on Paris overcoming the barrier of the Alps. The Pope will fly from his lair. Much of Europe will repudiate the false tenets of Christianity. The ancient sway of Hinduism will be restored. Vedic chants will again fill the air.


Does this all sound like a fairy-tale? To convince the skeptics it is best to quote the prophetic quatrains of the "Centuries". It must always be borne in mind that they were first published in 1555. Two copies of that edition are still preserved in the French National Library in Paris. Their genuineness cannot be disputed.
Moslem murderers and their Western patrons will find the following forecast particularly hard to stomach:

Quatrain 75, Century X 
“Long awaited, he will not take birth in Europe, 
India will produce the immortal ruler, 
Seeing wisdom and power of unlimited scope, 
Asia will bow before this conquering scholar.” 

As if this were not a sufficient warning to fanatics, Nostradamus makes his meaning still more explicit in the following:

Quatrain 96, Century X 
“The religion of the name of the seas triumphs, 
Against the fanatics of the Khalif's adalat, 
The murderous creed of the false alefs, 
Between the Hindus and Christians will be caught.” 

This prophecy need a little explication. In geography, one finds the Hindu Maha Sagar (the Indian Ocean in English). Hinduism is the only religion with a sea (an ocean, rather) named after it. The Moslem fanatics believe that the Shariat or Koranic law with its sexual licence is God-given or Khalif's adalat. The Koran itself opens with the letter alef (A) in Arabic. Both Hindus and Christians have suffered at the hands of Moslems and seek revenge. Lebanon is a foretaste of things to come. The Nostradamian quatrain spells the doom of the creed.
If this interpretation should sound far-fetched, consider yet another prophetic quatrain:

Quatrain 50, Century L 
“From the peninsula where three seas meet, 
Comes the ruler to whom Thursday is holy, 
His wisdom and might all nations will greet, 
To oppose him in Asia will be folly.” 

South India is the only peninsula in the entire globe where three seas meet a point and stretch away. The great Hindu leader who will wipe out our enemies will hence be a south Indian who offers worship on Thursdays. It is easy to see why Nostradamus specifically mentions Thursday as the holy day. It is only Hindus who consider Thursday sacred. Moslems pray on Friday; Jews bow before God on Saturday; Christians bawl hymns on Sunday at church. Nostradamus is making it clear here that the conqueror will be a Hindu from South India. He will bind Asia together under his rule.

QUOTE: The Hindu leader, however, will not be a tyrant. He will be ruthless with the Moslem fanatics. But he will win over the communists by persuading them of the timeless varieties of Hinduism. Russia will become India's ally:


Quatrain 95, Century III 
“The creed of the Moor will perish, 
Followed be another more popular still, 
The Dnieper will be the first to relish, 
The wisdom which imposes its will.” 

The Moslems are often called Moors by Europeans owing to the nearness of Morocco with its Moslem faith. Incidentally, the Dutch who landed in Ceylon also called the Lankan Moslems as Moors. Even today, the Lankan Moslems are officially designated as Moors.

The Dnieper is a great river in southern Russia. The seer's forecast seems to suggest that Russia will be the first among Communist countries to abandon Marxism in favor of Hinduism. The Red comrades in our midst will doubtless throw up their hands in horror at the mere idea. But Riencourt, the French writer, quotes a prophecy made by Ramakrishna Parmahamsa shortly before his death which strongly supports the French seer's prediction. Shri Ramakrishna declared that his next birth would be to the north-west of India. In other words, he will be reborn in Russia as a Hindu holy man! Communism is certainly a more popular creed than Islam. But both will be alike vanquished by resurgent Hinduism.


CHANDRAYAAN-2

QUOTE: Russia will be greatly benefited by its alliance with the Hindu Rashtra. Nostradamus describes Russia's good fortune : 

Quatrain 26, Century V 
“The Salvic folk will be on the winning side, 
And rise to the highest point, 
They cast off their paltry ideological guide, 
The mountain-army crosess the sea in an expidition joint.”

QUOTE: As the Hindu troops sweep through the Middle East avenging former wrongs, the Russian army in the Caucasus mountains will link up with them. The paltry ideological guide who will be abandoned is Karl Marx. The sea to be crossed is either the Mediterranean or the Black Sea.
Inevitably, the question crops up: Are such things possible? Here is a convincing reply to prove the seer's clairvoyance :

Quatrain 77, Century III 
"In October seventeen twenty-seven, 
The Afghans and Turkey will score, 
Areas lost by Iran, Christians beseech heaven, 
Against Moslems shedding innocent gore."

This event took place exactly 172 years after the publication of the forecast by Nostradamus in 1555. Afghanistan and Turkey made an agreement in October 1727, dividing up Iran. Christian communities which came under Turkish misrule were brutally treated in Georgia and Armenia (both now in U.S.S.R). Nostradamus had never been out of France except for a brief visit to next-door Italy. Yet he foresaw what the Afghans and the Turks would do in Iran in October 1727! This is truly an amazing prediction by any reckoning. None of the parties concerned had ever heard of Nostradamus.

Let us now return to the Hindu holy war. 


Quatrain 59, Century III 
“The empire of Islam by Hindus overthrown, 
The majority of Moslems will succumb, 
To radio-active fall-out by India blown, 
Making Muhammad forever silent and numb.” 


Interestingly, in his prose-introduction to the "Centuries", the seer dwells at some length on the destruction of Islam and Mecca. The city will be smashed up in such a way that all those who enter it will sicken and die. The only interpretation of this forecast is that there will be radioactive fall-out in the area. Nostradamus declares that the Hindus will be engaged in the task of revenge for seven years from the seventh month of 1999. Interestingly, even Islamic texts predict doom in the 15th century of their religion.


IN-FRIGATE-MALABAR

QUOTE: After the destruction (annihilation would be the exact word) of Islamic power, the Hindu leader will march on the Europe. Both Egypt and Israel will rally to his standard. 


“The Hindu leader with Hebrew leaning, 
Marches on Rome and its allies, 
His ships sail from Libyan mooring, 
The Bible-chanting clergy dies.” 

This tremendous onslaught will be bloody. In yet another forecast Nostradamus remarks that the Hindu army will lose 2,50,000 men. But victory will be attained. It will be decisive.


Passage 40 
“Rome of seven hills hit by calamities quick, 
Storm, deluge, epidemic and consuming fire, 
The Hindus give Europe a colossal kick, 
And conquer it with revengeful ire.” 

The atrocities and fraudulent conversions by Christian missionaries will thus be avenged in the total destruction of Rome. The Pope and his canting clergy will seek refuge in Paris. They will be assisted by a Scottish leader who is called Hadrian in the "Centuries". This is a reference to Hadrian's Wall to isolate Scotland built by the Roman emperor Hadrian, 1,800 years ago.

Hitherto there has been no mention of America in this narrative. Nostradamus mentions it by name only once. It is time to consider the implications of his incredible forecast :

Quatrain 66, Century X 
“The British leader by America sent, 
Red Ken Livingstone, Mayor of London - "Roi Reb (Red)"?Will ruin Scotland by a clever plan, 
Boss Reb's foes will be sorely rem, 
And damn him as unchristian man.” 


IL-30 REFULES SU-30
It has been already noted that the Scottish leader nick-named Hadrian will join hands with the Pope against the Hindus.  Amazingly, the United States will side with India in the war! The Americans will nominate a leader in London who is intriguingly called Boss Reb. He will be a veritable fox in cunning. He will defeat to Scots thoroughly and bring down the Christian alliance around the Pope.

Judging by the "Centuries", the climateric war of 1999 will find India, Russia and America ranged on one side as allies. Is this at all likely? For answer, let us turn to the famous American seeress Jeane Dixon, whose forecasts have been collated in a best-selling book. Its title is "The Gift of Prophecy", authored by Ruth Montgomery.

Jeane Dixon correctly foresaw the Partition of India in 1947, and the assassination of Mahatma Gandhi shortly afterwards. She was frequently consulted by American presidents. She told President Roosevelt in 1944 that America and Russia would be in alliance in 1999 against China. At that time (1944) Communists had not yet seized power in Peking. But in 1949 they were victorious. Incidentally, Jeane Dixon forecast Sanjay Gandhi's death in 1980.

At present, America and Russia seem set on a collision course. Can they ever make up heir differences? Recent history proves that such about-turns are not impossible. Only 15 years ago, China and America were enemies. Today, they are allies. It would be utterly unwise to pooh pooh even bizarre possibilities. Truth is often stronger than fiction.

While the America take over the government of Britain through their nominee Boss Reb, the Hindu leader will advance upon Paris, where the Pope is holed up.

Quatrain 29, Century II 
“The Hindu hero will march from his base, 
Nuclear destruction of ParisCrossing the Apennines to enter France, 
Conquering the clouds and seas ice, 
All enemies will fall before his lance.” 


Paris will be taken after a fierce siege. Hadrian will be killed in a vain defiance. At this juncture, Nostradamus makes a curious observation. He predicts that a tree in the center of Paris will crash down. What tree? Could it be the Eiffel Tower, built more than 300 years after his death? From a distance the Eiffel Tower rather resembles a giant oak-tree.

What of the date of the beginning of the titanic fight which will send India on a holy war? Nostradamus provides a precise answer


Quatrain 72, Century X 
“Bearing upon him the Mongol-sign, 
The great king of terror jumps from heaven, 
In July nineteen ninenty-nine, 
Mars to a just war will be driven.” 

The classical name for the Chinese emperor was "Son of Heaven". A Chinese leader will therefore, launch a terrible war in July (Nostradamus says seventh month) of 1999 in imitation of Genghis Khan, the great Mongol conqueror. Mars is the seer's nick-name for a French statesman who will resist China in 1999. He will be exiled from Paris till the Hindu army rescues him and restores him.

What is one to make of the predictions of Nostradamus? Will they come true? The seer himself admits that the "Centuries" were written in a mystical trance. The conscious mind did not produce them. When it is remembered that more than 800 of the forecasts have already been fulfilled in the last 400 years, skepticism seems unwarranted and inept. In quatrain 42, Century X, the seer predicted that the British empire would collapse in 1942. In that year, the Quit India movement gave the death-blow to British imperialism. What makes the forecast truly breathtaking is the fact that there was no Britain and no empire when Nostradamus published his predictions in 1555. England joined up with Scotland to form Britain only in 1603. The battle of Plassey was fought in 1757, heralding British rule in India.

Nostradamus saw far beyond both these events to forecast the end of British hegemony in 1942. This alone should make clear that the French-Jewish seer possessed divine provision.
When Nostradamus published the "Centuries" in 1555, the title referred only to the arrangement of quatrains in groups of 100 years. It was not an allusion to the hundreds of years that the predictions actually span. There are 10 centuries in all, making a total of about 1000 quatrains. But Century (7) is incomplete with only 44 verses. The short-fall is adequately made up by additional quatrains include later. Ever since their first (1555) appearance, the Centuries have been a perennial best-seller.

The first English translation of Nostradamus's great work was made in 1672 by Theodore Garencieres. The second translation came in 1715 from the pen of a priest who called himself only by the initials D.D. The next translation was in 1891 when Charles Ward made a scholarly attempt to interpret the often-obscure quatrains. Ward's translation was reissued in America in 1940 by the Modern Library. At that time, the Second World War had been started by Hitler.

Hitler and his Nazi Germany made a clever attempt to misuse Nostradamus for propaganda purposes. A New edition of Centuries was printed in Germany giving a totally false interpretation of his prophecies. But Nostradamus himself had not the slightest doubt about Hitler's ultimate fate. He predicted that the Nazis would be annihilated (Quatrain 77, Century VIII) after murdering countless Jews.

In 1982, President Mitterand of France let it be known that he was an avid reader of the Centuries. In 1983, the well-known actor Orson Welles produced an immensely popular American television show on the forecasts of Nostradamus. There have ben so many English translations of the Centuires in the recent past, that the British journalist Taya Zinkin wryly remarked that Nostradamus would top any popularity poll. Mrs. Zinkin is no stranger to India. She spent many years in Delhi as a correspondent. Nostradamus predicts a glorious future for India.

There is no beef in Vedas -Part 2 -वेदों में गोमांस? भाग-2

१. वेद पशुओं और निर्दोष प्राणियों की हिंसा के सख्त खिलाफ हैं.
from agniveer





यज्ञ शब्द ‘यज’ धातु  में ‘ नड्. प्रत्यय जोड कर बनता है. यज धातु के तीन अर्थ होते है – १. देव पूजा – आस- पास के सभी भूतों (पदार्थों) का जतन करना और यथायोग्य उपयोग लेना, ईश्वर की पूजा, माता-पिता का सम्मान, पर्यावरण को साफ़ रखना इत्यादि इस के कुछ उदाहरण हैं. २. दान. ३. संगतिकरण (एकता). वेदों के अनुसार इन में मनुष्यों के सभी कर्तव्य आ जाते हैं. इसलिए सिर्फ वेद ही नहीं बल्कि प्राचीन सारे भारतीय ग्रन्थ यज्ञ की महिमा गाते हैं.

आरोप १ : वेद में यज्ञों का बहुत गुणगान किया गया है. और यज्ञों में पशु बलि दी जाती थी, यह सभी जानते हैं. 
मुख्य बात यह है कि यज्ञ में पशु हिंसा का कहीं कोई प्रमाण नहीं मिलता. वैदिक कोष- निरुक्त २.७यज्ञ को अध्वरकहता है अर्थात हिंसा से रहित (ध्वर=हिंसा). पशु हिंसा हीक्या, यज्ञ में तो शरीर, मन, वाणी से भी की जाने वाली किसी हिंसा के लिएस्थान नहीं है. वेदों के अनेक मन्त्र यज्ञ के लिए अध्वर शब्द का प्रयोग करते हैं. उदा. ऋग्वेद – १.१.४, १.१.८, १.१४.२१, १.१२८.४, १.१९.१, अथर्ववेद- ४.२४.३, १८.२.२, १.४.२, ५.१२.२, १९.४२.४. यजुर्वेद के लगभग ४३मन्त्रों में यज्ञ के लिए अध्वर शब्द आया है. यजुर्वेद ३६.१८ तो कहता है कि ” मैं सभी प्राणियों- सर्वाणि भूतानि (केवल मनुष्यों को नहीं बल्कि जीव मात्र) को मित्र की दृष्टि से देखूं.” इस से पता चलता है कि वेद कहीं भी पशु हिंसा का समर्थन नहीं करता बल्कि उसका निषेध करता है.
भारतवर्ष के मध्य काल में वैदिक मूल्यों का पतन होने के कारण पशु हिंसा चला दी गई. इस का दोष वेदों को नहीं दिया जा सकता. जैसे, आज कई फ़िल्मी सितारे और मॉडल्स मुस्लिम हैं जो फूहड़ता और अश्लीलता परोसते हैं – इस से कुरान अश्लीलता की समर्थक कही जाएगी? इसी तरह, ईसाई देशों में विवाह पूर्व सम्बन्ध और व्याभिचार का बोलबाला है – तो बाइबिल को इस का आधार कहा जायेगा? हमारी चुनौती है उन सब को – जो यज्ञों में पशु बलि बताते हैं कि वे इस का एक भी प्रमाण वेदों से निकाल कर दिखाएँ.
आरोप : यदि ऐसा ही है तो वेदों में आए – अश्वमेध, नरमेध, अजमेध, गोमेध क्याहैं ? ‘मेधका मतलब है – ‘ मारना‘, यहाँ तक कि वेद तो नरमेध की बात भीकरते हैं?
उत्तर: इस लेख के प्रथम भाग में हम चर्चा कर चुके हैं कि ‘ मेध’ शब्द का अर्थ –  ‘ हिंसा’ ही नहीं है. ‘मेध’ शब्द- बुद्धि पूर्वक कार्य करने को प्रकट करता है. मेध- ‘ मेधृ – सं – ग – मे’ से बना है. इसलिए, इस का अर्थ –  मिलाप करना, सशक्त करना या पोषित करना भी है. (देखें – धातु पाठ)
जबयज्ञ को अध्वर अर्थात हिंसा रहितकहा गया है, तो उस के सन्दर्भ में मेधका अर्थ हिंसा क्यों लिया जाये? बुद्धिमान व्यक्ति मेधावीकहे जातेहैं और इसी तरह, लड़कियों का नाम मेधा, सुमेधा इत्यादि रखा जाता है. तो येनाम क्या उनके हिंसक होने के कारण रखे जाते हैं या बुद्धिमान होने के कारण ?
शतपथ १३.१.६.३ और १३.२.२.३ स्पष्ट कहता है कि – राष्ट्र के गौरव, कल्याण और विकास के लिए किये जाने वाले कार्य ‘अश्वमेध’ हैं. शिवाजी, राणा प्रताप, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक, चन्द्र शेखर आजाद, भगत सिंह आदि हमारे महान देश भक्त, क्रांतिकारी वीरों ने राष्ट्र रक्षा के लिए अपने जीवन आहूत करके अश्वमेध यज्ञ ही किया था.
अन्न को दूषित होने से बचाना, अपनी इन्द्रियों को वश में रखना, सूर्य कीकिरणों से उचित उपयोग लेना, धरती को पवित्र या साफ़ रखना –गोमेधयज्ञ है. ‘ गो’ शब्द का एक अर्थ – ‘ पृथ्वी’  भी है. पृथ्वी और उसके पर्यावरण को स्वच्छ रखना ‘गोमेध’ है. (देखें – निघण्टू १.१, शतपथ १३.१५.३)
मनुष्य की मृत्यु के बाद, उसके शरीर का वैदिक रीति से दाह संस्कार करना –नरमेध यज्ञ है. मनुष्यों को उत्तम कार्यों के लिए प्रशिक्षित एवं संगठित करना भी नरमेध या पुरुषमेध या नृमेध यज्ञ कहलाता है.
अजकहते हैं – बीज या अनाज या धान्य को. इसलिए, कृषि की पैदावार बढ़ाना –अजमेध. सीमित अर्थों में – अग्निहोत्र में धान्य से आहुति देना. (देखें-महाभारत शांतिपर्व ३३७.४-५)
विष्णु शर्मा, सुप्रसिद्ध पचतंत्र (काकोलूकीयम्) में कहते हैं कि – जो लोग यज्ञ में हिंसा करते हैं, वे मूर्ख हैं. क्योंकि वे वेद के वास्तविक अर्थ को नहीं समझते. यदि पशुओ को मार कर स्वर्ग में जा सकते हैं, तो फ़िर नरकमें जाने का मार्ग कौन-सा है? महाभारतशांतिपर्व (२६३.६, २६५.९) के अनुसार – यज्ञ में शराब, मछली, मांस को चलानेवाले लोग धूर्त, नास्तिक और शास्त्र ज्ञान से रहित हैं. 
आरोप ३  : यजुर्वेद मन्त्र २४.२९ – हस्तिन आलम्भते ‘ – हाथियों को मारने के लिए कहता है?
उत्तर: ‘लभ्’ धातु से बनने वाला आलम्भ मारना अर्थ नहीं रखता. लभ् = अर्जित करना या पाना. हालाँकि ‘ हस्तिन’ शब्द का ‘हाथी’ से आलावा और गहन अर्थ भी निकलता है, तब भी यदि हम इस मंत्र में ‘हाथी’ अर्थ लें, तो इससे यही पता चलता है कि, राजा को अपने राज्य के विकास हेतु हाथिओं को प्राप्त करना चाहिए या अर्जित करना चाहिए. भला इसमें हिंसा कहाँ है?
आलम्भशब्द अनेकों स्थानों पर अर्जित करने या प्राप्त करने के लिए आयाहै. उदा. मनुस्मृति ब्रह्मचारियों के लिए स्त्रियों को पाने का निषेध करतेहुए कहती है: वर्जयेत स्त्रीनाम आलम्भं‘. अतः आलम्भते का अर्थ मारनापूर्णत: गलत है. जिन लोगों की जीभ को मांस खाने की लत पड़ गई है उन्हें पशुओं का उपयोग – ‘खाना’ ही समझ में आता है और इसलिए वेद मन्त्रों में ‘आलम्भते’ मतलब मारना, उन्होंने अपने मन से गढ़ लिया.
आरोप ४ : ब्राह्मण ग्रंथों और श्रौत सूत्रों में संज्ञपन शब्द आया है, जिसका मतलब बलिदान है ?
उत्तर: अथर्ववेद  ६.७४.१-२  कहता है कि हम अपने मन, शरीर और हृदयों का ‘ संज्ञपन ‘ करें. तो क्या इस से यह समझा जाये कि हम स्वयं को मार दें ! संज्ञपन का वास्तविक अर्थ है – ‘मेल करना या पोषण करना’. मन्त्र का अर्थ है – हम अपने मन, शरीर और हृदयों को बलवान बनाएं जिससे वे एक साथ मिलकर काम करें. संज्ञपन का एक अर्थ – ‘जताना ‘ भी होता है.
आरोप ५ : यजुर्वेद २५. ३४-३५ और ऋग्वेद १.१६२.११-१२ में घोड़े की बलि का स्पष्ट वर्णन है –
अग्नि से पकाए, मरे हुए तेरे अवयवों से जो मांस- रस उठताहै वह वह भूमि या घास पर न गिरे, वह चाहते हुए देवों को प्राप्त हो.” ” जोघोड़े को अग्नि में पका हुआ देखते हैं और जो कहते हैं कि इस मरे हुए घोड़ेसे बड़ी अच्छी गंध आ रही है तथा जो घोड़े के मांस की लालसा करते हैं, उनकाउद्यम हमें प्राप्त हो.”
उत्तर:  पता चल रहा है कि आपने ग्रिफिथ की नक़ल की है. पहले मन्त्र का घोड़े से कोई वास्ता नहींहै. वहां सिर्फ यह कहा गया है कि ज्वर या बुखार से पीड़ित मनुष्य को वैद्यलोग उपचार प्रदान करें.  दूसरे मन्त्र में ‘वाजिनम्’ को घोड़ा समझा गया है. वाजिनम् का अर्थ है  – शूर \ बलवान \ गतिशील \ तेज. इसीलिए घोड़ा वाजिनम् कहलाता है. इस मन्त्र के अनेक अर्थ हो सकते हैं पर कहीं से भी घोड़े की बलि का अर्थ नहीं निकलता. 
यदि वाजिनम् का अर्थ घोड़ा ही लिया जाये तब भी अर्थ होगा कि – घोड़ों ( वाजिनम् ) को मारने से रोका जाये. इन मन्त्रों के सही अर्थ जानने के लिए कृपया ऋषि दयानंद का भाष्य पढ़ें. साथ ही, पशु हिंसा निषेध और पशु हत्यारे खासकर गाय और घोड़े के हत्यारों के लिए कठोर दंड के मन्त्रों को जानने के लिए प्रथम लेख – वेदों में गोमांस? पढ़ें.
आरोप ६  : वेदों में गोघ्नया गायों के वध के संदर्भ हैं और गाय का मांस परोसने वाले को अतिथिग्वा अतिथिग्ना कहा गया है.आप इन्हें कैसे स्पष्ट करेंगे
उत्तर: लेख के प्रथम भाग में हम पर्याप्त सबूत दे चुके हैं कि वेदों में गाय को अघन्या या अदिती – अर्थात् कभी न मारने योग्य कहा गया है और गोहत्यारे के लिए अत्यंत कठोर दण्ड के विधान को भी दिखा चुके हैं. ‘गम्’ धातु का अर्थ है – ‘जाना’. इसलिए गतिशील होने के कारण ग्रहों को भी ‘गो’ कहते हैं. अतिथिग्वा \ अतिथिग्ना का अर्थ अतिथियों की तरफ़ या अतिथियों की सेवा के लिए जाने वाले है.
गोघ्नके अनेक अर्थ होते हैं. यदि गोसे मतलब गाय लिया जाए तब भी गो+ हन् ‘ = गाय के पास जाना, ऐसा अर्थ होगा. हन्धातु का अर्थ -हिंसा के अलावा गति,ज्ञानइत्यादि भी होते हैं. वेदों के कई उदाहरणों से पता चलता है कि ‘हन्’ का प्रयोग किसी के निकट जाने या पास पहुंचने के लिए भी किया जाता है. उदा. अथर्ववेद ‘हन् ‘ का प्रयोग करते हुए पति को पत्नी के पास जाने का उपदेश देता है. इसलिए, इन दावों में कोई दम नहीं है.
आरोप ७ : वेद जवान गायों को मारने केलिए नहीं कहते पर बूढ़ी, बाँझ (वशा ‘) गाय को मारने की आज्ञा देते हैं.इसी तरह, ‘ उक्षा या बैल को मारने की आज्ञा भी है. 
उत्तर:   इस मनघडंत कहानी के आधुनिक प्रचारक डी.एन झा हैं. वह गौ- मांस भक्षण के अपने दावे को वेदों से दिखाने में सफल न हो सके. क्योंकि वेदों में इस के बिलकुल विपरीत बात ही कही गयी है और गौ हत्या का सख्त निषेध मौजूद है. इसलिए इस के बचाव में उन्होंने लाल बुझक्कड़ी  कल्पना का सहारा लिया.
दरअसल उक्षा एक औषधीय पौधा है, जिसे सोम भी कहते हैं. यहाँ तककि मोनिअर विलियम्स भी अपने संस्कृत – इंग्लिश कोष में उक्षा का यही अर्थ करते हैं. ‘वशा’ का अर्थ ईश्वर की संसार को ‘ वश ‘ में रखने वाली शक्ति है. यदि ‘ वशा ‘ का मतलब बाँझ गाय कर लिया जाए तो कई वेद मन्त्र अपने अर्थ खो देंगे.
उदा. अथर्ववेद १०.१०.४ – यहाँ ‘ वशा ‘ के साथ सहस्र धारा( सहस्रों पदार्थों को धारण करने वाली ) का प्रयोग हुआ है. अन्न, दूध और जल की प्रचुरता दर्शाने वाली सहस्र धारा के साथ एक बाँझ गाय की तुलना कैसे हो सकती है? ऋग्वेद  १०.१९०.२  मेंईश्वर की नियामक शक्ति को वशी कहा गया है और प्रतिदिन दो बार की जानेवाली वैदिक संध्या में इस मन्त्र को बोला जाता है. 
अथर्ववेद २०.१०३.१५ संतान सहित उत्तमपत्नी को वशा कहता है. अन्य कुछ मन्त्रों में वशाशब्द उपजाऊ जमीनया औषधीय पौधे के लिए भी आया है. मोनिअर विलियम्स के कोष में भी ‘वशा’ औषधीय पौधे के सन्दर्भ में प्रयुक्त हुआ है.
इन लोगों ने किस आधार पर वशा का अर्थ बाँझ‘ किया है, यह समझ से परे है.
आरोप ८ : बृहदारण्यक उपनिषद  ६.४.१८के अनुसार उत्तम संतान चाहने वाले दंपत्ति को चावल में मांस मिलाकर खानाचाहिए, साथ ही बैल (अर्षभ) और बछड़े (उक्षा) के मांस का सेवन भी करनाचाहिए. 
उत्तर:  वेदों से थककर अब उपनिषदों पर आ गए. पर यदि कोई उपनिषदों में गोमांसाहार दिखा भी दे, तब भी इस से वेदों में गोमांस सिद्ध नहीं हो जाता.
१.हिन्दुओं के सभी धार्मिक ग्रन्थ वेदों को ही अपना आदि स्रोत मानते हैं. इसलिए हिन्दू धर्म में वेदों का प्रमाण ही सर्वोच्च है. पूर्व मीमांसा  १.३.३, मनुस्मृति २.१३, १२.९५, जाबालस्मृति, भविष्य पुराण इत्यादि के अनुसार वेद और अन्य ग्रंथों में मतभेद होने पर वेदों को ही सही माना जाए.
२.बृहदारण्यकोपनिषत् पर किया गया यह बेहूदा आरोप दरअसल गलत समझ का नतीजा है.
३.पहले ‘मांसौदनम्’ को लें –
यहाँ इस श्लोक से पूर्व ४ ऐसे श्लोक हैं, जिनमें बच्चों में विविध वैदिक ज्ञान पाने के लिए चावल को विशिष्ट खाद्य पदार्थों के साथ खाने के लिए कहा है. मांसोदनं के अलावा जो अन्य विशिष्ट खाद्य पदार्थ बताये गए हैं वे हैं: क्षीरोदनं (चावल के साथ दूध), दध्योदनं (चावल के साथ दही), चावल के साथ पानी और चावल के साथ तिल (दलहन). ये सब इतर वेदों में निपुणता प्राप्त करने के लिए बताये गए हैं. इस श्लोक में केवल अर्थववेद में निपुणता प्राप्त करने के लिए मांसोदनं (चावल के साथ मांस) का उल्लेख है. यहीं इस सन्दर्भ में असंगति साफ़ दिखाई देती है.
४. सच तो यह है कि वहां शब्द – माषौदनम्है, ‘मांसौदनम्नहीं. माषएक तरह की दाल है. इसलिए यहाँ मांस का तो प्रश्न ही नहींउठता. आयुर्वेद गर्भवती स्त्रियों के लिए मांसाहार को सख्त मना करता है औरउत्तम संतान पाने के लिए माषसेवन को हितकारी कहता है ( देखें -सुश्रुतसंहिता). इससे ये साफ़ है कि बृहदारण्यक भी वैसा ही मानता है जैसा सुश्रुत में है. इन दोनों में केवल माष और मांस का ही फर्क होने का कोई कारण नहीं.
५.फिर भी अगर कोई माष को मांस ही कहना चाहे, तब भी मांस तो गूदे‘ ( pulp) को भी कहते हैं सिर्फ गोश्त (meat) को ही नहीं.प्राचीन ग्रंथों में मांस अर्थात गूदा के ढेरों प्रमाण मिलते हैं – चरकसंहिता देखें, वहां शब्द हैं – आम्रमांसं = आम का गूदा,खजूरमांसं = खजूर कागूदा. तैत्तरीय संहिता २.३२.८ – दही, शहद और धान को मांस कहता है.
६. मोनिअर विलियम्स का कोष उक्षा अर्थात सोम और ऋषभ (जिससे अर्षभ शब्द बना) दोनों को औषधीय पौधा बताता है. ऋषभ का वैज्ञानिक नाम Carpopogan pruriens है. चरक संहिता १.४-१३, सुश्रुत संहिता ३.८ और भावप्रकाश पूर्ण खंड भी यही कहते हैं.
१. महाभारत के अनुशासन पर्व ११५ में राजा रन्तिदेवका नाम कभी मांस न खाने वालों राजाओं में है. यदि उनके महल गोमांस से भरेरहते थे तो उनका नाम मांस न खाने वालों में कैसे आया
२. मांस का मतलब हमेशा मीट या गोश्त ही नहीं होता – यह भी सिद्ध हो चुका है.
३. जिस श्लोक में गोमांस का आरोप लगाया गया है – उस के अनुसार प्रतिदिन २००० गौएँ मारी जाती थी, इस हिसाब से एक वर्ष में ७,२०,००० से भी अधिक गौओं का वध होता था ? क्या ऐसे श्लोक पर यकीन करना बुद्धिसंगत है?
४. महाभारत का शांति पर्व २६२.४७ – गाय या बैल के हत्यारे को महापापी घोषित करता है. एक ही पुस्तक में यह विरोधाभास कैसे?
५.  दरअसल, इन श्लोकों को भ्रष्ट करने का श्रेय राहुल सांकृतायन जैसे महापंडित को है. वे अपनी वेद निंदा के लिए जाने जाते थे. उन्होंने महाभारत द्रोणपर्व ६७ के प्रथम दो श्लोकों से सिर्फ तीन पंक्तियों को ही उद्धृत किया और जानबूझ कर एक पंक्ति छोड़ दी. द्विशतसहस्र का अर्थ उन्होंने दोहजार किया है – जो कि गलत है. इस का सही अर्थ दो सौ हजार होता है. इस सेउनके संस्कृत ज्ञान के दर्शन हो जाते हैं. 
इन में से कोई भी पंक्ति गोमांस से सम्बन्ध नहींरखती और अगर जानबूझ कर छोड़ी गयी पंक्ति भी मिला दें तो अर्थ होगा कि राजारन्तिदेव के राज्य में उत्तम भोजन पकाने वाले २००,००० रसोइये थे जोप्रतिदिन अतिथियों और विद्वानों को बढ़िया खाना ( चावल, दालें, पकवान, मिठाई इत्यादि -शाकाहारी पदार्थ ) खिलाते थे. गोमांस परक अर्थ दिखाने केलिए अगले श्लोक के माष शब्द को बदल कर मांस किया गया है. 
६. महाभारत में ही, इस के विपरीत –  हिंसा और गोमांस का निषेध करने वाले सैंकड़ों श्लोक मौजूद हैं. साथ ही, महाभारत गाय के लाभ और उसके उपकार की अत्यंत प्रशंसा भी करता है.
७. मूर्ख लोगों ने बाध्यतेका अर्थ मारना कर दिया – जो कि संस्कृतकी किसी पुस्तक या व्याकरण या प्रयोग के अनुसार नहीं है. बाध्यतेका अर्थहै – नियंत्रित करना. 
अतः: राजा रन्तिदेव के यहाँ गायों का वध होता था  – यह कहीं से भी प्रमाणित नहीं होता. अंत में हम यही कहना चाहेंगे कि विश्व की महानतम पुस्तक वेद और अन्य वैदिक ग्रंथों पर लगाये गए ऐसे कपटपूर्ण आरोपों में अपनी मनमानी थोपने में नाकाम रहे इन बुद्धि भ्रष्ट लोगों की खिसियाहट साफ़ झलकती है.
ईश्वर सबको सद् बुद्धि प्रदान करे ताकि हम सब मिलकर वेदों की आज्ञा पर चलें और संसार को सुन्दर बनाएं. 

Massive pre ice age Pyramids Under sea

There were pyramids before Ice age convincing advanced civilizations before Egypt Pyramids. They are at the bottom of the lake Fuxian, located in the Yunnan Province, China, are evidence that before the Great Flood—before the last Ice Age—an extremely advanced ancient culture inhabited the area,

According to local legends and folklore, the ancient city of Yuyuan and its people sank to the bottom of the lake. But Yuyuan? The answer is no because the sunken city Yuyuan or the capital of the ancient Dian Kingdom was in fact constructed mostly out of wooden and clay materials. The remains at the bottom of the lake are mostly made of stone.
At the bottom of this poorly explored Lake—which stretches through Chengjiang County, Jiangchuan County and Huaning County in Yunnan Province, rising 1,720 meters above sea level and encompassing an area of 212 square kilometers—are great pyramid like structures.
The monuments were discovered in 1992 when expert diver Geng Wei came across hand carved flagstones and countless other stone relics scattered across the bottom of the second deepest freshwater lake in China. 


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As noted by the Epoch times, the pyramids at the bottom of the lake are far more advanced than other similar pyramids around the globe— as the stones are ornamented with various designs and symbols. Experts are said to have found curious shapes engraved on the stone structures at the bottom of the lake. Amongst the many engraved stones, one of them has attracted particular attention. On the top right of the slab, experts found a small carved circle with seven radial lines, a symbol that according to many experts is meant to depict the Sun. On the left side of the stone, there are more symbols; another circle with four radial lines.


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Monday, May 1, 2017

There is no Beef in Vedas., वेदों में गोमांस? Part 1.

There is no Beef in Vedas
For centuries aspersions have been cast upon the Vedas; the primary holy scriptures of the Hindus of having unholy contents. If one really started believing in those aspersions, the entire Hindu philosophy, culture, and traditions would reduce to nothing but savagery, barbarism, and cannibalism.
The Vedas – the very roots of Hinduism, rather the first source of knowledge on earth – are meant for guiding the actions of human being in order to lead a blissful life.
This slanderous campaign has been unleashed by different vested interests to embarrass Hindus around the world citing specific references from the Vedas.
This also comes handy in convincing poor and illiterate Indians to give up their faith on the grounds that their fundamental holy books – the Vedas – contain all the inhuman elements like denigration of women, meat-eating, polygamy, casteism and above all – beef eating.
All the slanders heaped upon the Vedas can be attributed mainly to the interpretations of commentaries written by Mahidhar, Uvat and Saayan in the medieval times; and to what Vam-margis or the Tantra cult propagated in their books in the name of the Vedas.
In due course the falsehood spread far and wide and they became even more deep rooted when western scholars with their half baked knowledge of Sanskrit transliterated these interpretations of commentaries of Sayan and Mahidhar, in the name of translating the Vedas.
However, they lacked the pre-requisite understanding of Shiksha (Phonetics), Vyakarana (Grammar), Nirukta (Philology), Nighantu (Vocabulary), Chhanda (Prosody), Jyotish (Astronomy), Kalpa and so on that are critical for correct interpretation of the Vedas.
is to objectively evaluate all such misconceptions about the Vedas – the foundation of human knowledge and establish their piety, sanctity, great ideals and philosophy that cater not only to Hindus but to every human being without bars, bias or discrimination of any kind.
Section 1: No  violence against animals
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Yasmintsarvaani bhutaanyaatmaivaabhuudvijaanatah
Tatra ko mohah kah shokah ekatvamanupasyatah
Yajurveda 40.7
“Those who see all beings as souls do not feel infatuation or anguish at their sight, for they experience oneness with them”.
How could people who believed in the doctrines of indestructibility, transmigration  dare to kill living animals in yajnas? They might be seeing the souls of their own near and dear ones of bygone days residing in those living beings.
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Anumantaa vishasitaa nihantaa krayavikrayee
Samskartaa chopahartaa cha khadakashcheti ghaatakaah
Manusmrithi 5.51
Those who permit slaying of animals; those who bring animals for slaughter; those who slaughter; those who sell meat; those who purchase meat; those who prepare dish out of it; those who serve that
meat and those who eat are all murderers.
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Breehimattam yavamattamatho maashamatho tilam
Esha vaam bhaago nihito ratnadheyaaya dantau maa hinsishtam pitaram maataram cha
Atharvaveda 6.140.2
O teeth! You eat rice, you eat barley, you gram and you eat sesame. These cereals are specifically meant for you. Do not kill those who are capable of being fathers and mothers.
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Ya aamam maansamadanti paurusheyam cha ye kravih
Garbhaan khaadanti keshavaastaanito naashayaamasi
Atharvaveda 8.6.23

We ought to destroy those who eat cooked as well as uncooked meat, meat involving destruction of males and females, foetus and eggs.
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Anago hatya vai bheema kritye
Maa no gaamashvam purusham vadheeh
Atharvaveda 10.1.29

It is definitely a great sin to kill innocents. Do not kill our cows, horses and people.
How could there be justification of cow and other animals being killed when killing is so clearly prohibited in the Vedas?
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Aghnyaa yajamaanasya pashoonpahi
Yajurveda 1.1
“O human! animals are Aghnya – not to be killed. Protect the animals”
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Pashunstraayethaam
Yajurveda 6.11
Protect the animals.
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Dwipaadava Chatushpaatpaahi
Yajurveda 14.8
Protect the bipeds and quadrupeds!
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Kravy da –kravya[ meat obtained from slaughter] + Ada [ the eater]—the meat eater.
Pisacha — pisita [meat] +asa [eater]—the meat eater.
Asutrpa — Asu [breath of life] + trpa [one who satisfies himself on]—one who takes others life for his meals.
Garba da and Anda da – the foetus and egg eaters.
Mans da – the meat eaters
Meat eaters have always been looked down in Vedic literature. They have been known as Rakshasas, Pisacha and so on….All these words are synonyms of demons or devils that have been out-cast from the civilized human society.
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Urjam no dhehi dwipade chatushpade
Yajurveda 11.83
“May all bipeds and quadrupeds gain strength and nourishment”
This mantra is recited by Hindus before every meal. How could the same philosophy which prays for well-being of every soul in every moment of life, approve of killing animals?
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Section 2: No  violence in Yajna

Yajna never meant animal sacrifice in the sense popularly understood. Yajna in the Vedas meant a noble deed or the highest purifying action.
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Adhvara iti Yajnanaama – Dhvaratihimsaakarmaa tatpratishedhah
Nirukta 2.7
According to Yaaska Acharya, one of the synonyms of Yajna in Nirukta or the Vedic philology is Adhvara.
Dhvara means an act with himsa or violence. And therefore a-dhvara means an act involving no himsa or no violence. There are a large number of such usage of Adhvara in the Vedas.
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In the post-Mahabharata period, misinterpretation of the Vedas and interpolations in other scriptures took place at various points intime. Acharya Shankar reestablished the Vedic values to an extent.
In the more recent times, Swami Dayanand Saraswati – known as the grandfather of modern India – interpreted the Vedas as per thecorrect rules of the language and authentic evidences. His literature, which includes commentary on the Vedas, Satyarth Prakash loosely translated as Light of Truth, An Introduction to the Vedas and other texts led to widespread social reformation based on Vedic philosophy and dispelling of myths surrounding the Vedas.
Let us discover what the Vedas have to say on Yajna.
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Agne yam yagnamadhvaram vishwatah pari bhuurasi
Sa id deveshu gacchati
Rigveda 1.1.4
O lord of effulgence! The non-violent Yajna, you prescribe from all sides, is beneficial for all, touches divine proportions and is accepted by noble souls.
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The Rigveda describes Yajna as Adhvara  or non violent throughout. Same is the case with all the other Vedas. How can it be then concluded that the Vedas permit violence or slaughter of animals?
The biggest accusation of cattle and cow slaughter comes in the context of the Yajnas that derived their names from different cattle like the Ashwamedh Yajna, the Gomedha Yajna and the Nar-medh Yajna. Even by the wildest stretch of the imagination the word Medha would not mean slaughter in this context.
It’s interesting to note what Yajurveda says about a horse
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Imam ma himsirekashafam pashum kanikradam vaajinam vaajineshu
Yajurveda 13.48
Do not slaughter this one hoofed animal that neighs and who goes with a speed faster than most of the animals.
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Aswamedha does not mean horse sacrifice at Yajna. Instead the Yajurveda clearly mentions that a horse ought not to be slaughtered.
In Shathapatha, Ashwa is a word for the nation or empire
The word medha does not mean slaughter. It denotes an act done in accordance to the intellect Alternatively it could mean consolidation, as evident from the root meaning of medha i.e. medhru san-ga-me
Raashtram vaa ashwamedhah
Annam hi gau
Agnirvaa ashwah
Aajyam medhah
(Shatpath 13.1.6.3)
Swami Dayananda Saraswati wrote in his Light of Truth:
A Yajna dedicated to the glory, wellbeing and prosperity of the Rashtra the nation or empire is known as the Ashwamedh yajna.
“To keep the food pure or to keep the senses under control, or to make the food pure or to make a good use of the rays of Sun or keep the earth free from impurities[clean] is called Gomedha Yajna”.
“The word Gau also means the Earth and the yajna dedicated to keep the Earth the environment clean is called Gomedha Yajna”
“The cremation of the body of a dead person in accordance with the principles laid down in the Vedas is called Naramedha Yajna”.
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Section 3: No beef in Vedas

Not only the Vedas are against animal slaughter but also vehemently oppose and prohibit cow slaughter.Yajurveda forbids killing of cows, for they provide energizing food for human beings
Ghrtam duhaanaamaditim janaayaagne maa himsiheeh
Yajurveda 13.49
Do not kill cows and bulls who always deserve to be protected.
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Aare gohaa nrhaa vadho vo astu
Rigveda 7.56.17
In Rigveda cow slaughter has been declared a heinous crime equivalent to human murder and it has been said that those who commits this crime should be punished.
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Sooyavasaad bhagavatee hi bhooyaa atho vayam bhagvantah syaama
Addhi trnamaghnye vishwadaaneem piba shuddhamudakamaacharantee
Rigveda 1.164.40 or Atharv 7.73.11 or Atharv 9.10.20
The Aghnya cows – which are not to be killed under any circumstances– may keep themselves healthy by use of pure water and green grass, so that we may be endowed with virtues, knowledge and wealth.
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The Vedic Lexicon, Nighantu, gives amongst other synonyms of Gau[ or cow] the words Aghnya. Ahi, and Aditi. Yaska the commentator on Nighantu, defines these as-
Aghnya the one that ought not to be killed
Ahi the one that must not be slaughtered.
Aditi the one that ought not to be cut into pieces.
These three names of cow signify that the animal ought not to be put to tortures. These words appear frequently throughout the Vedas in context of the cow.
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Aghnyeyam saa vardhataam mahate soubhagaaya
Rigveda 1.164.27Cow – The aghnya – brings us health and prosperity
Suprapaanam Bhavatvaghnyaayaah
Rigveda 5.83.8
There should be excellent facility for pure water for Aghnya Cow
Yah paurusheyena kravishaa samankte yo ashwena pashunaa yaatudhaanah
Yo aghnyaayaa bharati ksheeramagne teshaam sheershaani harasaapi vrishcha
Rigveda 10.87.16
Those who feed on human, horse or animal flesh and those who destroy milk-giving Aghnya cows should be severely punished.
Vimucchyadhvamaghnyaa devayaanaa aganma
Yajurveda 12.73
The Aghnya cows and bulls bring you prosperity
Maa gaamanaagaamaditim vadhishta
Rigveda 8.101.15
Do not kill the cow. Cow is innocent and aditi – that ought not to be cut into pieces
Antakaaya goghaatam
Yajurveda 30.18

Destroy those who kill cows
Yadi no gaam hansi yadyashwam yadi poorusham
Tam tvaa seesena vidhyaamo yatha no so aveeraha
Atharvaveda 1.16.4
If someone destroys our cows, horses or people, kill him with a bullet of lead.
Vatsam jaatamivaaghnyaa
Atharvaveda 3.30.1

Love each other as the Aghnya – non-killable cow – loves its calf
Dhenu sadanam rayeenaam
Atharvaveda 11.1.34

Cow is fountainhead of all bounties
The entire 28th Sukta or Hymn of 6th Mandal of Rigveda sings the glory of cow.
Aa gaavo agnamannuta bhadramakrantseedantu
Bhooyobhooyo rayimidasya vardhayannabhinne
Na taa nashanti na dabhaati taskaro naasaamamitro vyathiraa dadharshati
Na taa arvaa renukakaato ashnute na samskritramupa yanti taa abhi
Gaavo bhago gaava indro me achhaan
Yooyam gaavo medayathaa
Maa vah stena eeshata maaghanshasah
1. Everyone should ensure that cows are free from miseries and kept healthy.
2. God blesses those who take care of cows.
3. Even the enemies should not use any weapon on cows
4. No one should slaughter the cow
5. Cow brings prosperity and strength
6. If cows keep healthy and happy, men and women shall also keep disease free and prosperous
7. May the cow eat green grass and pure water. May they not be killed and bring prosperity to us.
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What more proofs does one need to understand the high esteem in whichnot only the cow but each living being is held in the Vedas.
The learned audience can decide for themselves from these evidences that the Vedas are completely against any inhuman practice… to top it all the Beef and Cow slaughter.

There is no Beef in Vedas.


.पशु-हिंसा का विरोध
यस्मिन्त्सर्वाणि  भूतान्यात्मैवाभूद्विजानत:
तत्र  को  मोहः  कः  शोक   एकत्वमनुपश्यत:
यजुर्वेद  ४०। ७
जो सभी भूतों में अपनी ही आत्मा को देखते हैं, उन्हें कहीं पर भी शोक या मोह नहीं रह जाता क्योंकि वे उनके साथ अपनेपन की अनुभूति करते हैं | जो आत्मा के नष्ट न होने में और पुनर्जन्म में विश्वास रखते हों, वे कैसे यज्ञों में पशुओं का वध करने की सोच भी सकते हैं ? वे तो अपने पिछले दिनों के प्रिय और निकटस्थ लोगों को उन जिन्दा प्राणियों में देखते हैं |

अनुमन्ता विशसिता निहन्ता क्रयविक्रयी
संस्कर्ता चोपहर्ता च खादकश्चेति घातकाः
मनुस्मृति ५।५१
मारने की आज्ञा देने वाला, पशु को मारने के लिए लेने वाला, बेचने वाला, पशु को मारने वाला,
मांस को खरीदने और बेचने वाला, मांस को पकाने वाला और मांस खाने वाला यह सभी हत्यारे हैं |
ब्रीहिमत्तं यवमत्तमथो माषमथो तिलम्
एष वां भागो निहितो रत्नधेयाय दान्तौ मा हिंसिष्टं पितरं मातरं च
अथर्ववेद ६।१४०।२
हे दांतों की दोनों पंक्तियों ! चावल खाओ, जौ खाओ, उड़द खाओ और तिल खाओ |
यह अनाज तुम्हारे लिए ही बनाये गए हैं | उन्हें मत मारो जो माता – पिता बनने की योग्यता रखते हैं |

य आमं मांसमदन्ति पौरुषेयं च ये क्रविः
गर्भान् खादन्ति केशवास्तानितो नाशयामसि
अथर्ववेद ८। ६।२३
वह लोग जो नर और मादा, भ्रूण और अंड़ों के नाश से उपलब्ध हुए मांस को कच्चा या पकाकर खातें हैं, हमें उन्हें नष्ट कर देना चाहिए |



अनागोहत्या वै भीमा कृत्ये
मा नो गामश्वं पुरुषं वधीः
अथर्ववेद १०।१।२९
निर्दोषों को मारना निश्चित ही महा पाप है | हमारे गाय, घोड़े और पुरुषों को मत मार | वेदों में गाय और अन्य पशुओं के वध का स्पष्टतया निषेध होते हुए, इसे वेदों के नाम पर कैसे उचित ठहराया जा सकता है?

अघ्न्या यजमानस्य पशून्पाहि
यजुर्वेद १।१
हे मनुष्यों ! पशु अघ्न्य हैं – कभी न मारने योग्य, पशुओं की रक्षा करो |

पशूंस्त्रायेथां
यजुर्वेद ६।११
पशुओं का पालन करो |

द्विपादव चतुष्पात् पाहि
यजुर्वेद १४।८
हे मनुष्य ! दो पैर वाले की रक्षा कर और चार पैर वाले की भी रक्षा कर |

क्रव्य दा – क्रव्य (वध से प्राप्त मांस ) + अदा (खानेवाला) = मांस भक्षक |
पिशाच — पिशित (मांस) +अस (खानेवाला) = मांस खाने वाला |
असुत्रपा –  असू (प्राण )+त्रपा(पर तृप्त होने वाला) =   अपने भोजन के लिए दूसरों के प्राण हरने वाला |  |
गर्भ दा  और अंड़ दा = भूर्ण और अंड़े खाने वाले |
मांस दा = मांस खाने वाले |
वैदिक साहित्य में मांस भक्षकों को अत्यंत तिरस्कृत किया गया है | उन्हें राक्षस, पिशाच आदि की संज्ञा दी गई है जो दरिन्दे और हैवान माने गए हैं तथा जिन्हें सभ्य मानव समाज से बहिष्कृत समझा गया है |

ऊर्जं नो धेहि द्विपदे चतुष्पदे
यजुर्वेद ११।८३
सभी दो पाए और चौपाए प्राणियों को बल और पोषण प्राप्त हो |  हिन्दुओं द्वारा भोजन ग्रहण करने से पूर्व बोले जाने वाले इस मंत्र में प्रत्येक जीव के लिए पोषण उपलब्ध होने की कामना की गई है | जो दर्शन प्रत्येक प्राणी के लिए जीवन के हर क्षण में कल्याण ही चाहता हो, वह पशुओं के वध को मान्यता कैसे देगा ?

२.यज्ञ में हिंसा का विरोध
जैसी कुछ लोगों की प्रचलित मान्यता है कि यज्ञ में पशु वध किया जाता है, वैसा बिलकुल नहीं है | वेदों में यज्ञ को श्रेष्ठतम कर्म या एक ऐसी क्रिया कहा गया है जो वातावरण को अत्यंत शुद्ध करती है |

अध्वर इति यज्ञानाम  – ध्वरतिहिंसा कर्मा तत्प्रतिषेधः
निरुक्त २।७
निरुक्त या वैदिक शब्द व्युत्पत्ति शास्त्र में यास्काचार्य के अनुसार यज्ञ का एक नाम अध्वर भी है | ध्वर का मतलब है हिंसा सहित किया गया कर्म, अतः अध्वर का अर्थ हिंसा रहित कर्म है | वेदों में अध्वर के ऐसे प्रयोग प्रचुरता से पाए जाते हैं |

महाभारत के परवर्ती काल में वेदों के गलत अर्थ किए गए तथा अन्य कई धर्म – ग्रंथों के विविध तथ्यों को  भी प्रक्षिप्त किया गया | आचार्य शंकर वैदिक मूल्यों की पुनः स्थापना में एक सीमा तक सफल रहे | वर्तमान समय में स्वामी दयानंद सरस्वती – आधुनिक भारत के पितामह ने वेदों की व्याख्या वैदिक भाषा के सही नियमों तथा यथार्थ प्रमाणों के आधार पर की | उन्होंने वेद-भाष्य, सत्यार्थ प्रकाश, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका तथा अन्य ग्रंथों की रचना की | उनके इस साहित्य से वैदिक मान्यताओं पर आधारित व्यापक सामाजिक सुधारणा हुई तथा वेदों के बारे में फैली हुई भ्रांतियों का निराकरण हुआ |

आइए,यज्ञ के बारे में वेदों के मंतव्य को जानें –
अग्ने यं यज्ञमध्वरं विश्वत: परि भूरसि
स इद देवेषु गच्छति
ऋग्वेद   १ ।१।४
हे दैदीप्यमान प्रभु ! आप के द्वारा व्याप्त हिंसा रहित यज्ञ सभी के लिए लाभप्रद दिव्य गुणों से युक्त है तथा विद्वान मनुष्यों द्वारा स्वीकार किया गया है | ऋग्वेद में सर्वत्र यज्ञ को हिंसा रहित कहा गया है इसी तरह अन्य तीनों वेद भी वर्णित करते हैं | फिर यह कैसे माना जा सकता है कि वेदों में हिंसा या पशु वध की आज्ञा है ?

यज्ञों में पशु वध की अवधारणा  उनके (यज्ञों ) के विविध प्रकार के नामों के कारण आई है जैसे अश्वमेध  यज्ञ, गौमेध यज्ञ तथा नरमेध यज्ञ | किसी अतिरंजित कल्पना से भी इस संदर्भ में मेध का अर्थ वध संभव नहीं हो सकता |

यजुर्वेद अश्व का वर्णन करते हुए कहता  है –
इमं मा हिंसीरेकशफं पशुं कनिक्रदं वाजिनं वाजिनेषु
यजुर्वेद  १३।४८
इस एक खुर वाले, हिनहिनाने वाले तथा बहुत से पशुओं में अत्यंत वेगवान प्राणी का वध मत कर |अश्वमेध से अश्व को यज्ञ में बलि देने का तात्पर्य नहीं है इसके विपरीत यजुर्वेद में अश्व को नही मारने का स्पष्ट उल्लेख है | शतपथ में अश्व शब्द राष्ट्र या साम्राज्य के लिए आया है | मेध अर्थ वध नहीं होता | मेध शब्द बुद्धिपूर्वक किये गए कर्म को व्यक्त करता है | प्रकारांतर से उसका अर्थ मनुष्यों में संगतीकरण का भी है |  जैसा कि मेध शब्द के धातु (मूल ) मेधृ -सं -ग -मे के अर्थ से स्पष्ट होता है |

राष्ट्रं  वा  अश्वमेध:
अन्नं  हि  गौ:
अग्निर्वा  अश्व:
आज्यं  मेधा:
(शतपथ १३।१।६।३)
स्वामी  दयानन्द सरस्वती सत्यार्थ प्रकाश में लिखते हैं :-
राष्ट्र या साम्राज्य के वैभव, कल्याण और समृद्धि के लिए समर्पित यज्ञ ही अश्वमेध यज्ञ है |  गौ शब्द का अर्थ पृथ्वी भी है | पृथ्वी तथा पर्यावरण की शुद्धता के लिए समर्पित यज्ञ गौमेध कहलाता है | ” अन्न, इन्द्रियाँ,किरण,पृथ्वी, आदि को पवित्र रखना गोमेध |”  ” जब मनुष्य मर जाय, तब उसके शरीर का विधिपूर्वक दाह करना नरमेध कहाता है | ”

३.गौ – मांस का निषेध
वेदों  में पशुओं की हत्या का  विरोध तो है ही बल्कि गौ- हत्या पर तो तीव्र आपत्ति करते हुए उसे निषिद्ध माना गया है | यजुर्वेद में गाय को जीवनदायी पोषण दाता मानते हुए गौ हत्या को वर्जित किया गया है |
घृतं दुहानामदितिं जनायाग्ने  मा हिंसी:
यजुर्वेद १३।४९
सदा ही रक्षा के पात्र गाय और बैल को मत मार |

आरे  गोहा नृहा  वधो  वो  अस्तु
ऋग्वेद  ७ ।५६।१७
ऋग्वेद गौ- हत्या को जघन्य अपराध घोषित करते हुए मनुष्य हत्या के तुल्य मानता है और ऐसा महापाप करने वाले के लिये दण्ड का विधान करता है |

सूयवसाद  भगवती  हि  भूया  अथो  वयं  भगवन्तः  स्याम
अद्धि  तर्णमघ्न्ये  विश्वदानीं  पिब  शुद्धमुदकमाचरन्ती
ऋग्वेद १।१६४।४०
अघ्न्या गौ- जो किसी भी अवस्था में नहीं मारने योग्य हैं, हरी घास और शुद्ध जल के सेवन से स्वस्थ  रहें जिससे कि हम उत्तम सद् गुण,ज्ञान और ऐश्वर्य से युक्त हों |वैदिक कोष निघण्टु में गौ या गाय के पर्यायवाची शब्दों में अघ्न्या, अहि- और अदिति का भी समावेश है | निघण्टु के भाष्यकार यास्क इनकी व्याख्या में कहते हैं -अघ्न्या – जिसे कभी न मारना चाहिए | अहि – जिसका कदापि वध नहीं होना चाहिए | अदिति – जिसके खंड नहीं करने चाहिए | इन तीन शब्दों से यह भलीभांति विदित होता है कि गाय को किसी भी प्रकार से पीड़ित नहीं करना चाहिए | प्रायवेदों में गाय इन्हीं नामों से पुकारी गई है |
अघ्न्येयं  सा  वर्द्धतां  महते  सौभगाय
ऋग्वेद १ ।१६४।२७
अघ्न्या गौ-  हमारे लिये आरोग्य एवं सौभाग्य लाती हैं |

सुप्रपाणं  भवत्वघ्न्याभ्य:
ऋग्वेद ५।८३।८
अघ्न्या गौ के लिए शुद्ध जल अति उत्तमता से उपलब्ध हो |

यः  पौरुषेयेण  क्रविषा  समङ्क्ते  यो  अश्व्येन  पशुना  यातुधानः
यो  अघ्न्याया  भरति  क्षीरमग्ने  तेषां  शीर्षाणि  हरसापि  वृश्च
ऋग्वेद १०।८७।१६
मनुष्य, अश्व या अन्य पशुओं के मांस से पेट भरने वाले तथा दूध देने वाली अघ्न्या गायों का विनाश करने वालों को कठोरतम दण्ड देना चाहिए |

विमुच्यध्वमघ्न्या देवयाना अगन्म
यजुर्वेद १२।७३
अघ्न्या गाय और बैल तुम्हें समृद्धि प्रदान करते हैं |

मा गामनागामदितिं  वधिष्ट
ऋग्वेद  ८।१०१।१५
गाय को मत मारो | गाय निष्पाप और अदिति – अखंडनीया है  |

अन्तकाय  गोघातं
यजुर्वेद ३०।१८
गौ हत्यारे का संहार किया जाये |

यदि  नो  गां हंसि यद्यश्वम् यदि  पूरुषं
तं  त्वा  सीसेन  विध्यामो  यथा  नो  सो  अवीरहा
अर्थववेद १।१६।४
यदि कोई हमारे गाय,घोड़े और पुरुषों की हत्या करता है, तो उसे सीसे की गोली से उड़ा दो |

वत्सं  जातमिवाघ्न्या
अथर्ववेद ३।३०।१
आपस में उसी प्रकार प्रेम करो, जैसे अघ्न्या – कभी न मारने योग्य गाय – अपने बछड़े से करती है |

धेनुं  सदनं  रयीणाम्
अथर्ववेद ११।१।४
गाय सभी ऐश्वर्यों का उद्गम है |

ऋग्वेद के ६ वें मंडल का सम्पूर्ण २८ वां सूक्त गाय की महिमा बखान रहा है —
१.आ  गावो अग्मन्नुत भद्रमक्रन्त्सीदन्तु
प्रत्येक जन यह सुनिश्चित करें कि गौएँ यातनाओं से दूर तथा स्वस्थ रहें |

२.भूयोभूयो  रयिमिदस्य  वर्धयन्नभिन्ने
गाय की  देख-भाल करने वाले को ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त होता है |


३.न ता नशन्ति न दभाति तस्करो नासामामित्रो व्यथिरा दधर्षति
गाय पर शत्रु भी शस्त्र  का प्रयोग न करें |

४. न ता अर्वा रेनुककाटो अश्नुते न संस्कृत्रमुप यन्ति ता अभिकोइ भी गाय का वध न करे  |

५.गावो भगो गाव इन्द्रो मे अच्छन्
गाय बल और समृद्धि  लातीं  हैं |

६. यूयं गावो मेदयथा
गाय यदि स्वस्थ और प्रसन्न रहेंगी  तो पुरुष और स्त्रियाँ भी निरोग और समृद्ध होंगे |

७. मा वः स्तेन ईशत माघशंस:
गाय हरी घास और शुद्ध जल क सेवन करें | वे मारी न जाएं और हमारे लिए समृद्धि लायें |

वेदों में मात्र गाय ही नहीं  बल्कि प्रत्येक प्राणी के लिए प्रद्रर्शित उच्च भावना को समझने  के लिए और  कितने प्रमाण दिएं जाएं ? प्रस्तुत प्रमाणों से सुविज्ञ पाठक स्वयं यह निर्णय कर सकते हैं कि वेद किसी भी प्रकार कि अमानवीयता के सर्वथा ख़िलाफ़ हैं और जिस में गौ – वध तथा गौ- मांस का तो पूर्णत: निषेध है |

वेदों में गौ मांस का कहीं कोई विधान नहीं  है |


संदर्भ ग्रंथ सूची –
१.ऋग्वेद भाष्य – स्वामी दयानंद सरस्वती
२.यजुर्वेद भाष्य -स्वामी दयानंद सरस्वती
३.No Beef in Vedas -B D Ukhul
४.वेदों का यथार्थ स्वरुप – पंडित धर्मदेव विद्यावाचस्पति
५.चारों वेद संहिता – पंडित दामोदर सातवलेकर
६. प्राचीन भारत में गौ मांस – एक समीक्षा – गीता प्रेस,गोरखपुर
७.The Myth of Holy Cow – D N Jha
८. Hymns of Atharvaveda – Griffith
९.Scared Book of the East – Max Muller
१०.Rigved Translations – Williams Jones
११.Sanskrit – English Dictionary – Moniar Williams
१२.वेद – भाष्य – दयानंद संस्थान
१३.Western Indologists – A Study of Motives – Pt.Bhagavadutt
१४.सत्यार्थ प्रकाश – स्वामी दयानंद सरस्वती
१५.ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका – स्वामी दयानंद सरस्वती
१६.Cloud over Understanding of Vedas – B D Ukhul
१७.शतपथ ब्राहमण
१८.निरुक्त – यास्काचार्य
१९. धातुपाठ – पाणिनि

परिशिष्ट, १४ अप्रैल २०१०
इस लेख के पश्चात् उन विभिन्न स्रोतों से तीखी प्रतिक्रिया हुई जिनके गले से यह सच्चाई नहीं उतर सकती कि हमारे वेद और राष्ट्र की प्राचीन संस्कृति अधिक आदर्शस्वरूप हैं बनिस्पत उनकी आधुनिक साम्यवादी विचारधारा के | मुझे कई मेल प्राप्त हुए जिनमें इस लेख को झुठलाने के प्रयास में अतिरिक्त हवाले देकर गोमांस का समर्थन दिखाया गया है | जिनमें ऋग्वेद से २ मंत्र ,मनुस्मृति के कुछ श्लोक तथा कुछ अन्य उद्धरण दिए गए हैं | जिसका एक उदाहरण यहाँ अवतार गिल की टिप्पणी है | इस बारे में मैं निम्न बातें कहना चाहूंगा —
a. लेख में प्रस्तुत मनुस्मृति के साक्ष्य में वध की अनुमति देने वाले तक को हत्यारा कहा गया है | अतः यह सभी अतिरिक्त श्लोक मनुस्मृति में प्रक्षेपित ( मिलावट किये गए) हैं या इनके अर्थ को बिगाड़ कर गलत रूप में प्रस्तुत किया गया है | मैं उन्हें डा. सुरेन्द्र कुमार द्वारा भाष्य की गयी मनुस्मृति पढ़ने की सलाह दूंगा |
b. प्राचीन साहित्य में गोमांस को सिद्ध करने के उनके अड़ियल रवैये के कपट का एक प्रतीक यह है कि वह मांस शब्द का अर्थ हमेशा मीट (गोश्त) के संदर्भ में ही लेते हैं | दरअसल, मांस शब्द की परिभाषा किसी भी गूदेदार वस्तु के रूप में की जाती है | मीट को मांस कहा जाता है क्योंकि वह गूदेदार होता है | इसी से, केवल मांस शब्द के प्रयोग को देखकर ही मीट नहीं समझा जा सकता |
c. उनके द्वारा प्रस्तुत अन्य उद्धरण संदेहास्पद एवं लचर हैं जो प्रमाण नहीं माने जा सकते | उनका तरीका बहुत आसान है – संस्कृत में लिखित किसी भी वचन को धर्म के रूप में प्रतिपादित करके मन माफ़िक अर्थ किये जाएं | इसी तरह, वे हमारी पाठ्य पुस्तकों में अनर्गल अपमानजनक दावों को भरकर मूर्ख बनाते आ रहें हैं |
d. वेदों से संबंधित जिन दो मंत्रों को प्रस्तुत कर वे गोमांस भक्षण को सिद्ध मान रहे हैं, आइए उनकी पड़ताल करें –
दावा:- ऋग्वेद (१०/८५/१३) कहता है -” कन्या के विवाह अवसर पर गाय और बैल का वध किया जाए | ”
तथ्य : – मंत्र में बताया गया है कि शीत ऋतु में मद्धिम हो चुकी सूर्य किरणें पुनः वसंत ऋतु में प्रखर हो जाती हैं | यहां सूर्य -किरणों के लिए प्रयुक्त शब्द  ‘गो’ है, जिसका एक अर्थ ‘गाय’ भी होता है | और इसीलिए मंत्र का अर्थ करते समय सूर्य – किरणों के बजाये गाय को विषय रूप में लेकर भी किया जा सकता है | ‘मद्धिम’ को सूचित करने के लिए ‘हन्यते’ शब्द का प्रयोग किया गया है, जिसका मतलब हत्या भी हो सकता है | परन्तु यदि ऐसा मान भी लें, तब भी मंत्र की अगली पंक्ति (जिसका अनुवाद जानबूझ कर छोड़ा गया है)  कहती है कि -वसंत ऋतु में वे अपने वास्तविक स्वरुप को पुनः प्राप्त होती हैं | भला सर्दियों में मारी गई गाय दोबारा वसंत ऋतु में पुष्ट कैसे हो सकती है ? इस से भली प्रकार सिद्ध हो रहा है कि ज्ञान से कोरे कम्युनिस्ट किस प्रकार वेदों के साथ पक्षपात कर कलंकित करते हैं |
दावा :- ऋग्वेद (६/१७/१) का कथन है, ” इन्द्र गाय, बछड़े, घोड़े और भैंस का मांस खाया करते थे |”
तथ्य :- मंत्र में वर्णन है कि प्रतिभाशाली विद्वान, यज्ञ की अग्नि को प्रज्वलित करने वाली समिधा की भांति विश्व को दीप्तिमान कर देते हैं | अवतार गिल और उनके मित्रों को इस में इन्द्र,गाय,बछड़ा, घोड़ा और भैंस कहां से मिल गए,यह मेरी समझ से बाहर है | संक्षेप में, मैं अपनी इस प्रतिज्ञा पर दृढ़ हूँ कि वेदों में गोमांस भक्षण का समर्थक एक भी मंत्र प्रमाणित करने पर मैं हर उस मार्ग को स्वीकार करने के लिए तैयार हूँ जो मेरे लिए नियत किया जाएगा अन्यथा वे वेदों की ओर वापिस लौटें |



Claim: Rigveda (10/85/13) declares, “On the occasion of a girl’s marriage oxen and cows are slaughtered.”
Fact: The mantra states that in winter, the rays of sun get weakened and then get strong again in spring. The word used for sun-rays in ‘Go’ which also means cow and hence the mantra can also be translated by making ‘cow’ and not ‘sun-rays’ as the subject. The word used for ‘weakened’ is ‘Hanyate’ which can also mean killing. But if that be so, why would the mantra go further and state in next line (which is deliberately not translated) that in spring, they start regaining their original form.
How can a cow killed in winter regain its health in spring? This amply proves how ignorant and biased communists malign Vedas.
Claim: Rigveda (6/17/1) states that “Indra used to eat the meat of cow, calf, horse and buffalo.”
Fact: The mantra states that brilliant scholars enlighten the world in the manner that wood enhances the fire of Yajna. I fail to understand from where did Avtar Gill and his friends discover Indra, cow, calf, horse and buffalo in this mantra!
In summary, I continue the challenge to everyone – cite one single mantra from Vedas that justify beef-eating and I shall be eager to embrace any faith that he or she may decide for me. If not, they should agree to revert back to the Vedas.
Above is a article on agniveer.com by SANJEEV NEWAR